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वाराणसी के इस मंदिर में अखंड भारत का मानचित्र ही आराध्य, भक्तों की लगती है भीड़

वर्ष 1917 के मान्य मानचित्र के आधार पर इस मंदिर में भूचित्र को पूरी तरह गणितीय सूत्रों के आधार पर उकेरा गया। मसलन, इसकी धरातल भूमि एक इंच में 2000 फीट दिखाई गई है।

By Ashish MishraEdited By: Published: Sun, 05 Aug 2018 10:13 AM (IST)Updated: Mon, 06 Aug 2018 07:08 AM (IST)
वाराणसी के इस मंदिर में अखंड भारत का मानचित्र ही आराध्य, भक्तों की लगती है भीड़
वाराणसी के इस मंदिर में अखंड भारत का मानचित्र ही आराध्य, भक्तों की लगती है भीड़

वाराणसी [प्रमोद यादव]। शिव की नगरी काशी में एक अनूठा मंदिर भारत माता का भी है। यहां पूजा-उपासना और ध्यान के लिए कोई देव विग्रह नहीं बल्कि कैलास मुकुटधारी मां भारती के अखंड ऐश्वर्य की झांकी विराजमान है। जमीन पर उकेरा गया भारत वर्ष का मानचित्र, यदि मानो तो यही मूर्ति है। इस मंदिर में विद्यमान मां भारती की भू-चित्र झांकी कालजयी रचनाकार बंकिमचंद्र चटर्जी की रचना को साकार करती प्रतीत होती है।

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मंदिर की दीवारों पर राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त की विशेष कविता भी शोभायमान है, जो मंदिर के स्थापना उद्देश्यों की ओर ध्यान आकर्षित कराती है। कैंट रेलवे स्टेशन से विश्वविद्यालय मार्ग पर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ परिसर के दक्षिणी छोर पर गुलाबी पत्थरों से निर्मित मंदिर के चमकते स्तंभ पहली नजर में कदम रोक लेते हैं। दो मंजिले मंदिर के गर्भगृह में कुंडाकार प्लेटफार्म पर उकेरा गया भारत भूमि का विशाल संगमरमरी मानचित्र ही यहां ईष्ट है।

अभिलेखों के अनुसार वर्ष 1917 के मान्य मानचित्र के आधार पर इस मंदिर में भूचित्र को पूरी तरह गणितीय सूत्रों के आधार पर उकेरा गया। मसलन, इसकी धरातल भूमि एक इंच में 2000 फीट दिखाई गई है। समुद्र की गहराई भी इसी हिसाब से प्रदर्शित है। शिल्प में नदी, पहाड़, झील या फिर समुद्र को उनकी ऊंचाई-गहराई के सापेक्ष ही गढ़ा गया है। मंदिर की दीवारों पर अंकित नक्शे इस मंदिर को और भव्य बनाते हैं।

मंदिर में अंकित एक शिलालेख के अनुसार तत्कालीन कला विशारद बाबू दुर्गा प्रसाद खत्री के निर्देशन में मिस्त्री सुखदेव प्रसाद व शिवप्रसाद ने 25 अन्य बनारसी शिल्पकारों संग मिलकर पूरे छह वषों में यह मंदिर तैयार किया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 1936 में काशी प्रवास के दौरान इस धरोहर को राष्ट्र को समर्पित किया था। भारत माता मंदिर में नियमित पूजा का कोई प्रावधान नहीं है, न ही यहां कोई पुजारी नियुक्त है। स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस आदि मौकों पर मंदिर की सजावट होती है। नियमित तौर पर पर्यटकों का आगमन होता है।

इस मंदिर में किसी देवी-देवता की मूर्ति नहीं है। मुझे आशा है कि यह मंदिर सभी धर्मों, सभी जातियों के लोगों के लिए एक सार्वदेशिक मंच का रूप ग्रहण कर लेगा और इस देश में पारस्परिक धार्मिक एकता, शांति तथा प्रेम की भावना को बढ़ाने में योगदान देगा..। -1936 में मंदिर के उद्घाटन के समय महात्मा गांधी

सबका स्वागत सबका आदर.. ’भारत माता का यह मंदिर समता का संवाद यहां, सबका शिव कल्याण यहां है पावै सभी प्रसाद यहां। ’नहीं चाहिए बुद्धि वैरकी भला प्रेम उन्माद यहां, कोटि-कोटि कंठों से मिलकर उठे एक जयनाद यहां। ’जाति, धर्म या संप्रदाय का नहीं भेद व्यवधान यहां, सबका स्वागत सबका आदर सबका सम-सम्मान यहां..।

कटघोरा में भी है भारत माता मंदिर छत्तीसगढ़ की कटघोरा तहसील में कुछ देशभक्त शिक्षकों ने 1954 में भारत माता मंदिर की स्थापना की था। 1952 में कटघोरा तहसीलदार के पद पर आए हृदयनाथ ठाकुर की अगुआई में इस मंदिर का निर्माण हुआ। मंदिर के उद्घाटन के साथ ही किसानों के लिए भव्य किसान मेले की शुरू की परंपरा आज भी जारी है। यह मंदिर भी सभी धर्म व समुदाय के लोगों को एक सूत्र में बांधता है, क्योंकि भवन किसी धर्म विशेष से जुड़ी आकृति पर आधारित नहीं है।

मानचित्र की एक दिलचस्प विशेषता ये है कि इसमें करीब 450 पर्वत श्रृंखलाओं और चोटियों, मैदानों, जलाशयों, नदियों, महासागरों और पठारों समेत कई भौगोलिक ढांचों का विस्तृत नक्शा उपलब्ध है और इनकी ऊंचाई और गहराई उनके साथ-साथ अंकित है।

हर साल गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर इस नक्शे में दिखाए गए जलाशयों में पानी भरा जाता है और मैदानी इलाकों को फूलों से सजाया जाता है। एक दिलचस्प तथ्य ये भी है कि 'राष्ट्रकवि' मैथिली शरण गुप्त ने इस मंदिर के उद्घाटन पर एक कविता लिखी थी। इस रचना को भी मंदिर में एक बोर्ड पर लिखकर लगाया गया है। 


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