वाराणसी में आज बंद रहेगी मांस व मछली की दुकानें, संत टीएल वासवानी की जयंती पर बंदी का आदेश
नगर में बुधवार को मांस व मछली की दुकानें बंद रहेेंगी। यह आदेश नगर निगम के पशु चिकित्सालय व कल्याण विभाग की ओर से मंगलवार को जारी किया गया। संत टीएल वासवानी की जयंती के अवसर पर मांस मछली मुर्गे आदि की समस्त दुकानें बंद रखने को कहा गया है।
वाराणसी, जेएनएन। नगर में बुधवार को मांस व मछली की दुकानें बंद रहेेंगी। यह आदेश नगर निगम के पशु चिकित्सालय व कल्याण विभाग की ओर से मंगलवार को जारी किया गया। यह निर्णय शासन स्तर पर लिया गया है। संत टीएल वासवानी की जयंती के अवसर पर मांस, मछली, मुर्गे आदि की समस्त दुकानें बंद रखने को कहा गया है। इस आदेश का अनुपालन नहीं करने वाले दुकानदारों के विरुद्ध नियमानुसार कठोर कार्यवाही की जाएगी।
संत टीएल वासवानी (थांवरदास लीलाराम वासवानी) का जन्म 25 नवंबर 1879 हैदराबाद, ङ्क्षसध में हुआ था। निधन 16 जनवरी 1966 पुणे महाराष्ट्र हुआ। पिता का नाम लीलाराम व माता का नाम वरणदेवी था। संत टीएल वासवानी एमए की उपाधि प्राप्त कर विभिन्न कालेजों में अध्यापन का कार्य किया। फिर टीजी कालेज में प्रो. नियुक्त हुए। लाहौर के दयाल ङ्क्षसह कालेज, कूच बिहार के विक्टोरिया कालेज और कलकत्ता के मेट्रोपोलिटन कालेज में पढ़ाने के पश्चात पटियाला के महेंद्र कालेज के प्राचार्य बने। उन्होंने कलकत्ता कालेज में प्रवक्ता के रूप में काम किया। बाद में स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। उन्होने कई पुस्तकों की भी रचना की। संत वासवानी ने जीव हत्या बंद करने के लिए जीवन पर्यंत प्रयास किया। वे समस्त जीवों को एक मानते थे। जीव मात्र के प्रति उनके मन में अगाध प्रेम था। जीव हत्या रोकने के बदले वे अपना शीश तक कटवाने के लिए तैयार थे। केवल जीव जन्तु ही नहीं उनका मत था कि पेड़ पौधों में भी प्राण होते हैं। संत वासवानी भारत के प्रतिनिधि के रूप में विश्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए बर्लिन गए। वहां पर उनका प्रभावशाली भाषण हुआ। बाद में वह पूरे यूरोप में धर्म प्रचार का कार्य करने के लिए गए। उनके भाषणों का बहुत गहरा प्रभाव लोगों पर होता था।