Move to Jagran APP

Mahashivratri 2019 : इस शिवरात्रि पर लगातार 44 घंटे मिलेगा बाबा का दर्शन सौभाग्य

सोमवार को भोर में 2.15 बजे मंगला आरती के लिए श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर का पट खुलेगा और 3.30 बजे से भक्तों के साथ बाबा भी उत्सवी मूड में आएंगे।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 03 Mar 2019 10:40 PM (IST)Updated: Mon, 04 Mar 2019 11:22 AM (IST)
Mahashivratri 2019 : इस शिवरात्रि पर लगातार 44 घंटे मिलेगा बाबा का दर्शन सौभाग्य
Mahashivratri 2019 : इस शिवरात्रि पर लगातार 44 घंटे मिलेगा बाबा का दर्शन सौभाग्य

वाराणसी [प्रमोद यादव]। महाशिवरात्रि की भोर विवाह का खुमार बाबा को आधे घंटे पहले जगाएगा। भोर में 2.15 बजे मंगला आरती के लिए श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर का पट खुलेगा और 3.30 बजे से भक्तों के साथ बाबा भी उत्सवी मूड में आएंगे। अपने दरबार के नियम-कानून दरकिनार कर लगातार लगभग 44 घंटे भक्तों को दर्शन देते हुए अपना विवाहोत्सव मनाएंगे। चार मार्च को दिन में सिर्फ दोपहर की भोग -आरती होगी, अन्य विधान स्थगित और लगन की तैयारी में जुटे नजर आएंगे। रात 11 बजे से भोर तक चार प्रहर की आरती सजाएंगे। इनसे खाली होने के बाद पांच की रात 11 बजे ही बाबा शयन पर जाएंगे। 

loksabha election banner

वास्तव में भक्त व भगवान के रिश्ते की अबूछ पहेली से कम नहीं काशीवासियों व काशीपुराधिपति का नाता। भाव में आया तो बनारसी मन जल -दूध से पूजन-अभिषेक कर बाबा को रिझाता नजर आएगा। ताव खा गया तो हीत-मीत की तरह जमकर उलाहने भी बरसाता दिख जाएगा। संबंधों की यह बेजोड़ डोर महाशिवरात्रि पर भी नजर आएगी जब पूरी काशी अलग अंदाज में अपने बाबा का विवाहोत्सव मनाएगी। गोधूलि बेला से निकलेंगी बरातें तो पूरी रात बीतेगी बाबा के साथ। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में पर्व विशेष पर दूल्हा भोले के विवाह की चार प्रहर आरती के रूप में रस्में निभाई जाएंगी। रानी भवानी परिसर में जनवासा सजेगा और भक्त मंडली पूरे भाव के साथ मंगल गीत गाएगी। श्रीकाशी विद्वत परिषद के मंत्री डा. रामनारायण द्विवेदी के अनुसार महाशिवरात्रि पर भगवान शिव मनुष्य के अत्यंत समीप आ जाते हैं और मध्य रात्रि में मनुष्य ईश्वर के सर्वाधिक निकट होता है। यही कारण है कि महाशिवरात्रि पर भगवान शिव का चारो प्रहर विशेष पूजन-अर्चन व अभिषेक किया जाता है। 

समय सारणी 

मंगला आरती: रात 2.15 से 3.15 तक 

दर्शन आरंभ : भोर 3.30 बजे से 

भोग आरती : दोपहर 12 बजे 

दर्शन आरंभ : 12.30 से रात 10.30 तक 

चार प्रहर की आरती 

प्रथम प्रहर : रात 10.50 बजे से तैयारी और 11 से 12.30 बजे तक आरती।

द्वितीय प्रहर : रात 1.20 बजे से तैयारी और 1.30 से 2.30 तक आरती। 

तृतीय प्रहर : रात 2.55 बजे से तैयारी और तीन बजे से भोर 4.25 तक आरती। 

चतुर्थ प्रहर : भोर 4.55 बजे से तैयारी, पांच से 6.15 बजे तक आरती। 

भावी मेट सके त्रिपुरारी...

सोमवार का दुर्लभ संयोग : पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार देवाधिदेव महादेव भगवान आशुतोष को प्रसन्न करने के लिए फागुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाने की शास्त्रीय परंपरा है। इस बार महाशिवरात्रि चार मार्च को पड़ रही है। इसमें देवाधिदेव महादेव का दिन सोमवार तो रात में शिवयोग का दुर्लभ संयोग भी बन रहा है। फागुन त्रयोदशी तिथि चार मार्च को शाम 4.10 बजे तक रहेगी। उसके बाद चतुर्दशी तिथि लगेगी जो जो पांच मार्च की शाम 6.18 बजे तक रहेगी। वहीं चार मार्च को दिन में 1.43 बजे तक परिध योग बन रहा है तो 1.44 बजे से शिवयोग आ रहा है जो संपूर्ण रात्रि रह कर पांच मार्च को दिन में 2.17 बजे तक रहेगा। खास यह कि महाशिवरात्रि व्रत का पारन पांच मार्च को चतुर्दशी तिथि में ही किया जाएगा। 

शास्त्रों में कहा गया है-'त्रयोदस्यस्तगे सूर्ये चतसृष्ठेव नादितु। भूत विद्धातू या तत्र शिवरात्रि व्रतम चरेत।।' लिंग पुराण में वर्णित है कि - 'प्रदोष व्यापिनी ग्रहया शिवरात्रौ चतुर्दशी। रात्रि जागरण यस्मात् तस्मात्ताम समपोपयेत।।' अर्थात् शिवरात्रि की चतुर्दशी को प्रदोष व्यापिनी ही लेना चाहिए। पर्व विशेष में रात्रि जागरण का मान होने से यह जरूरी हो जाता है। अत: त्रयोदशी उपरांत चतुर्दशी आए या रात्रि में त्रयोदशी हो तो उस दिन महाशिवरात्रि का व्रत पूजन करना चाहिए। इसे प्रति वर्ष करने से यह नित्य और किसी कामना पूर्वक करने से काम्य होता है। प्रतिपदादि तिथियों के अग्नि आदि अधिपति होते हैं या हर तिथियों के अधिपति अलग-अलग होते हैं। जिस तिथि का जो स्वामी हो उसका उस तिथि में अर्चन-पूजन-वंदन करना सर्वोत्तम होता है। चतुर्दशी के स्वामी भगवान शिव हैं, अत: उनकी रात्रि में उनका व्रत किया जाता है। देश के प्रमुख शिवालयों में महाशिवरात्रि उत्सव बहुत ही हर्षोल्लास से मनाया जाता है। काशी में इस दिन चतुर्दश लिंग पूजा, वैद्यनाथ जयंती, कृतिवाशेश्वर दर्शन-पूजन का भी विधान है। 

शिव विवाह व ज्योतिर्लिंग प्रादुर्भाव : शिवरात्रि व फागुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शंकर का विवाह माता पार्वती के साथ इसी दिन हुआ था। इसीलिए यह महाशिवरात्रि कहलाई। ईशान संहिता के अनुसार 'शिवलिंग तयोभूत: कोटि सूर्य समप्रभ:' अर्थात फागुन कृष्ण चतुर्दशी के निशिथ में ज्योतिर्लिंगों का प्रादुर्भाव हुआ था। इस कारण यह महाशिवरात्रि मानी जाती है। शास्त्रों में महाशिवरात्रि का व्रत सर्वोपरि बताया गया है। ब्राह्मïण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध- युवा सभी इस व्रत के अधिकारी हैं। इस व्रत को न करने से दोष होता है तो यह व्रत करने से सभी तरह के पाप नष्ट हो जाते हैं। कहा गया है- 'शिवरात्रि व्रत नाम: सर्व पाप प्रणानशनम् अचांडाल मनुष्याणाम भुक्ति मुक्ति प्रदायकम' अर्थात् शिवरात्रि का व्रत सभी पापों का नाश करने वाला, चांडालों तक को भुक्ति-मुक्ति देने वाला है। हर तरह के पापों का नाश के साथ धर्म -अर्थ, काम-मोक्ष की प्राप्त हो जाती है। 

चार प्रहर महादेव की पूजा : महाशिवरात्रि पर पूजन में मदार, बेल पत्र, धतुरे का फूल भगवान शिव को अर्पित करने व भांग-धतूरा आदि का अन्य नैवेद्यों संग भोग लगाना चाहिए। दिन भर उपवास कर रात में शिवजी की पूजा करनी चाहिए। रात्रिपर्यंत चारो प्रहर चार बार देवाधिदेव महादेव का पूजन करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार- दुग्धेन प्रथमम स्नानम दध्नाचैव द्वितीयके, तृतीये च तधाज्येन चतुर्थे मधुनातथा।। अर्थात प्रथम प्रहर में शिव लिंग को गो दुग्ध से, दूसरे प्रहर में दही से, तीसरे में घी से और चौथे प्रहर में मधु से स्नान करा कर षोडषोपचार पूजन करना चाहिए। तिथि विशेष पर व्रतीजनों को नित्य क्रिया से निवृत्त हो स्नानादि कर मस्तक पर त्रिपुंड लगा कर गले में रूद्राक्ष की माला धारण कर हाथ में जल-अक्षत-पुष्प लेकर नाम-गोत्रादि उच्चारण कर 'शिव के प्रसन्नार्थ मैं महाशिवरात्रि का व्रत करूंगा या करूंगी' मन में संकल्प लेना चाहिए।  दिन भर शिव स्मरण करें, सायंकाल स्नान कर शिवालयों में प्रभु के सामने   उत्तराभिमुख बैठ कर 'सभी तरह के पापों का क्षय हो और अक्षय पुण्य की प्राप्ति हो' का संकल्प कर पूजन प्रारंभ करना चाहिए। इस दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव सहस्त्रनाम, शिव सतनाम, शिव महिमास्रोत, शिव मंत्र आदि का पाठ-जप करना चाहिए। 

भगवान शिव वैदिक देवता हैं। रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास लिखते हैं -'भावी मेट सके त्रिपुरारी...' अर्थात जो भावी को भी टालने वाले भगवान शिव हैं। अत: जिन लोगों की कुंडली में मार्केश आदि अनिष्टकारी ग्रह दशाएं चल रही हैं या कोई भी ग्रह अशुभ फल को देने वाला हो तो इस पर्व तिथि विशेष पर ग्रहीय जाप व ग्रहीय दान करना चाहिए। साथ ही इस तिथि पर अभिषेक महामृत्युंजय जपादि से अन्य दिनों की अपेक्षा सहस्त्रगुणादि फल की प्राप्ति होती है। देवाधिदेव अतिशीघ्र प्रसन्न होने वाले हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.