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पातालपुरी मठ में महंत बालक दास को गुरु मानकर पूजन करने पहुंचीं मुस्लिम महिलाएं Varanasi news

गुरु पूर्णिमा पर्व के मौके पर काशी में गुरु पूजा की धूम रही मगर पुरातन परंपराओं के बीच पातालपुरी मठ ने सबसे अलग संदेश दिया।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Tue, 16 Jul 2019 03:57 PM (IST)Updated: Tue, 16 Jul 2019 10:48 PM (IST)
पातालपुरी मठ में महंत बालक दास को गुरु मानकर पूजन करने पहुंचीं मुस्लिम महिलाएं Varanasi news
पातालपुरी मठ में महंत बालक दास को गुरु मानकर पूजन करने पहुंचीं मुस्लिम महिलाएं Varanasi news

वाराणसी, जेएनएन। गुरु पूर्णिमा पर्व के मौके पर काशी में गुरु पूजा की धूम रही, मगर पुरातन परंपराओं के बीच पातालपुरी मठ ने सबसे अलग संदेश दिया। पातालपुरी मठ के पीठाधीश्वर महंत बालक दास लम्बे अर्से से हिन्दू-मुस्लिम एकता और सामाजिक समरसता का पाठ समाज को पढ़ाते रहे हैं। उन्होंने अपने मठ के द्वार सभी धर्मों और जातियों के लिये खोल रखा है। अपने गुरू के प्रति सम्मान जताने के लिए बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग भी गुरु पूर्णिमा के मौके पर पहुंचे।

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मुस्लिम महिला फाउण्डेशन की नेशनल सदर नाजनीन अंसारी ने मुस्लिम महिलाओं के साथ अपने गुरू महंत बालक दास की आरती उतारी और रामनामी दुपट्टा भेंट किया। मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के पूर्वांचल प्रभारी मो. अजहरूद्दीन एवं महानगर संयोजक हाफिज शमीम अहमद ने गुरू बालक दास को माल्यार्पण कर सलामी पेश की। मुस्लिम समुदाय के लोगों ने गुरूपूर्णिमा पर अपने गुरू को सम्मान देकर यह संदेश दिया कि धर्म और जाति से ऊपर होता है गुरू। अंधकार से ज्ञान की ओर ले जाने वाला गुरू वही है जो सच्चे मन से इंसानियत, मानवता और देशभक्ति का पाठ पढ़ाता हो। जो नफरत फैलाता है, समाज और देश तोड़ने की बात करता है वह किसी का गुरू नहीं हो सकता।

मिट गए धार्मिक भेद

इस अवसर पर पातालपुरी मठ के पीठाधीश्वर महंत बालक दास ने कहा कि ‘पातालपुरी मठ ईश्वर का स्थान है। यहां धर्म-जाति का भेद नहीं हो सकता। छूआछूत खत्म करने के लिये मठ आंदोलन चला रहा है। सभी धर्मों के मूल में मानवता, सेवा और देशभक्ति शामिल है। मुस्लिम समुदाय के लोग भी मठ के लंबे समय से शिष्य हैं। यहां होने वाली रामकथा में भी मुस्लिम समुदाय के लोग भाग लेते हैं। हमारा मठ रामानन्दी सम्प्रदाय का है जहां धर्म जाति का भेद किया ही नहीं जा सकता। हमारे सम्प्रदाय के ही महान संत कबीर भी काशी में ही धार्मिक और सामाजिक एकता के अग्रदूत थे। प्रत्येक मानव को अज्ञानता और कट्टरता के अंधकार से मुक्त होने के लिये गुरू की जरूरत होती है। गुरू के बिना ज्ञान किसी भी कीमत पर संभव नहीं है। तभी तो कबीर ने कहा था ‘गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागो पांव, बलिहारी गुरू आपने, गोविन्द दियो बताय।’ परमात्मा तक पहुंचने का मार्ग भी गुरू ही बताता है।

मुस्लिम समुदाय के लोगों को जमावड़ा

विशाल भारत संस्थान के अध्यक्ष डा. राजीव श्रीवास्तव ने कहा कि ‘धर्म, जाति, गोत्र देखकर गुरू नहीं बनाये जाते। गुरू भी धर्म-जाति के अनुसार शिष्य नहीं बनाते। कभी महान संत रामानन्द ने सभी धर्मों और जातियों के लोगों को अपना संत बनाकर भारतीय संस्कृति की एकता को स्थापित किया था। आज भी उसी परंपरा की जरूरत है। मुस्लिम महिला फाउण्डेशन की नेशनल सदर नाजनीन अंसारी ने कहा कि ‘देश और समाज को जोड़ने वाले गुरू की जरूरत है। जो तोड़ने और अलग करने की बात करता है, नफरत फैलाता है वही किसी का गुरू नहीं हो सकता। भेदभाव करने वाला इंसान किसी धर्म का नहीं होता। अपने गुरू के प्रति सम्मान सबका फर्ज है। इस अवसर पर अर्चना भारतवंशी, नजमा परवीन, सोनी अंसारी, रूखसाना, रूखसार, शहनाज, अजमती, रशीदा, मैमुननिशा, इब्राहिम, हबीबुल्ला, मजीद अंसारी, मंजुरूलहक, नसरूद्दीन, महताब आलम, धनंजय यादव, शिवेन्द्र सिंह, खुशी रमन, उजाला, शालिनी, दक्षिता भारतवंशी आदि लोग मौजूद रहे।


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