Mahamahopadhyaya Pandit Gopinath Kaviraj Death Anniversary कविराज ने तंत्र शास्त्र को पूरी दुनिया में दिलाई पहचान
Mahamahopadhyaya Pandit Gopinath Kaviraj Death Anniversary तंत्रागम विभाग की स्थापना के संग ही पूरी दुनिया में तंत्रशास्त्र को पहचान दिलाई थी।
वाराणसी, जेएनएन। Maha mahopadhyaya Pandit Gopinath Kaviraj Death Anniversary (जन्म 7 सितंबर 1887, निधन 12 जून 1976) महामहोपाध्याय पंडित गोपीनाथ कविराज ने संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में न केवल तंत्रागम विभाग की स्थापना की, बल्कि पूरी दुनिया में तंत्रशास्त्र को पहचान दिलाई थी। एक तरह से उन्होंने तंत्रशास्त्र में छिपे रहस्यों से पर्दा उठाया। इससे पहले दुनिया में लोग तंत्रशास्त्र के बारे में जानते ही नहीं थे। महान दार्शनिक केवल तंत्रशास्त्र के ज्ञाता ही नहीं, बल्कि वेद-वेदांग, न्याय, सांख्य-योग, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, दर्शन सहित तमाम शास्त्रों के ज्ञाता थे। उन्हें चलता-फिरता विश्वकोश माना जाता था।
भारतीय शास्त्र ही नहीं सूफीवाद व ईसाई रहस्यवाद का भी गहन ज्ञान था
भारतीय शास्त्र ही नहीं सूफीवाद व ईसाई रहस्यवाद का भी गहन ज्ञान था। शास्त्र उनके जुबान पर रहता था। यही कारण है कि देश-विदेश से तमाम विद्वान उनसे शिक्षा ग्रहण करने विश्वविद्यालय आते थे। खास बात यह है कि भारतीय शास्त्र के अलावा कुरान, बाइबिल पर भी उनकी पकड़ समान रूप से थी। तमाम विदेशी मुस्लिम, इसाई भी उनसे समझने विश्वविद्यालय आते रहते थे। कहा जाता है कि सागर की थाह लगाई जा सकती है लेकिन उनके ज्ञान के सागर का थाह नहीं लगाया जा सकता है। वह भारतीय दर्शन की एक शाखा पूरी संस्था थे।
पं. गोपीनाथ कविराज का जन्म सात सितंबर 1887 को ढाका (बांग्लादेश) में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा जयपुर में हुई। काशी में क्वींस कालेज में भी उन्होंने पढ़ाई की थी। वर्ष 1913 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए में सर्वाधिक अंक अर्जित किया। वर्ष 1914 में विश्वविद्यालय स्थित सरस्वती भवन पुस्तकालय में बतौर लाइब्रेरियन उनकी नियुक्ति 125 रुपये प्रतिमाह वेतन पर हुई। उस समय विश्वविद्यालय को राजकीय संस्कृत कालेज के रूप में जाना जाता था। इस प्रकार उन्होंने अपने कॅरियर की शुरूआत काशी से की। करीब छह साल (1914-1920) वह लाइब्रेरियन रहे।
योगिराज विशुद्धानंद परमहंस देव से मलदहिया स्थित विशुद्धानंद कानन में दीक्षा ली
तत्कालीन प्राचार्य डा. ए. वेनिस उन्हें काफी सम्मान देते थे। डा. वेनिस के बाद वह वर्ष 1923 में संस्कृत कालेज के प्राचार्य बने। 14 वर्षों तक संस्था के प्राचार्य के रूप में सेवा करने के बाद उन्होंने वर्ष 1937 में स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति ले ली। ग्रंथों के रूप में उनकी अमिट छाप विश्वविद्यालय के सरस्वती भवन में सहेज कर रखी हुई है। प्रतिभाशाली शिक्षाविद, सत्य को समर्पित साधक, आध्यात्मिक मार्गदर्शक का निधन वाराणसी में 12 जून 1976 को हुआ। तंत्र शास्त्र के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. शीतला प्रसाद उपाध्याय ने बताया कि उनके गुरु विशुद्धानंद ने इस आध्यात्मिक चिंतनधारा का काशी में ही प्रतिपादन किया था, जिसे पं. गोपीनाथ ने बाद में विस्तार दिया। 21 जनवरी 1918 में योगिराज विशुद्धानंद परमहंस देव से मलदहिया स्थित विशुद्धानंद कानन में दीक्षा ली थी। उन्होंने योग क्रिया पर आधारित दर्जन भर से अधिक पुस्तकें लिखीं, जिनमें भारतीय संस्कृति और साधना, साधु दर्शन और सतप्रसंग प्रमुख हैं।