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Nirjala Ekadashi 2020 : सुराही दान कर संवारे अपना स्वास्थ्य और कमाएं पुण्य, आयु संग आरोग्य में वृद्धि

Nirjala Ekadashi 2020 निर्जला एकादशी के दिन सुराही या फिर घड़ा दान कर स्वास्थ्य के साथ पुण्य कमाने का भी मौका है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 02 Jun 2020 04:30 AM (IST)Updated: Tue, 02 Jun 2020 01:04 PM (IST)
Nirjala Ekadashi 2020 : सुराही दान कर संवारे अपना स्वास्थ्य और कमाएं पुण्य, आयु संग आरोग्य में वृद्धि
Nirjala Ekadashi 2020 : सुराही दान कर संवारे अपना स्वास्थ्य और कमाएं पुण्य, आयु संग आरोग्य में वृद्धि

वाराणसी, जेएनएन। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी को मनाए जाने वाले व्रत निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। इसे वर्ष भर की एकादशी में सबसे उत्तम फल देने वाला व्रत माना जाता है। इस बार निर्जला एकादशी दो जून यानी आज है। जैसा की नाम से ही पता चलता है कि इसमें जल का विशेष महत्व होता है। कोरोना संक्रमण के इस दौर में जहां चिकित्सक अत्यधिक ठंडी चीजों के खाने पीने से परहेज की सलाह दे रहे हैं ऐसे में फ्रीज की जगह सुराही या घड़े का पानी ही स्वास्थ्यवर्धक होगा। इस तरह इस बार निर्जला एकादशी के दिन सुराही या घड़ा दान कर स्वास्थ्य के साथ पुण्य कमाने का भी मौका है।

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प्रचंड गर्मी के बीच इस व्रत को निर्जला अर्थात बिना जल के ही रहने की परंपरा है लेकिन आधुनिकीकरण के इस दौर में निराजल की जगह लोग इस व्रत को फलाहार भी कर रहे हैं। इस व्रत में उन्हीं चीजों का दान या भगवान विष्णु को अर्पण किया जाता है जिसमें शीतलता रहती है। इसलिए लोग आज के दिन पौसरा भी शुरू कराते हैं। साथ ही मन को शीतल देने वाली चीजें जैसे घड़ा, सुराही, चने और जौ की सत्तू, गुड़, तरबूज, खरबूज, खजूर के पत्तों के पंखे इत्यादि का दान करने का महत्व है। इस दिन अधिकतर लोग घड़ा का दान करते हैं। सुंदरपुर बाजार के राजेश प्रजापति का कहना है कि घड़ा की बिक्री निर्जला एकादशी के दिन सर्वाधिक होती है। कोरोना संक्रमण को देखते हुए चिकित्सक जब फ्रीज का पानी न पीने की सलाह दे रहे हैं ऐसे में इस बार लोग घड़े और सुराही की खरीदारी दोगुना से अधिक कर रहे हैं।

ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी एक जून को सुबह 11.55 बजे से लग रही है जो दो जून को सुबह 9.24 बजे तक रहेगी। नाम के अनुसार व्रत को निर्जला करने से आयु और आरोग्य में वृद्धि होती है। महर्षि व्यास के कथनानुसार अधिमास सहित एक वर्ष की 25 एकादशी व्रत न किया जा सके तो केवल निर्जला एकादशी व्रत करने से पूरा फल प्राप्त हो जाता है। दृढतापूर्वक नियम पालन के साथ निर्जल उपवास करके द्वादशी को स्नान करने के बाद सामथ्र्य अनुसार स्वर्ण व जल युक्त कलश दान का विधान है। इस व्रत को महाभारत काल में पांडवों में भीमसेन ने भी किया था। इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है। एक बार बहुभोजी भीमसेन ने व्यास जी के मुख से प्रत्येक एकादशी को निराहार रहने का नियम सुनकर विनम्र भाव से कहा कि महाराज मुझसे कोई व्रत नहीं किया जाता है। दिन भर बड़ी तीव्र क्षुधा बनी रहती है अत: ऐसा उपाय बताइए जिसके प्रभाव से स्वत: सद्गति हो जाए। तब व्यास जी ने केवल एक निर्जला व्रत की सलाह दी।

इन चीजों का करना चाहिए दान

जल से भरे कलश, सफेद वस्त्र, शक्कर, छाता, खजूर के पत्तों से बने हाथ के पंखे, तरबूज, खरबूज इत्यादि ऐसी चीजे जो शरीर को राहत पहुंचाए।

कोरोना काल में बढ़ जाता हैै इसका महत्व

निर्जला एकादशी के व्रत में जिस तरह पानी का एक बूंद न लेने का संकल्प लिया जाता है। यह मनुष्य के धैर्य पराकाष्ठा ही है। इसी तरह कोरोना संक्रमण ने भी मनुष्य के धैर्य की परीक्षा ही ली है। घर से न निकलना, शारीरिक दूरी बनाए रखना सहित तमाम बंदिशें जिस पर आम आदमी ध्यान नहीं देता था। अब हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन चुकी है। ख्यात ज्योतिषाचार्य पंडित दीपक मालवीय का कहना है कि जिस तरह की नियम की दृढ़ता निर्जला एकादशी में है उसकी याद कोरोना ने एक बार फिर से सनातन धर्मियों को दिला दी है।

बाबा का करेंगे जलाभिषेक

काशी में निर्जला एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ के जलाभिषेक की परंपरा है। पिछले दो दशक से अधिक समय से यह परंपरा काशीवासी निभा रहे हैं। इस वर्ष कोरोना संक्रमण के कारण श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर न्यास ने मंगलवार को कलश ले जाने वाले 11 श्रद्धालुओं के साथ चार डमरू वादकों को मंदिर में जाने की मंजूरी दी है। जो शरीरिक दूरी का ध्यान रखते हुए बाबा का जलाभिषेक करने के बाद वापस आ जाएंगे।


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