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संस्कृत व संस्कृति पर स्पेन की मारिया फिदा, पीएचडी कर संस्कृत की पताका फहराने का संकल्प

स्पेन की मारिया जो संस्कृत व संस्कृति पर फिदा है। वर्तमान में वह संस्कृत विश्वविद्यालय से मीमांसा से आचार्य (स्नातकोत्तर) कर रहीं हैं जबकि मीमांसा काफी कठिन विषय माना जाता है। विश्वविद्यालय के इतिहास में मीमांसा की सीट कभी भी फुल नहीं हुई।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Fri, 28 Feb 2020 11:01 AM (IST)Updated: Fri, 28 Feb 2020 11:01 AM (IST)
संस्कृत व संस्कृति पर स्पेन की मारिया फिदा, पीएचडी कर संस्कृत की पताका फहराने का संकल्प
स्पेन की मारिया जो संस्कृत व संस्कृति पर फिदा है।

वाराणसी, जेएनएन। भारतीय संस्कृति को देखने व समझने के लिए प्रतिवर्ष हजारों विदेशी सैलानी बनारस आते हैं। इसमें से कई ऐसे विदेशी भी हैं, जो  भारतीय संस्कृति में पूरी तरह रच-बस जाते हैं। उन्हीं में से एक है स्पेन की मारिया जो संस्कृत व संस्कृति पर फिदा है। वर्तमान में वह संस्कृत विश्वविद्यालय से मीमांसा से आचार्य (स्नातकोत्तर) कर रहीं हैं, जबकि मीमांसा काफी कठिन विषय माना जाता है। विश्वविद्यालय के इतिहास में मीमांसा की सीट कभी भी फुल नहीं हुई। इस विषय में किसी भी सत्र में महज आधा दर्जन से अधिक विद्यार्थी नहीं रहे हैं।

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जागरण प्रतिनिधि से बातचीत में मारिया ने बताया कि करीब 12 साल पहले भारतीय संस्कृति को समझने के लिए ऋषिकेश व बनारस आई थी। बनारस की संस्कृति ने मुझे काफी प्रभावित किया। यहां से स्पेन जाने के बाद हमने संस्कृत पढऩे का निश्चिय किया। संस्कृत पढऩे के लिए दोबारा वर्ष 2012 में बनारस आई। लोगों ने बताया कि संस्कृत विश्वविद्यालय में विदेशियों के लिए अलग से पाठ्यक्रम संचालित होता है। विश्वविद्यालय में विदेशियों के तीन-तीन वर्ष संस्कृत प्रमाणपत्रीय कोर्स में दाखिला लिया। शुरू-शुरू में संस्कृत समझने में काफी परेशानी हुई। हालांकि धीरे-धीरे संस्कृत अच्छी तरह से समझ में आने लगी। अब मारिया पूरी संस्कृत में बोल भी लेती हैं। खास बात यह है कि संस्कृत प्रमाणपत्रीय में मारिया को गोल्ड मेडल भी मिला। इसके बाद उन्होंने शास्त्री (स्नातक) की। वर्तमान में आचार्य द्वितीय खंड की छात्रा हैं। उनकी तमन्ना पीएचडी कर संस्कृत की पताका पूरे विश्व में फहराने की है।

भारतीय पोशाक को भी अपनाया

भारतीय संस्कृति से प्रभावित मारिया भारतीय संस्कृति की पोशाक को भी अपनाया। वह साड़ी पहनती हैं। गोदौलिया स्थित एक आश्रम में रहकर वह ईमानदारी से अपनी पढ़ाई पूरी करने में जुटी हैं। संस्कृत के साथ-साथ वह अब हिंदी भी अच्छी तरह बोल व समझ लेती हैं।  


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