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Mahashivratri 2020 : भगवान शिव के विवाहोत्सव-महापर्व पर जानिए व्रत -पूजन और रात्रि जागरण का विधान

देवाधिदेव महादेव भगवान आशुतोष को प्रसन्न करने के लिए फागुन कृष्ण चतुर्दशी को शिव-गौरा के विवा‍होत्‍सव पर महाशिवरात्रि मनाने की परंपरा है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Wed, 19 Feb 2020 03:25 PM (IST)Updated: Thu, 20 Feb 2020 10:09 AM (IST)
Mahashivratri 2020 : भगवान शिव के विवाहोत्सव-महापर्व पर जानिए व्रत -पूजन और रात्रि जागरण का विधान
Mahashivratri 2020 : भगवान शिव के विवाहोत्सव-महापर्व पर जानिए व्रत -पूजन और रात्रि जागरण का विधान

वाराणसी [प्रमोद यादव]। देवाधिदेव महादेव भगवान आशुतोष को प्रसन्न करने के लिए फागुन कृष्ण चतुर्दशी को शिव-गौरा के विवा‍होत्‍सव पर महाशिवरात्रि मनाने की परंपरा है। इस बार महाशिवरात्रि 21 फरवरी को पड़ रही है जो अपने आप में बेहद खास होगी। चतुर्दशी की रात श्रवण नक्षत्र का संयोग बेहद खास होगा। फागुन त्रयोदशी तिथि 20 फरवरी की शाम 4.46 बजे लग रही है जो 21 को शाम 5.12 बजे तक रहेगी। शाम 5.13 बजे से चतुर्दशी तिथि लग जाएगी जो अगले दिन शाम तक रहेगी। त्रयोदशी उपरांत चतुर्दशी 21 को रात्रि में मिलने महाशिवरात्रि इसी दिन मनाई जाएगी। तिथि विशेष पर व्रत- रात्रि जागरण व पूजन का विधान है। ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार व्रत पारन 22 फरवरी को किया जाएगा। 

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पर्व निर्धारण 

शास्त्रों में कहा गया है -त्रयोदस्य स्तगे सूर्ये चत तृष्ठेव नादिसो। भूतविद्धा सूयातत्र शिवरात्रि वसंचरेत।। वहीं लिंग पुराण में कहा गया है कि प्रदोष व्यापिनी ग्राह्या शिवरात्रो चतुर्दशी। रात्रि जागरणम् यस्मात् तस्माताम् समूपोपयेत।। अर्थात शिवरात्रि चतुर्दशी को प्रदोष व्यापिनी होना चाहिए। रात्रि में जागरण किया जाता है। अत: त्रयोदशी उपरांत चतुर्दशी आवे या रात्रि में चतुर्दशी हो उस दिन महाशिवरात्रि का व्रत-पूजन आदि करना चाहिए। इसे प्रति वर्ष करने से नित्य और किसी कामना पूर्वक करने से काम्य होता है। प्रतिपदादि तिथियों अग्नि आदि अधिपति होते हैैं। हर तिथियों के अधिपति अलग-अलग होते हैैं जिस तिथि का जो स्वामी हो उसका उस तिथि में अर्चन-पूजन वंदन करना सर्वोत्तम होता है। चतुर्दशी के स्वामी भगवान शिव हैैं। अत: उनकी रात्रि में उनका व्रत किया जाना चाहिए। वास्तव में शिवरात्रि व फागुन कृष्ण चतुर्दशी को मान्यता अनुसार भगवान शंकर का विवाह माता पार्वती के साथ इसी दिन हुआ था। इसीलिए यह महाशिवरात्रि कहलाई तो ईशान संहिता के अनुसार शिवलिंग तयोद्भुत: कोटि सूर्य समप्रभ: अर्थात फागुन कृष्ण चतुर्दशी के निशीथ में ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ था। इस कारण यह महाशिवरात्रि मानी जाती है। 

पापों से मुक्ति का अनुष्ठान 

शास्त्रों में महाशिवरात्रि का व्रत सर्वोपरि बताया गया है। इस व्रत को करने से सभी तरह के पाप विनष्ट हो जाते हैैं। कहा गया है शिवरात्रि व्रतम नामम सर्व पाप प्रणाशनम। अचांडाल मनुष्यानाम भुक्ति मुक्ति प्रदायकम।। शिवरात्रि का व्रत सभी पापों का नाश करने वाला, चांडालों तक को भुक्ति-मुक्ति देने वाला है। अर्थात इस व्रत-उपवास के प्रभाव से जिनका शास्त्रों में अधिकार नहीं है, उन्हें भी मोक्ष प्राप्त होता है। अन्य लोगों को तो हर तरह के पापों के नाश के साथ ही धर्म-अर्थ, काम-मोक्ष स्वयं ही प्राप्त हो जाता है। 

चार पहर अभिषेक 

इस दिन शिवपूजन में मदार, बिल्व पत्र,. धतूरा पुष्प चढ़ाने से तथा भांग-धतूरा आदि का अन्य नैवेद्यों के साथ भोग लगाना चाहिए। दिन भर उपवास कर रात में श्रीसांब शिवजी का पूजा करनी चाहिए। रात के चार पहर में चार बार देवाधिदेव का पूजन वंदन करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार दुग्धेम प्रथमम स्नामम्, दधना चैव द्वितीयके। तृतीये च तधाज्येन, चतुर्थे मधुना तथा।। अर्थात प्रथम पहर में शिवलिंग को गो दुग्ध से स्नान कराएं, दूसरे पहर में दही से, तीसरे में घी से और चौथे में मधु से स्नान कराकर षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। 

ग्रह शांति 

काशी सहित देश के प्रमुख शिवालयों में यह उत्सव बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। काशी में इस दिन चतुर्दश लिंग पूजा, वैद्यनाथ जयंती, कृतिवाशेश्वर दर्शन पूजन का भी विधान होता है। भगवान शिव वैदिक देवता हैैं। राम चरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैैं-भावी मेट सकहिं त्रिपुरारी... यानी अनहोनी को भी टालने वाले भगवान शिव हैैं, अत: जिन लोगों की कुंडली में अनिष्टकारी ग्रह दशाएं चल रही हों या कोई भी ग्रह अनिष्टकारी फल को देने वाला हो तो इस दिन ग्रहीय जप अभिषेक, रूद्राभिषेक, महामृत्युंजय जपादि कराने से अन्य दिनों की अपेक्षा सहस्त्रगुणा फल की प्राप्ति होती है। देवाधिदेव महादेव अति शीघ्र प्रसन्न होने वाले देव हैैं। 

पूजा-अर्चना

तिथि विशेष पर व्रतीजनों को नित्य क्रिया से निवृत्त हो स्नानादि कर मस्तक पर त्रिपुंड लगा कर गले में रूद्राक्ष की माला धारण कर, हाथ में जल अक्षत पुष्प लेकर नाम गोत्रादि बोलकर भगवान शिव के प्रसन्नार्थ मैैं महाशिवरात्रि का व्रत करूंगा या करूंगी मन में बोल कर छोड़ दें। दिन भर शिव स्मरण करें, सायंकाल स्नान कर शिव मंदिर में जाकर उत्तराभिमुख बैठ कर भगवान के सामने सबी तरह के पापों का क्षय व अमोघ पुण्य की प्राप्ति, यह संकल्प कर पूजन का प्रारंभ करना चाहिए। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इस दिन शिवमंत्र, शिव तांडव, शिव चालीसा, शिव सहस्त्रनाम, रूद्राष्टकम् इत्यादि का जप करना चाहिए।  


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