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महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ शताब्दी वर्ष : 1932 में विद्यापीठ को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया था ब्रिटिश हुकूमत ने

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ पर विदेशी हुकूमत की सदैव वक्रदृष्टि बनी रहती थी। वर्ष 1932 के सत्याग्रह के समय प्रांतीय सरकार ने कांग्रेस कमेटियों के साथ-साथ विद्यापीठ को भी गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया था। यही नहीं विद्यापीठ की इमारतों पर ताला लगाकर पुलिस का पहरा बैठा दिया।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Tue, 26 Jan 2021 10:50 AM (IST)Updated: Tue, 26 Jan 2021 10:50 AM (IST)
महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ शताब्दी वर्ष : 1932 में विद्यापीठ को गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया था ब्रिटिश हुकूमत ने
1932 के सत्याग्रह के समय प्रांतीय सरकार ने कांग्रेस कमेटियों के साथ विद्यापीठ को भी गैरकानूनी संस्था घोषित किया था।

वाराणसी, जेएनएन। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ पर विदेशी हुकूमत की सदैव वक्रदृष्टि बनी रहती थी। वर्ष 1932 के सत्याग्रह के समय प्रांतीय सरकार ने कांग्रेस कमेटियों के साथ-साथ विद्यापीठ को भी गैरकानूनी संस्था घोषित कर दिया था। यही नहीं विद्यापीठ की इमारतों पर ताला लगाकर पुलिस का पहरा बैठा दिया। जनवरी 1932 से करीब ढाई वर्ष तक विद्यापीठ में पठन-पाठन पूरी तरह से ठप रहा। विद्यापीठ परिसर पुलिस-प्रशासन के कब्जे में रहा।

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महात्मा गांधी के आशीर्वाद व संस्थापक राष्ट्ररत्न शिव प्रसाद गुप्त के संकल्प तथा असहयोग आंदोलन के फलस्वरूप दस फरवरी 1921 में स्थापित काशी विद्यापीठ का देश की आजादी में अद्वितीय योगदान है। शिक्षा के माध्यम समग्र व्यक्तित्व निर्माण कर पराधीनता से मुक्ति दिलाने का संगठनात्मक सफल प्रयास का मूर्तरूप है काशी विद्यापीठ। यही कारण था कि

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में काशी विद्यापीठ की भूमिका किसी से छिपी हुई नहीं हैं। वर्ष 1921 से 1942 तक देश में जब-जब  स्वतंत्रता आंदोलन छिड़ा, तब-तब काशी विद्यापीठ के निरीक्षकों व प्रबंधकों के अलावा संस्था के अध्यापकों, विद्यार्थियों ने भरपूर योगदान दिया। वर्ष 1930, 32, 41 व 42 के सत्याग्रह आंदोलन में प्रांत के बड़े-बड़े नेताओं के जेल चले जाने के बाद संयुक्त प्रांत में स्वतंत्रता आंदोलन का भार विद्यापीठ पर ही था। विद्यापीठ के अध्यापकों व विद्यार्थियों ने प्रांत के विभिन्न जनपदों में जाकर सत्याग्रह की कमान संभाली। स्वतंत्रता संग्राम के समय विद्यापीठ में सामान्यत: शिक्षण कार्य बंद हो जाता था। विद्यापीठ के शिक्षकों के अलावा विद्यार्थी भी आंदोलन में कूद जाते थे।

स्थापना काल के दौरान संस्था में विद्यार्थी परिषद का गठन किया गया था। इसमें विद्यापीठ में अध्ययन करने वाले सभी विद्यार्थी सदस्य होते थे। परिषद हर सप्ताह राजनीतिक, सामाजिक, वैज्ञानिक सहित अन्य विषयों पर वाद-विवाद आयोजित करता था। आंदोलन की रणनीति तय करने में वाद-विवाद काफी सफल रहा। इसी प्रकार वर्ष 1940-41 के  व्यक्तिगत आंदोलन में भी विद्यापीठ के अध्यापकों व विद्यार्थियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। नौ अगस्त 1942 को जब सत्याग्रह संग्राम छिड़ा तो सरकार ने विद्यापीठ के आचार्यों को बलपूर्वक गिरफ्तार कर ली। वहीं आचार्य नरेंद्र देव को पुलिस ने मुंबई से गिरफ्तार की।

ऐसे में काशी विद्यापीठ विश्व में एक ऐसी संस्था है जिसने राष्ट्र को स्वतंत्रता प्रदान कराने में अहम भूमिका निभाई। वास्तविक स्वतंत्रता की कल्पना को करना ही विश्वविद्यालय का धर्म था। यही कारण है कि काशी विद्यापीठ को स्वतंत्रता आंदोलन की नर्सरी भी कहा जाता है। इसी नर्सरी के एक विशिष्ट उपज थे देश के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री।


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