बोले पुरी पीठाधीश्वर, राम मंदिर निर्माण के लिए चाहिए सरदार पटेल जैसा मनोबल
पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने सोमनाथ मंदिर का हवाला देते हुए कहा सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसा मनोबल किसी दूसरे राजनेता में नहीं दिखता।
वाराणसी, जेएनएन । राम मंदिर निर्माण में विलंब को लेकर पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती व्यथित हैं। दो दिनी काशी प्रवास पर आए शंकराचार्य की पीड़ा सोमवार को अस्सी स्थित मठ में मीडिया से बातचीत में छलक पड़ी। उन्होंने सोमनाथ मंदिर का हवाला देते हुए कहा सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसा मनोबल किसी दूसरे राजनेता में नहीं दिखता। नेहरू ने मंदिर के लिए तय स्थान का समर्थन नहीं किया। इसके बाद भी वल्लभ भाई पटेल ने अपनी सूझबूझ से इसका शिलान्यास कराया।
उस स्थान पर शताधिक मुसलमान रहते थे लेकिन न गोली चली और न ही गाली, उन्होंने सभी को उचित स्थान दिलाया। वास्तव में भाव, नीति व नीयत शुद्ध होने के साथ नीतियों का क्रियान्वयन भी शुद्ध होना चाहिए। इस कार्य में लगी टीम सज्जन और सूझबूझ वाली हो तभी किसी चीज में सफल हो सकते हैं लेकिन यहां तो सिर्फ खेल ही खेल चल रहा है। शंकराचार्य ने कहा कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में किसी भी दल ने रामजी का होकर भी रामजन्म भूमि का समाधान नहीं किया। सभी अपना ही हित साधने के लिए कार्य करते हैं। भावना में त्रुटि, नीति में त्रुटि व नीयत में त्रुटि के कारण ऐसा है।
परंपरा प्राप्त आचार्य उपेक्षित : पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य ने कहा देश की मुख्य समस्या यह है कि परंपरा प्राप्त आचार्य अपने सिद्धांतों पर टिके हैं और सरकारी एजेंट नहीं हैं। ऐसे आचार्यों या धार्मिक लोगों से कुछ पूछना दूर राजनेता बात तक नहीं करते। इससे इतर जिन लोगों को देश की समझ व पहचान तक नहीं, वे धार्मिक समस्याओं का समाधान करते हैं। वे संत-महात्मा और महामंडलेश्वर तक बना रहे हैं। कुंभ व्यवस्था के लिए नेता व अधिकारी उन्हें अधिकृत कर रहे हैं। राष्ट्र संचालन की दिशा, राजनीति व धर्म की परिभाषा तक जिन्हें ठीक से नहीं मालूम वे राजनेता धार्मिक समस्याओं का समाधान कर रहे हैं।
राजनेताओं के मकडज़ाल से मुक्ति जरूरी : स्वामी निश्चलानंद ने कहा कि देश को राजनेताओं के मकडज़ाल से मुक्त कराना समस्या है। इसमें गलती उन लोगों की नहीं हम लोग ही दोषी हैं क्योंकि परंपरा प्राप्त आचार्यों ने समवेत होकर अपने दायित्वों का निर्वहन किया होता तो ऐसी नौबत नहीं आती। ऐसे में देश में जो विसंगतियां है, उनका श्रेय हमें (संतों को) ही मिलना चाहिए, इसकी वेदना होती है। शंकराचार्य का अर्थ शास्त्रों पर शासन करने वाला होता है, लेकिन हम ऐसा नहीं कर पाए। सुबह अस्सी स्थित मठ आए शंकराचार्य ने सुबह राष्ट्र धर्म पर आधारित संगोष्ठी को संबोधित किया और सायंकाल प्रवचन दिया। वे मंगलवार सुबह ट्रेन से पुरी के लिए प्रस्थान करेंगे।