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जौनपुर की रामलीला में मोहम्मद शब्बीर बनते हैं रावण तो भुल्लर मियां रहते है रामजी की सेना में

वर्ष 1974 में कस्बे के मो.शब्बीर व मो.शरीफ की तैयार पटकथा से रामलीला का मंचन अनवरत जारी है। गंगा-जमुनी तहजीब को पिरोने वाली इस रामलीला समिति को कई राज्य स्तरीय पुरस्कार पाने का गौरव भी हासिल है। सोमवार से शुरू हो रही रामलीला की तैयारी पूरी कर ली गई है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 17 Oct 2021 01:58 PM (IST)Updated: Sun, 17 Oct 2021 01:58 PM (IST)
जौनपुर की रामलीला में मोहम्मद शब्बीर बनते हैं रावण तो भुल्लर मियां रहते है रामजी की सेना में
वर्ष 1974 में कस्बे के मो.शब्बीर व मो.शरीफ की तैयार पटकथा से रामलीला का मंचन अनवरत जारी है।

जौनपुर, [शरद कुमार सिंह]। ईश्वर अल्ला तेरो नाम...। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की इन पंक्तियों को पूरी तरह से चरितार्थ कर रहे हैं गुलजारगंजवासी। एक ओर जहां समाज में धार्मिक विद्वेष बढ़ रहा है तो वहीं राम-रहीम के रंग में रंगी गुलजारगंज की ऐतिहासिक रामलीला सबके लिए मिसाल पेश करती है। इस रामलीला का खासियत है कि लगभग दो दर्जन सदस्यों वाली समिति में आधा दर्जन मुसलमान रामलीला में किरदार निभाते हैं। वहीं वर्ष 1974 में कस्बे के सगे भाई मो.शब्बीर व मो.शरीफ की तैयार पटकथा से रामलीला का मंचन अनवरत जारी है। गंगा-जमुनी तहजीब को पिरोने वाली इस रामलीला समिति को कई राज्य स्तरीय पुरस्कार पाने का गौरव भी हासिल है। सोमवार से शुरू हो रही रामलीला की तैयारी पूरी कर ली गई है।

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सात दिनों तक चलने वाली रामलीला का मंचन कब से शुरू हुआ इसकी सही जानकारी किसी के पास नहीं है। बाजार निवासी बुजुर्ग बताते हैं कि लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व यहां रामलीला का मंचन शुरू हुआ। जिसे नौ दशक पूर्व टेकारी गांव निवासी जमींदार गुलजार सिंह ने गुलजारगंज बाजार में रामलीला मैदान की जगह सुरक्षित कराकर नए ढंग से शुरू कराया। तत्पश्चात बाजारवासी बालादीन गुप्ता व उनके पुत्र महादेव के साथ टेकारी गांव निवासी शिव शंकर सिंह, फेकू सिंह व जगदम्बा सिंह ने मंचन कार्य का नेतृत्व किया।

प्रारंभ में रामलीला का संवाद रामचरित मानस, राधेश्याम तर्ज पर होता था। समिति के प्रबंधक रईया गांव के पूर्व प्रधान अच्छेलाल सेठ व अध्यक्ष सत्य नारायण मिश्र ने बताया कि इस रामलीला का मंचन विजय दशमी के बाद दीपावली के पहले किया जाता है। इस रामलीला में मोहम्मद शमीम जहां रावणी दल में रावण के मंत्री का किरदार निभाकर लोगों को आकर्षित करते हैं वहीं भुल्लर मियां बानरी सेना के साथ ही सुमित्रा के रोल में रामलीला का मुख्य आकर्षण होते हैं। रामलीला देखने वाले दर्शकों में भी मुसलमान महिलाओं व बच्चों की भीड़ अंत तक जुटी रहती है। यहां की सबसे बड़ी खासियत यह है कि मोहम्मद शब्बीर व उनके भाई मोहम्मद शरीफ द्वारा तैयार की गई स्क्रिप्ट से रामलीला का मंचन होता है।

इसके अलावा अच्छेलाल हलवाई व छोटेलाल जैसे बुजुर्ग कलाकार अभी भी मंचन का कार्य करने के साथ ही सराहनीय योगदान करते हैं। यहां मंचन के लिए देश-विदेश में नौकरी करने वाले अवकाश लेकर आते हैं। गुलजारगंज ही नही बल्कि जनपद की धरोहर बन चुकी इस ऐतिहासिक रामलीला की एक अलग ही पहचान है। इस रामलीला को देखने के लिए देश-परदेश में रहने वाले लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं। लोग अवकाश लेकर मंचन करने आते हैं। यहां पर केवल हिंदू ही नहीं, बल्कि मुस्लिम समाज के लोग भी इस रामलीला में अपना पूरा सहयोग देते हैं।

वर्षों से निभा रहे हैं किरदार : रामलीला में कुछ ऐसे भी कलाकार हैं जो एक ही पात्र वर्षों से करते चले आ रहे हैं। बाजारवासी छोटेलाल हलवाई दशरथ व केवट का किरदार लगभग दो दशक से निभा रहे हैं जबकि राम का किरदार रतन अग्रहरि, सूपर्णखा का राधेश्याम, लक्ष्मण का ओमकार, हनुमान का रवि हलवाई, परशुराम का सुरेश तिवारी, जनक का राधेश्याम मिश्र, सीता का रोहन जायसवाल व रावण का सूरज जायसवाल नारद का किरदार सूरज गत दस साल से कर रहे हैं। हनुमान का किरदार गत तीन दशक से एक ही परिवार के सदस्य बखूबी निभा रहा है। यह रामलीला विभिन्न संप्रदायों के लोगों को आपस में जोड़ने का काम तो किया ही, आजादी के बाद समाज में जागरुकता लाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मन को छू जाता है पार्श्‍व गायन : गुलजारगंज की रामलीला की एक विशिष्टता इसका पार्श्‍व गायन भी है। रामलीला मंचन में पात्र स्वयं गाकर अभिनय करते है। कुछ ऐसे भी गीत, छंद, दोहा व चौपाई है जो पार्श्‍व गायन से गाया जाता है। इससे रंगमंच पर कलाकार के सामने आने वाली कतिपय समस्याओं से उसे छुटकारा मिलता है और कलाकार अभिनय पर अधिक ध्यान देने लगे। पार्श्‍व गायन रामलीला के मजे हुए कलाकार कई वर्षों तक राम का अभिनय कर चुके अशोक जायसवाल, रवि हलवाई, रतन अग्रहरि, शिवपूजन पटवा करते है।


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