देश के लिए हर कुर्बानी को तैयार शहीद का कुनबा
वाराणसी : यह बात उस समय की है जब भारतीय सेना के पास चीन के मुकाबले संसाधन नहीं थे।
वाराणसी : यह बात उस समय की है जब भारतीय सेना के पास चीन के मुकाबले संसाधन नहीं थे लेकिन तब भी दुश्मनों से लड़ने का जज्बा कम नहीं था और 21 नवंबर 1962 को दुश्मन सेनाओं से लड़ते हुए तिलकधारी यादव ने शहादत दे दी। उस समय 2 वर्ष 256 दिन की ही सेवा पूरी हो सकी थी।
वह जज्बा आज भी उनके परिवार में बना हुआ है। उनके पुत्र राजनाथ यादव कहते हैं कि पूरे परिवार को पिता की शहादत पर गर्व है और आज भी देश के लिए कोई भी कुर्बानी देने को तैयार हैं।
हां, ग्रामीणों की इच्छा है कि शहीद के नाम पर प्रतिमा की स्थापना के साथ कुछ ऐसा हो जाए जिससे आने वाली पीढ़ी को प्रेरणा मिलती रहे।
वरुणा नदी के कछार व पंचक्रोशी मार्ग पर बसे चक्का (हरहुआ) गाव के सरजू प्रसाद यादव के इकलौते पुत्र तिलकधारी यादव 11 मार्च 1960 में सिपाही के रूप में कुमायूं रेजीमेंट रानीखेत में 23 वर्ष की अवस्था में भर्ती हुए। पिता को भी इकलौती संतान को सेना में भेजने में संकोच नहीं हुआ। शहीद की पत्नी सुरसत्ती देवी ने भी अपने एक पुत्र राजनाथ यादव के साथ पूरा जीवन व्यतीत कर दिया। बड़ा होने पर पुत्र राजनाथ की धूमधाम से शादी की जिनसे दो बेटे अनिल कुमार व अजीत कुमार हैं। डेढ़ बीघा खेत में उतरकर कड़ी मेहनत से परिवार को चलाते हुए डेढ़ वर्ष पूर्व सुरसत्ती देवी का भी निधन हो गया।
तिलकधारी यादव को सैनिक बनने की प्रेरणा दयालपुर के सूबेदार शिवजगत पाडेय से मिली थी।
शहीद के पुत्र राजनाथ यादव को इस बात का दुख है कि गाव में शहीद के नाम पर अस्पताल, गेट, पार्क या प्रतिमा तक नहीं स्थापित हो सकी। राजकीय हाई स्कूल का नाम सैनिक तिलकधारी के नाम पर किया जाना था लेकिन वह भी फाइलों में ही दबकर रह गई। गांव के कई लोग सुरक्षा सेवा में
यादव, ब्राह्मण बाहुल्य गाव के कई लोग सेना व अन्य सुरक्षा बल में सेवारत हैं। उस क्रम में शहीद के इकलौते बेटे राजनाथ यादव भी अपने बेटों को सैनिक बनाने के लिए अभी से तैयारी में जुटे हैं।