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वाराणसी: अब नहीं लगती खेल की आठवीं घंटी

80 फीसद माध्यमिक विद्यालयों में खेल का मैदान तो है, लेकिन खेल की आठवीं घंटी लगनी अब बंद हो गई है।

By Krishan KumarEdited By: Published: Sat, 28 Jul 2018 06:00 AM (IST)Updated: Sat, 28 Jul 2018 04:12 PM (IST)
वाराणसी: अब नहीं लगती खेल की आठवीं घंटी

जिले में स्कूल की कमी नहीं, हर एक किलोमीटर में प्राथमिक विद्यालय हैं, इसी तरह माध्यमिक विद्यालयों की संख्या भी बेशुमार हैं। 80 फीसद परिषदीय विद्यालयों में बच्चों के लिए खेलने का मैदान तक नहीं हैं, प्राथमिक स्तर के विद्यालय दो-चार कमरों में संचालित हो रहे हैं। 80 फीसद माध्यमिक विद्यालयों में खेल का मैदान तो है, लेकिन खेल की आठवीं घंटी लगनी अब बंद हो गई है, बच्चों का सर्वांगीण विकास ठिठक गया। बच्चे परम्परागत खेलकूद से दूर होते जा रहे हैं, वहीं टीवी, कंप्यूटर और स्मार्ट मोबाइल फोन करीब पहुंचते जा रहे हैं। ज्यादातर विद्यालयों में बच्चों के शारीरिक विकास पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है, वहीं प्राथमिक से लगायत उच्च शिक्षा के पठन-पाठन की गुणवत्ता किसी से छिपी नहीं हैं।

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राइट टू एजुकेशन के तहत परिषदीय विद्यालयों में शिक्षकों की संख्या पर्याप्त बताई जाती है, जबकि हकीकत यह है कि आज भी कई विद्यालय एक शिक्षक के भरोसे संचालित रहे हैं। एक शिक्षक एक साथ दो-तीन कक्षाओं के बच्चों को पढ़ा रहे हैं, फिर भी शिक्षकों की संख्या अधिक होने का दावा किया जाता है। कक्षा एक से पांच तक के स्कूलों में कम से कम पांच, जूनियर हाईस्कूल स्तर के विद्यालयों में कम से कम आठ शिक्षकों की तैनाती होनी चाहिए।

 

निजी स्कूलों के लिए यह फॉर्मूला लागू भी है, वहीं सरकारी विद्यालयों में यह नियम नहीं लागू है। सरकारी विद्यालयों के अध्यापक मिड-डे-मील सहित आंकड़ों की बाजीगीरी में उलझे रहते हैं, जबकि पठन-पाठन पर कम ध्यान देते हैं। संसाधन के मामले में भी सरकारी विद्यालय काफी पीछे हैं। सरकारी विद्यालयों के बच्चे आज भी टाट पट्टी पर पढ़ने के लिए बाध्य हैं।

एक हजार बच्चे स्कूल से दूर

प्रतिवर्ष जनपद में 150 से 200 बच्चे आउट ऑफ स्कूल दिखाए जाते हैं। यह आंकड़ा दो सौ तक सीमित है, जबकि हकीकत इससे इतर है। करीब एक हजार बच्चे अब भी स्कूल से दूर हैं। इसमें कई ऐसे बच्चे हैं, जो नामांकन कराने के बाद बीच में स्कूल छोड़ देते हैं।

शिक्षा की कमान निजी स्कूलों के हाथों में

प्राथमिक से लगायत माध्यमिक शिक्षा की कमान धीरे-धीरे निजी स्कूलों के हाथों में जा रही है। प्राथमिक स्तर के सरकारी विद्यालयों से लोगों का पहले ही मोह भंग हो चुका है। माध्यमिक स्तर की शिक्षा भी कॉन्वेंट स्कूलों का वर्चस्व बढ़ाती जा रहा है। कई विद्यालयों में छात्र संख्या 100 के नीचे पहुंच गई है।

शिक्षकों के 40 फीसद पद रिक्त

माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों के करीब 40 फीसद पद रिक्त चल रहे हैं। राजकीय विद्यालयों की स्थिति और खराब है। हालांकि वर्तमान सरकार राजकीय विद्यालयों पर ध्यान दे रही है।

आउट सोर्सिंग में फंसी चतुर्थ श्रेणी की नियुक्तियां

विद्यालयों में तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की संख्या काफी कम हो गई है। विद्यालयों का कामकाज काफी प्रभावित हो रहा है। शासन ने तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के पद अब आउटसोर्सिंग से भरे जाने का निर्देश दिया है। गाइड लाइन के अभाव में नियुक्तियां फंसी हुई है।

तकनीक में काफी पीछे

जनपद में पांच-पांच विश्वविद्यालय, करीब 125 महाविद्यालय हैं। हर विश्वविद्यालय का अपना इतिहास और महत्व है, हालांकि तकनीकी में जनपद के उच्च शिक्षा संस्थान काफी पीछे हैं। स्मार्ट क्लास, ई-पाठशाला की बात दूर ज्यादातर शिक्षा संस्थान अब तक वाई-फाई से नहीं जुड़ सके हैं।

स्वच्छ और सुरक्षित परिसर की जरूरत

निजी स्कूलों में सुरक्षा व सफाई काफी हद तक संतोषजनक है लेकिन सरकारी विद्यालयों में बच्चों की सुरक्षा को लेकर कोई इंतजाम नहीं किए गए हैं। विशेष परिस्थितियों में निपटने की भी कोई व्यवस्था नहीं है।

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