कोरोना जैसी भीषण महामारी में भी भुखमरी से नहीं हुई कोई मृत्यु : रवींद्र जायसवाल
रवींद्र जायसवाल ने कहा कि ऐसी संगोष्ठी के आयोजन से कृषि में नीतिगत निर्णय लेने में मदद मिलती है। आज का युवा ज्यादा पढ़-लिख कर सिर्फ सरकारी नौकरी की बात करता है। आधुनिक विधि से खेती में उचित प्रबंधन से अधिक आमदनी कमाई जा सकती है।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। कृषि विज्ञान संस्थान, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रसार शिक्षा विभाग की ओर से शताब्दी सभागार में बुधवार को “आत्मनिर्भर भारत के लिए बहुवादी और अभिनव विस्तार दृष्टिकोणों के माध्यम से भारतीय कृषि को बदलना” विषयक तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन हुआ। इसमें मुख्य अतिथि स्टम्प तथा नयायालय शुल्क एवं पंजीयन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) रवीद्र जायसवाल ने कहा कि वर्ष 1965 के बाद भारतीय कृषि में निरंतर वृद्धि कृषि वैज्ञानिकों एवं किसानों का कठिन परिश्रम का फल है।
एक समय हम गेहूं आयात करके अपनी भूख मिटाते थे आज हम निर्यात करते हैं। करोना काल में सभी को मिल सका, इस भीषण त्रासदी में भी किसी की भुखमरी से मृत्यु नहीं हुई। इसका श्रेय किसानों एवं वैज्ञानिकों को जाता है। 80 करोड़ लोगों को कोरोना काल में मुफ्त में अनाज बांटे गए जो यह दर्शाता है कि हमारा अनाज भंडारण बहुत है। प्लेग बीमारी के बाद करोना काल में सबसे ज्यादा मृत्यु हुई।
रवींद्र जायसवाल ने कहा कि ऐसी संगोष्ठी के आयोजन से कृषि में नीतिगत निर्णय लेने में मदद मिलती है। आज का युवा ज्यादा पढ़-लिख कर सिर्फ सरकारी नौकरी की बात करता है। आधुनिक विधि से खेती में उचित प्रबंधन से अधिक आमदनी कमाई जा सकती है। समय है इस परिवर्तन को समझने का और युवाओं को कृषि से जोड़ने का।
समापन समारोह के विशिष्ट अतिथि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, प्रसार के उपमहाप्रबंधक डा. एके सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदीद्वारा एकसाथ राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न फसलों की प्रजातियाें को किसानों के लिए उपलब्ध कराया है। इसका मकसद बायो-फोर्टीफाइड प्रजातियों को देश के कोने-कोने में फैलाना है।
अनाज के माध्यम से ही पोषक तत्व की मात्रा जन-जन तक पहुंचाया जा सकता है। आज भी देश में लगभग 50 प्रतिशत महिलाए एवं बच्चे कुपोषित हैं। कुपोषण को दूर करने का सबसे आसान तरीका, अनाज में पोषक तत्वों की मात्रा को बढ़ाना है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली ने अपने योजना के माध्यम से, देश के सभी कृषि विज्ञान केन्द्रों में न्यूट्री-गार्डेन तथा न्यूट्री-थाली को पापुलर करने तथा हर घर को एक न्यूट्री-गार्डेन तैयार करने की महत्वाकांक्षी योजना चलायी है, जिससे जन-जागरूकता लायी जा सके।
राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे सोसाइटी के अध्यक्ष डॉ. यूएस गौतम ने कहा कि पिछले तीन दिवसों में प्रसार वैज्ञानिकों द्वारा मंथन किया गया है, जिसके परिणाम एवं रिकमेण्डेशन नीति निर्धारकों को उपलब्ध कराई जाएगी। इस अवसर पर सभी का राष्ट्रीय संगोष्ठी को सफल बनाने के लिए धन्यवाद ज्ञपित किया तथा विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ठ कार्य के लिए सम्मानित किए गए वैज्ञानिकों एवं छात्रों को बधाई दी। कृषि विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. रमेश चंद ने सभी का स्वागत एवं अभिवादन किया। कार्यक्रम के आयोजन-सचिव एवं प्रसार शिक्षा विभाग के विभागधायक्ष प्रो. बसवप्रभु जिर्ली ने बताया कि इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में कुल 413 वैज्ञानिकों एवं छात्रों तथा 50 किसानों ने प्रतिभाग किया। 15 सत्र में तीन ऑनलाइन मोड में कुल 15 लीड पेपर तथा 291 शोध-पत्रों को 25 राज्यों तथा 63 विश्वविद्यालयों से आये प्रतिभागियों द्वारा पढ़ा गया।
संगोष्ठी की मुख्य बात यह रही कि वैज्ञानिकों ने बताया कि कृषि प्रसार में नवीनता लाने एवं तकनीकी के प्रसार के लिए आइसीटी व डिजिटल माध्यमों के प्रयोग से हम किसानों तक अपनी बात को पहुंचा सकते है, इसके लिए अधिक से अधिक लोगों को विभिन्न प्रकार के पोर्टल एवं एप चलाने की जानकारी हेतु प्रशिक्षित भी करें। इस अवसर पर लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड उपमहाप्रबंधक, डा. एके सिंह को तथा प्रतिष्ठित ‘ओपी धामा अवार्ड’ डा. एमएस नैन तथा कृषि विज्ञान संस्थान के प्रसार शिक्षा विभाग के प्राध्यापक, डा. कल्यान घड़ेई को फेलो-अवार्ड दिया गया। इसके अलावा कृषि प्रसार के क्षेत्र में उत्कृष्ठ कार्य करने के लिए बहुत से वैज्ञानिकों को फेलो-अवार्ड, यंग-साइंटिस्ट-अवार्ड, केवीके-प्रोफेसनल-अवार्ड, बेस्ट शोध-पत्र वाचक तथा पोस्टर-अवार्ड से सम्मानित किया गया।