राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः सरकार दिखाए समझदारी, डॉक्टर समझें जिम्मेदारी और समर्थजन निभाएं भागीदारी
ऐसे में सरकारी अस्पतालों में मरीजों को धैर्य तो निजी अस्पतालों समेत समाजसेवी संस्था और कॉरपोरेट्स को भी अक्षम लोगों के हित में बड़ा दिल दिखाना होगा।
जनस्वास्थ्य की बात आते ही सब कुछ सीधे तौर पर स्वास्थ्य विभाग और सरकारी डाक्टरों के हिस्से छोड़ दिया जाता है। गली-मोहल्लों से लेकर बैठकखानों की आम चर्चा तक में भी उन्हें आक्षेपित करते हुए निशाने पर लिया जाता है। निजी प्रैक्टिशनरों और अस्पतालों के नाम पर तो नाक-भौं की सिकुड़न का दायरा और भी बढ़ जाता है।
वास्तव में यह मांग-उपलब्धता और पहुंच के बीच अंतर से एक-दूसरे के प्रति उपजे अविश्वास का परिणाम है। इसे हर स्तर पर सजगता से प्रयास के जरिए दूर किया जा सकता है। इसमें सरकार को समझदारी दिखानी होगी। डॉक्टर को जिम्मेदारी समझनी होगी और समाज के समर्थजनों को भागीदारी निभानी होगी। इससे ही इलाज सभी की पहुंच में होगा और समाज को रोग मुक्त करेगा।
दैनिक जागरण की ओर से माई सिटी माई प्राइड के तहत शुक्रवार को आयोजित राउंड टेबल में चिकित्सा विशेषज्ञों और इस क्षेत्र से जुड़े लोगों की कुछ यही राय रही। चर्चा में शामिल लोगों ने कहा कि डॉक्टरों का बनारस ही नहीं प्रदेश और देश में यही हाल है। इसमें विशेषज्ञों की बड़े स्तर पर कमी है। बढ़ती जनसंख्या के सापेक्ष साधन-संसाधन जुटा पाना भी सिर्फ सरकार के बूते की बात नहीं।
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ऐसे में सरकारी अस्पतालों में मरीजों को धैर्य तो निजी अस्पतालों समेत समाजसेवी संस्था और कॉरपोरेट्स को भी अक्षम लोगों के हित में बड़ा दिल दिखाना होगा। स्वागत दैनिक जागरण के संपादकीय प्रभारी प्रदीप शुक्ला, संचालन रेडियो सिटी की आरजे नेहा और धन्यवाद ज्ञापन महाप्रबंधक डॉ. अंकुर चड्ढा ने किया।
स्कूल कॉलेज के स्तर पर जागरूकता की मुहिम
बीएचयू आइएमएस के पूर्व निदेशक व हेरिटेज इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के प्राचार्य प्रो. राणा गोपाल सिंह ने कहा कि बनारस की चिकित्सा व्यवस्था पर तीन प्रांतों के 25 करोड़ लोगों के इलाज का दबाव है। इसमें बड़ा हिस्सा बीएचयू के जिम्मे आता है। एम्स सरीखी व्यवस्था होने के बाद इसमें संसाधन बढ़ाएं लेकिन बिना जागरूकता यह कम पड़ जाएंगे। ऐसे में रोगों से बचाव के लिए स्कूल-कालेजों के स्तर पर प्रयास करने होंगे। उनके साथ हर स्तर पर जागरूकता अभियान चलाने होंगे। योग-अभ्यास आदि की तकनीक को आगे बढ़ाना कारगर साबित हो सकता है।
दुरूस्त करना होगा रेफरल सिस्टम
बीएचयू अस्पताल के सीएमओ और इमरजेंसी वार्ड प्रभारी डॉ. कुंदन कुमार ने कहा रेफरल सिस्टम न होने से पीएचसी में ठीक हो सकने वाला मरीज विशेषज्ञ तक पहुंच जाता है। इसमें उपलब्ध संसाधन और उसकी क्षमता का ह्रास होता है। ऐसे में संचारी रोग, सामान्य बीमारी और सुपर स्पेशियलिटी का प्रोटोकाल बनाते हुए इसका पालन कराना होगा। इसे रेफरल सिस्टम दुरूस्त कर ही ठीक किया जा सकता है। मरीज खुद तय करने की बजाय डाक्टर के निर्देशानुसार आगे का रूख करे तो आधी से अधिक समस्याओं का स्वत: समाधान हो जाएगा।
बढ़ाएं आइसीयू, बनाएं ग्रीन कॉरिडोर
बेटियों की रक्षा के सतत प्रयासरत स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. शिप्राधर ने कहा कि जच्चा-बच्चा की सुरक्षा के लिए अभी और जागरूकता की जरूरत है। इसे बढ़ा कर मातृ-शिशु मृत्यु दर को और भी कम किया जा सकता है। इसके अलावा कई जिलों के लोगों की उम्मीदों से जुड़े शहर में सरकारी स्तर पर आइसीयू की कमी है। इससे निजी अस्पतालों का खर्च वहन न कर पाने वाला मरीज छटपटा कर रह जाता है। इमरजेंसी की स्थिति के लिए ग्रीन कारीडोर सिस्टम तक नहीं है। इसके लिए प्रयासों की अभी शुरूआत है लेकिन इसमें तत्परता बरतनी होगी।
समाज दे ध्यान, तभी समाधान
ख्यात स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. विभा मिश्रा ने कहा कि जच्चा-बच्चा की सुरक्षा के लिए चिकित्सा से भी अधिक रोगों से बचाव की जागरूकता विकसित करनी होगी। दूसरी ओर से डॉक्टर पर भरोसा करना होगा। ध्यान देना होगा कि डॉक्टर सिर्फ प्रयास करता है, लेकिन सब कुछ भगवान के हाथ होता है। ऐसे में इमरजेंसी के दौरान धैर्य रखना होगा। इसकी कमी से ही डॉक्टर किसी तरह के हंगामे से बचने के लिए इमरजेंसी से बचना चाहते हैं। इस पर सामाजिक स्तर पर बेहद गौर करने की जरूरत है।
संसाधनों का दुरुपयोग रोकें
आइएमए अध्यक्ष और मंडलीय अस्पताल के एमएस डॉ. अरविंद सिंह ने कहा कि दिक्कत का कारण डॉक्टरों, विशेषज्ञों और पैरामेडिकल स्टाफ की कमी से भी कहीं अधिक इनके दुरुपयोग से है। डॉक्टरों की बड़ी संख्या वीआइपी ड्यूटी में दौड़ती भागती नजर आती है तो बचे-खुचे कुछ एक रेडियोलॉजिस्ट सिर्फ मेडिकोलीगल में व्यस्त हो जाते हैं। शहर में छोटे केंद्र बना कर डॉक्टरों की तैनाती कर दी गई, लेकिन इन स्थानों को कोई जानता तक नहीं। इन कारणों से जहां मरीज पहुंच पाते हैं, वहां कतार पाते हैं। ऐसे में सरकार को सिर्फ भवन और साज सज्जा की बजाय वातावरण बनाने पर ध्यान देना होगा।
मजबूत करनी होगी विश्वास की कड़ी
प्रांतीय चिकित्सा संवर्ग में संयुक्त निदेशक रहे वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. पीके तिवारी ने कहा कि केंद्र खोलने में मरीज की पहुंच के बजाय जमीन की उपलब्धता पर ही ध्यान होना खतरनाक है। इसके अलावा सरकार, डाक्टर व मरीज के बीच विश्वास का रिश्ता होना चाहिए। हिंसात्मक वातावरण खत्म होने से मरीज रेफर नहीं होंगे। सरकारी सिस्टम में आठ घंटे की ड्यूटी के बाद डाक्टर को प्राइवेट प्रैक्टिस या पेड ओपीडी की व्यवस्था देनी होगी। निजी अस्पताल अक्षम मरीजों के लिए छूट का प्रावधान करें और सरकार इस आधार पर उन्हें अनुदान प्रदान करे।
बढ़ाना होगा बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर
आइपीए के राष्ट्रीय अध्यक्ष व बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अशोक राय ने कहा कि बड़ी योजना की होड़ में बेसिक हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर ही खत्म होता जा रहा है। ऐसे में सबसे पहले सरकार को विचार करना होगा कि आखिर डॉक्टर सरकारी सेवा में क्यों नहीं आना चाहता। दूसरी ओर मधुमेह, हाइपरटेंशन, कैंसर आदि के लिए प्रीवेंटिंव हेल्थ सेंटर बनाने होंगे ताकि जड़ पर चोट की जा सके। संचारी रोगों से संबंधित अस्पतालों को फिर से शुरू किया जाना चाहिए। साथ ही विशेषज्ञ सेवाओं के अस्पतालों की संख्या बढ़ानी होगी।
प्राचीन चिकित्सा विधा को दें बढ़ावा
कुष्ठ रोग से मुक्ति दिलाने में गिनीज बुक में नाम दर्ज कराने वाले सर्वेश्वरी समूह के प्रचार मंत्री पारसनाथ यादव ने कहा भारत की प्राचीन चिकित्सा पद्धति का कोई जोड़ नहीं। सर्वेश्वरी समूह कुष्ठ सेवाश्रम ने फकीरी पद्धति से रिकॉर्ड बनाया और कर दिखाया। ऐसे में सरकार को आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को बढ़ावा देने की जरूरत है। इसमें डॉक्टरों की कमी नहीं, न ही जानकारों की। इसके लिए अनुसंधान और प्रशिक्षण के केंद्र विकसित कर समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
रक्तदान के लिए चले अभियान
रक्तदान के लिए सपरिवार समर्पित प्रदीप इसरानी ने कहा कि दशकों से प्रयास के बाद भी आज तक जरूरत के सापेक्ष रक्त की कमी है। ऐसे में स्कूल-कॉलेज स्तर तक यह अहसास कराने की जरूरत है, ताकि लोग स्वेच्छा से इसके लिए आगे आएं। इसे अपने जीवन का मिशन बनाएं।
राउंडटेबल कॉन्फ्रेंस के मुख्य बिंदु
- विकसित किया जाएं रेफरल सिस्टम
- डॉक्टरों को वीआइपी ड्यूटी व मेडिको लीगल से मुक्ति
- आपात स्थिति के लिए ग्रीन कारीडोर
- डॉक्टरों को सुरक्षात्मक वातावरण
- छोटे केंद्रों को गोद लें कॉरपोरेट्स
- निजी अस्पतालों में गरीबों का कार्नर
- कॉलेजों में पब्लिक हेल्थ एजुकेशन सिस्टम