नई शिक्षा नीति : अब उपाधियों के लिए नहीं लगानी होगी विश्वविद्यालय की दौड़, गुणवत्ता को लेकर बढ़ेगी प्रतिस्पर्धा
नई शिक्षा नीति में विश्वविद्यालयों की भांति उत्कृष्ट महाविद्यालयों को भी स्वायत्त प्रदान करने की बात की बात की गई है।
वाराणसी, जेएनएन। नई शिक्षा नीति में विश्वविद्यालयों की भांति उत्कृष्ट महाविद्यालयों को भी स्वायत्त प्रदान करने की बात की बात की गई है। ऐसे में अब महाविद्यालय भी विश्वविद्यालय की भांति विभिन्न पाठ्यक्रमों की परीक्षा कराने के लिए स्वतंत्र होंगे, अपितु वह परीक्षार्थियों को अंकपत्र व उपाधि भी देने के लिए सक्षम होंगे। ऐसे में अब महाविद्यालयों में पढऩे वाले छात्रों को उपाधियों के लिए विश्वविद्यालय की दौड़ नहीं लगानी होगी। वहीं महाविद्यालय भी अब अपनी पहचान बनाने का मौका मिलेगा।
वर्तमान में विश्वविद्यालय संबद्ध कालेजों के छात्रों की भी परीक्षा कराता है। यही नहीं अंकपत्र व उपाधि भी जारी करने का अधिकार विश्वविद्यालय के पास ही है। संबद्ध कालेजों के छात्रों की परीक्षा कराने के कारण ज्यादाता विश्वविद्यालयों की आर्थिक स्थिति में मजबूत है। वहीं सच्चाई यह भी है विभिन्न जिलों के प्राचार्यों व छात्रों को बार-बार विश्वविद्यालय का चक्कर काटना पड़ता है। सबसे बड़ी समस्या छात्रों की उपाधि को लेकर थी। प्रतिवर्ष दीक्षा समारोह होने के बाद विश्वविद्यालय छात्रों को समय से उपाधि नहीं उपलब्ध करा पा रहे हैं। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में प्रतिवर्ष करीब एक लाख परीक्षार्थी स्नातक व स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल करते हैं। कंप्यूटरकृत होने के बावजूद एक लाख विद्यार्थियों को विद्यापीठ प्रतिवर्ष डिग्री नहीं मुहैया करा पा रहा है। वर्ष २०१७ की डिग्री अब भी लंबित हैं। ऐसे में विद्यार्थियों को अस्थायी उपाधि से काम चलाना पड़ता है। हालांकि आश्वयकता पडऩे पर विशेष परिस्थितियों में विद्यापीठ प्रशासन परीक्षार्थियों को उपाधि उपलब्ध कराता है लेकिन इसके लिए परीक्षार्थियों को स्पष्ट कारण बताना होता है। ऐसे में नई शिक्षा नीति में संबद्धता की नई प्रक्रिया, स्वायत्त संस्थान बनाने के प्रावधान से लाखों छात्रों के राहत मिलनी तय है।
सभी के लिए एक समान नियम
नई शिक्षा नीति में सरकारी, निजी, डीम्ड सभी संस्थानों के लिए समान नियम बनाने की भी बात शामिल है। ऐसे में निजी व सरकारी विद्यालयों का भी भेद खत्म होगा। वहीं शुल्क नियंत्रित करने का भी प्रावधान किया गया है। ऐसे में निजी विद्यालय मनमानी शुल्क वसूली नहीं कर सकेंगे।
छठी कक्षा से रोजगारपरक शिक्षा
नई शिक्षा नीति के तहत अब छठी कक्षा से ही बच्चे को प्रोफेशनल और स्किल की शिक्षा दी जाएगी। स्थानीय स्तर पर इंटर्नशिप भी कराई जाएगी। व्यावसायिक शिक्षा और कौशल विकास पर जोर दिया जाएगा। नई शिक्षा नीति बेरोजगार तैयार नहीं करेगी। स्कूल में ही बच्चे को नौकरी के जरूरी प्रोफेशनल शिक्षा दी जाएगी।
पांचवीं तक मातृभाषा में पढ़ाई
नई शिक्षा नीति में पांचवीं तक मातृभाषा में ही शिक्षा उपलब्ध कराने का भी प्रावधान शामिल हैं। ऐसे में अब अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में भी हिंदी माध्यम से पढ़ाई होगी। वहीं त्रि-भाषा फार्मूला से हिंदी के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषा का भी विकास होगा। अब किसी भी विद्यार्थी पर कोई भी भाषा नहीं थोपी जाएगी। अब विद्यार्थियों को स्कूल के सभी स्तरों और उच्च शिक्षा में संस्कृत को एक विकल्प के रूप में चुनने का अवसर दिया जाएगा। भारत की अन्य पारंपरिक भाषाएं और साहित्य भी विकल्प के रूप में उपलब्ध होंगे।