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वेदों के वैज्ञानिक अध्ययन में छुपे हैं जीवन के कई रहस्य, ध्वनि के अध्ययन से खत्म होगी जुबान की समस्या

गुरु के समीप रहकर छात्र जो विधा ग्रहण करते हैं वह शिक्षा है। वहीं जब उस अध्ययन काल की समाप्ति हो जाती है तो विद्यार्थी अपने गुरु से दीक्षा ग्रहण कर विद्यालय छोड़ता है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Mon, 16 Dec 2019 12:56 PM (IST)Updated: Mon, 16 Dec 2019 09:17 PM (IST)
वेदों के वैज्ञानिक अध्ययन में छुपे हैं जीवन के कई रहस्य, ध्वनि के अध्ययन से खत्म होगी जुबान की समस्या
वेदों के वैज्ञानिक अध्ययन में छुपे हैं जीवन के कई रहस्य, ध्वनि के अध्ययन से खत्म होगी जुबान की समस्या

वाराणसी [हिमांशु अस्थाना]। गुरु के समीप रहकर छात्र जो विधा ग्रहण करते हैं वह शिक्षा है। वहीं जब उस अध्ययन काल की समाप्ति हो जाती है, तो विद्यार्थी अपने गुरु से दीक्षा ग्रहण कर विद्यालय छोड़ता है। यहां से वह अपने कॅरियर व देश के विकास के लिए कार्य करता है। दरअसल सर्वविद्या की राजधानी काशी हिंदू विश्वविद्यालय में 23 व 24 दिसंबर को दीक्षा समारोह का आयोजन होने जा रहा है। इस अवसर पर संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के दो छात्रों शिवार्चित मिश्रा व अमन कुमार त्रिवेदी को चांसलर पदक व स्व. महाराजा विभूति नारायण सिंह स्वर्ण पदक के लिए चुना गया है। इसको लेकर हमने दोनों छात्रों से बातचीत की, जिसमें उन्होंने बहुत ही रूचिकर बातें बताईं।

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वेदों के वैज्ञानिक अध्ययन से अंतरिक्ष में भी की जा सकती है बातचीत

स्नातकोत्तर में चांसलर पदक के विजेता शिवार्चित मिश्रा ने बताया कि वे इसके बाद वेदों पर शोध कर इसे विज्ञान व देश की अन्य भाषाओं से जोडऩा चाहते हैं। स्वर विज्ञान के अध्ययन से जिन लोगों को बोलने में समस्या आती है या हृदय संबंधी विकार हैं तो उसे दूर किया जा सकता है। वहीं वेदों की शिक्षा में आने से पहले शिवार्चित मार्शल आर्ट में ब्लैक बेल्ट व राष्ट्रीय स्पर्धा में ब्रांज मेडल जीत चुके हैं। शिवार्चित नेट क्वालिफाइड हैं और बीएचयू से ही पीएचडी करना चाहते हैं। शिवार्चित के मुताबिक वेदों के वैज्ञानिक अध्ययन से अंतरिक्ष में भी बातचीत की जा सकती है। क्योंकि नासा के अध्ययनों में बताया गया है कि ओम शब्द का उच्चारण स्पेस में हुआ है और यह पवित्र शब्द हमारे वेदों की ही देन है। हमारे वेदों का दायरा सीमित न रह जाए इसके लिए वह वेदों को सर्वसुलभ बनाना चाहते हैं।

अध्ययन-अध्यापन में समर्पित है अमन का जीवन

स्नातक में चांसलर पदक के विजेता अमन कुमार त्रिवेदी ने बताया कि उन्होंने छह साल तक गुरुकुल पद्धति से शिक्षा ग्रहण की है। वह महोबा के रहने वाले हैं व कक्षा आठ से स्नातक तक की पूरी पढ़ाई वाराणसी से ही पूरी की है। इस उपलब्धि का श्रेय वह अपने माता-पिता व गुरुजनों प्रो. भगवत शरण शुक्ल, डा. उमाशंकर शुक्ल आदि को देते हैं। प्रो. भगवत शरण उनके व्याकरण विभाग के पूर्व अध्यक्ष भी रह चुके हैं। अमन जीवनपर्यंत अध्ययन व अध्यापन की विधा से जुड़े रहना चाहते हैं।

इस बारे में बीएचयू के वेद विभाग व समन्वयक वैदिक विज्ञान केंद्र के अध्यक्ष डा. उपेंद्र कुमार त्रिपाठी ने कहा कि दोनों छात्र बेहद परिश्रमी हैं उनकी इस उपलब्धि पर संकाय व वेद विभाग में हर्ष का माहौल है। दीक्षा का मूल उद्देश्य है राष्ट्र हित को सर्वोपरि रखना है। इन विद्यार्थियों से ऐसी ही कामना है।


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