वाराणसीः बची हुई दवाओं का दान, गरीबों की बचा रही जान
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के मेडिकल छात्र कामेश्वर मिश्रा ने। एक ही दवा बैंक खोला है। भविष्य में यह संख्या चार करने की योजना है।
By Nandlal SharmaEdited By: Published: Mon, 09 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Mon, 09 Jul 2018 06:00 AM (IST)
धरती के भगवान कहे जाने वाले चिकित्सकों में से कुछ ऐसे भी हैं जो पेशे से हटकर समाज के लिए कुछ ऐसा कर जाते हैं जो नजीर बन जाता है। जनसेवा में अभी तक रक्तदान, अन्नदान, नेत्रदान या धनदान का नाम सुना होगा, लेकिन काशी में दवा दान भी की जा सकती है।
यह दान की हुई दवाएं किसी गरीब के ही काम आती हैं। इसके लिए पहल की है चिकित्सा विज्ञान संस्थान, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के मेडिकल छात्र कामेश्वतर मिश्रा ने। इसके लिए परिसर में दो वर्षों से मेडिबॉक्स लगा कर दवाएं संकलित की जा रही हैं। बॉक्स में मरीज या उनके परिजन बची हुई दवा डाल जाते हैं। उसको एकत्रित कर सर सुंदरलाल अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में जमा किया जाता है।
यहां पर जमा दवाओं की बकायदा रिसीविंग ली जाती है और शर्त रखी जाती है कि जरूरतमंद मरीजों को यह मुफ्त में उपलब्ध कराई जाएं। इस प्रकार विभाग की ओर से गरीब और जरूरतमंद मरीजों को मुफ्त में दवा मिल जाती है। इस नेक का काम को कामेश्वर मिश्रा और उनकी टीम दो वर्षों से अंजाम दे रही है।
ऐसे मिली प्रेरणा
कामेश्वर बताते हैं कि एक बार सर सुंदरलाल लाल चिकित्सालय के गेट के पास खड़े थे। इसी बीच तीमारदार दवा और इंजेक्शन से भरा थैला लेकर दुकान में वापस करने गया, लेकिन दुकानदार ने लेने से मना कर दिया। इससे निराश व्यक्ति ने दवा से भरा थैला कूड़ेदान में फेंक दिया। जब वह चला गया तो कामेश्वर ने थैला उठाया और उसको खोला तो हैरानी इस बात पर हुई कि उस थैले में महंगी दवा और इंजेक्शन थे। उसी दिन से मन में ठान लिया कि दवा फेंकने से बेहतर उसे दोबारा जरूरतमंद को उपलब्ध कराई जाए।
...और लग गया मेडिबॉक्स
आइएमएस में मेडिकल के छात्र कामेश्वर ने एक मेडिबॉक्स बनाया। इसको अस्पंताल के इन-आउट गेट के पास स्थापित कर दिया। अब कई मरीज और तीमारदार अस्पयताल से छुट्टी मिलने पर अपनी बची हुई दवा इस बॉक्सर में दान करते हुए विदा लेते हैं। कामेश्वर के साथ इस नेक काम में आलोक यादव, डॉ. वीके पांडा, सरोजनी महापात्रा भी सहयोग करती हैं।
छांटी जाती हैं दवाएं
दवा बैंक में एकत्रित हुई दवा को एक ट्रे में रखा जाता है। सबसे पहले दवाओं की एक्सपायरी डेट देखी जाती है। साथ ही यह भी ध्यान रखा जाता है दवा खुली तो नहीं है। अगर एक्सपायरी या खुली दवा होती है तो उसको हटा दिया जाता है। बची दवा का रिकॉर्ड तैयार किया जाता है। इसके बाद इमरजेंसी वार्ड में एमओ, एसएमओ या सीएमओ को हैंड ओवर किया जाता है। दवा, इंजेक्शन बोतल आदि की स्कोरिंग करने के बाद रिसीविंग लेकर सौंप दिया जाता है। दवा बैंक में एकत्रित दवा को देते समय शर्त रखी जाती है इसको मुफ्त में ही मरीजों को दिया जाएं।
मंजिलें और भी हैं
कामेश्वर ने बताया कि फिलहाल तो एक ही दवा बैंक खोला गया है। भविष्य में यह संख्या चार करने की योजना है। अस्पताल के विभिन्न हिस्सों में चार और मेडिबॉक्स लगाए जाएंगे। ताकि गरीब और जरूरतमंदों को कम से कम दवा खरीदनी पड़े। कामेश्वर मिलने वालों से अपील भी करते हैं कि अगर उनके पास दवा बच जाती है तो उसको कूड़े में नहीं बल्कि मेडिबाक्स में डाल दें, जिससे कल को किसी गरीब की जान महंगी दवाओं की वजह से न जाए।
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