राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस : कृमि से मुक्ति के लिए आयुर्वेद में बचाव के लिए कई उपाय
जून 2018 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वरा जारी आकड़ों के अनुसार पूरे विश्व में 1.3 अरब लोग कृमिरोग से पीड़ित है।
वाराणसी, जेएनएन। कृमि रोग अर्थात पेट में कीड़े होना एक साधारण बीमारी समझी जाती है, लेकिन यदि इसका इलाज न किया जाए तो यह रोग कई जटिलताएं जैसे रक्ताल्पता, कुपोषण, आंतों में रुकावट, एलर्जी इत्यादि कई जानलेवा रोगों का कारण भी बन सकता है। जून 2018 में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वरा जारी आकड़ों के अनुसार पूरे विश्व में 1.3 अरब लोग कृमिरोग से पीड़ित है। जिसमें से केवल भारत में 1 से 14 वर्ष के 241 मिलियन बच्चों में इसका संक्रमण है।
कृमि रोग से बचाव के लिए भारत सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष दो बार 10 फरवरी और 10 अगस्त को राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस मनाया जाता है। जिसमें 1 से 19 साल तक के बच्चों को दवाएं प्रदान की जाती है। आयुर्वेद में कृमि रोग से कैसे बचाव कर सकते है इसके उपयों को बता रहे है चौकाघाट स्थित राजकीय स्नातकोत्तर आयुर्वेद महाविद्यालय एवं चिकित्सालय , वाराणसी के कायचिकित्सा एवं पंचकर्म विभाग के वैद्य डॉ अजय कुमार-
आयुर्वेद में कृमि रोग का वर्णन लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व से ही चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे ग्रंथों में मिलता है। आयुर्वेद में कृमि से 20 भेद बताये गए है जिसमे से रक्तज, पुरीषज, कफज कृमि के अलग अलग प्रकार बताये गए है।
कृमि रोग के लक्षण क्या है
1- अनायास मिचली या उल्टियां होना,
2- दस्त लगना तथ
3- पेट दर्द होना आम लक्षण हैं।
4- बच्चे दुबले और कमजोर हो जाते हैं।
5- ये कीड़े कभी-कभी उल्टी में मुंह अथवा नाक अथवा मल द्वार से बाहर भी निकल सकते हैं।
6- कुछ बच्चे या बड़े कृमि रोग के कारण दमा जैसे लक्षणों अर्थात् सांस फूलना, खांसी आना इत्यादि के शिकार हो जाते हैं।
7- कई एलर्जी के लक्षण उत्पन्न करते है।
कैसे बचाव कर सकते है
बचाव के लिए सावधानियां निम्नलिखित हैं-
1- सब्जियां और फलों का उपयोग खूब अच्छी तरह धोकर करें, सब्जियों को दो-तीन बार पानी में डुबोकर अच्छी तरह साफ करना चाहिये, उन्हें नल की तेज धार के नीचे साफ करें
2- मांसाहारी लोगों को चाहिये कि वे सुअर व गाय के मांस से बचें तथा कम पका या अधपका मांस भी न खाएं।
3- स्वच्छ पानी ही पियें, इसके लिये फिल्टर का उपयोग करें या आवश्यकतानुसार पानी को उबालकर पीनी चाहिये।
4- घरों में मल एवं गंदगी के निकास की उचित व्यवस्था करवाएं। जहां तक संभव हो शौचालय कुछ अलग स्थान में रखने चाहिए।
5- कुंओं और जलाशयों की नियमित सफाई आवश्यक है। ऐसे स्थानों के पास अथवा खेत इत्यादि में शौच क्रिया न करें।
6- चिकित्सक की सलाह पर वर्ष में एक या दो बार कृमिनाशक दवाइयों का सेवन भी किया जा सकता है।
आयर्वेद में इलाज
1- नागरमोथा, देवदार, दारुहल्दी, वायविडंग, पीपल, हरड़, बहेड़ा और आंवला के सेवन से कृमि रोग नहीं होता है।
2 - कृमि कुठार रस, कृमि मुद्गर रस, विडंग चूर्ण और विडंगारिष्ट के सेवन से कृमि बाहर आ जाते है।