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मुन्ना बजरंगी की गोली ने बदल दी थी काशी विद्यापीठ छात्रसंघ की परंपरा

राम प्रकाश पांडेय ने अध्यक्ष पद की शपथ भी नहीं ली थी। ऐसे में विद्यापीठ को जून 1997 को अध्यक्ष पद के लिए दोबारा चुनाव कराना पड़ा और तब डा. नंदू सिंह अध्यक्ष निर्वाचित हुए।

By Ashish MishraEdited By: Published: Tue, 10 Jul 2018 10:04 AM (IST)Updated: Tue, 10 Jul 2018 02:38 PM (IST)
मुन्ना बजरंगी की गोली ने बदल दी थी काशी विद्यापीठ छात्रसंघ की परंपरा
मुन्ना बजरंगी की गोली ने बदल दी थी काशी विद्यापीठ छात्रसंघ की परंपरा

वाराणसी (जेएनएन)। विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों में पहले छात्रसंघ के पदाधिकारी भव्य समारोह में शपथ लेते थे। शपथ ग्रहण समारोह में हजार-पांच सौ लोगों का हुजूम जुटता था। समारोह में संबद्ध पार्टी के नेता भी आमंत्रित किए जाते रहे लेकिन यह परंपरा वर्ष 1997 में मुन्ना बजरंगी की गोली ने बदल दी। अब छात्रसंघ चुनाव का परिणाम जारी होते ही निर्वाचित पदाधिकारियों को तत्काल शपथ दिला दी जाती है। 

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दरअसल, छह अप्रैल 1997 को बीएचयू अस्पताल में भर्ती सपा के पूर्व विधायक सत्य प्रकाश सोनकर को देखकर वापस लौट रहे महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के निर्वाचित छात्रसंघ अध्यक्ष रामप्रकाश पांडेय, पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष सुनील राय, भोनू मल्लाह समेत चार लोगों की नरिया में मुन्ना बजरंगी ने एके 47 से गोलियां बरसाकर हत्या कर दी थी।

राम प्रकाश पांडेय ने अध्यक्ष पद की शपथ भी नहीं ली थी। ऐसे में विद्यापीठ को जून 1997 को अध्यक्ष पद के लिए दोबारा चुनाव कराना पड़ा और तब डा. नंदू सिंह अध्यक्ष निर्वाचित हुए। पिछली घटना से सबक लेते ही विद्यापीठ प्रशासन ने परिणाम घोषित होते ही डा. नंदू को अध्यक्ष पद की शपथ दिला दी।  

मुन्ना बजरंगी की धमक बनारस में पहली बार 1985 में महसूस की गई। कैंट थाना क्षेत्र के खजुरी में रात में घर लौट रहे सगे भाइयों कृष्ण कुमार सिंह उर्फ बड़े सिंह और राजेंद्र सिंह उर्फ छोटे सिंह की एके-47 से ताबड़तोड़ गोलियां बरसाकर हत्या कर दी गई। उस मामले में पहली बार मुन्ना बजरंगी का नाम आया था। अपनी जमीन मजबूत करने के बाद उसने छह अप्रैल, 1997 की रात्रि उसने छात्रनेताओं की हत्या की। 18 गोली लगने के बाद भी सपा नेता राजेंद्र त्रिवेदी बाल-बाल बच गए थे।

इसके बाद फिर दिसंबर, 2001 में सिगरा थाना क्षेत्र के मलदहिया के पास एक साथ पांच लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस हत्या में भी एके-47 का प्रयोग किया गया था। हत्याकांड में फिर से मुन्ना बजरंगी का नाम आने से न सिर्फ बनारस बल्कि जरायम की दुनिया में हलचल मच गई थी। इसके बाद एक-एक कर बनारस में उस पर 14 मुकदमे दर्ज हुए। हालांकि जेल जाने से कुछ वर्ष पूर्व से उसने दिल्ली, लखनऊ, बनारस सहित कई जिलों में उसने मकान, दुकान व होटलों को खरीदना शुरू किया था।

बनारस में 14 मुकदमे दर्ज

पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, कैंट थाना में दो, मंडुआडीह, लंका, जैतपुरा, सारनाथ व दशाश्वमेध थाना में एक-एक, चेतगंज में दो, शिवपुर में तीन व कोतवाली दो मुकदमे दर्ज हैं। इनमें अधिकतर में हत्या के या हत्या के प्रयास में वह शामिल था। बजरंगी अपने सजातीय अठारह गांवों, जिसको अठरही कहा जाता है, का चहेता था। वर्ष 2002 से पहले पुलिस जब भी उसे खोजती थी तो वह सुरेरी, नोनरा, सुल्तानपुर, भट्टी भरतराय, किरतराय, मारिकपुर, भरतीपुर सहित 11 गांवों में शरण लेता था।


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