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Nirjala Ekadashi Vrat : शिव की नगरी काशी में भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए सनातनधर्मी रहे व्रत

जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी का व्रत करने का विधान है। ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार जेष्ठ शुक्ल एकादशी तिथि 20 जून को दिन में 12 02 मिनट बजे से लग रही है जो 21 जून को प्रातः 942 तक रहेगी।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Mon, 21 Jun 2021 10:52 AM (IST)Updated: Mon, 21 Jun 2021 01:52 PM (IST)
Nirjala Ekadashi Vrat : शिव की नगरी काशी में भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए सनातनधर्मी रहे व्रत
जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को 'निर्जला एकादशी' का व्रत करने का विधान है।

वाराणसी, जेएनएन। सनातन धर्म में जेष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को 'निर्जला एकादशी' का व्रत करने का विधान है। ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार जेष्ठ शुक्ल एकादशी तिथि 20 जून को दिन में 12: 02 मिनट बजे से लग रही है जो 21 जून को प्रातः 9:42 तक रहेगी। अतः निर्जला एकादशी का व्रत 21 जून को रखा जाएगा। व्रत की पारणा 22 जून को होगा।

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मान्यता के अनुसार इसका प्रारंभ द्वापर युग के महाभारत काल से माना जाता है। व्रत विधान के अनुसार निर्जला एकादशी के दिन प्रातः स्नान करके भगवान विष्णु के प्रीत्यर्थ संकल्प करना चाहिए। संकल्प में भगवान विष्णु के प्रसन्नार्थ निमित्त व्रत रहूंगा या रहूंगी जिससे भगवान विष्णु की कृपा प्रसाद प्राप्त हो। जिससे जीवन के समस्त पापों का नाश हो और अमोघ पुण्य की प्राप्ति हो। पुराणों के अनुसार एकादशी का व्रत रहने से आने वाले जन्म-जन्मांतर तक की पुण्य की प्राप्ति होती है। सनातन धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व बताया गया है।

महाभारत काल में पांडवों के उद्धारणार्थ जब महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तो भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को एकादशी के व्रत की महत्ता बताई। उस समय सभी भाई तो तैयार हो गए लेकिन भीम ने कहा कि भगवान मैं एक दिन भूखा नहीं रह सकता। तो मैं किस प्रकार व्रत रह पाउंगा। वर्ष के 24 एकादशी व्रत मैं कैसे रहूंगा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने भीम को बताया जो मनुष्य वर्ष के 24 एकादशी व्रत में से केवल ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को व्रत रह ले तो उसे वर्ष की 24 एकादशी का फल प्राप्त हो जाता है। तब से सभी सनातनी अक्षय पुण्य की प्राप्ति जन्म जन्मांतर के लिए निर्जला एकादशी का व्रत करने लगे। हालांकि सनातन धर्म में सभी चीजों का विधान बताया गया है। जन्म-जन्मान्तर के पापों के नाश के साथ ही प्रारब्ध और पुण्य प्राप्ति के लिए निर्जला एकादशी व्रत का अपना अलग महत्व है।


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