#माघ पूर्णिमा : अंतिम डुबकी 19 फरवरी को, माघ पर्यंत स्नान विधान की होगी पूर्णाहुति
स्नान -दान-व्रत की माघी पूर्णिमा अपने आप में बेहद खास मानी जाती है। कारण यह कि सनातन धर्म में माघ, वैशाख, कार्तिक यानी तीन मास स्नान-ध्यान के लिए महापुनीत माने गए हैं।
वाराणसी, जेएनएन। स्नान -दान-व्रत की माघी पूर्णिमा अपने आप में बेहद खास मानी जाती है। कारण यह कि सनातन धर्म में माघ, वैशाख, कार्तिक यानी तीन मास स्नान-ध्यान के लिए महापुनीत माने गए हैं। इनमें भी माघी पूर्णिमा का स्नान-दान पुण्य की दृष्टि से बेहद ही महत्वपूर्ण होता है। इस बार माघ पूर्णिमा 19 फरवरी को पड़ रही है। पूर्णिमा तिथि 18 फरवरी की रात 11.50 बजे लग रही है जो 19 फरवरी की रात 9.26 बजे तक रहेगी।
धर्म शास्त्रकारों ने माघ मास को विशेष पुण्यप्रद माना है। निर्णय सिंधु के अनुसार यह मास भगवान विष्णु को अति प्रिय है। इस मास में अंतिम दिन यानी माघी पूर्णिमा को किए गए स्नान-दान को अनंत फल देने वाला बताया गया है। इस बार कुंभ का प्रमुख स्नान भी माघ मास के अंतिम स्नान के साथ ही होगा। इसके साथ ही एक मास अर्थात पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक चलने वाले स्नान-दान, यम -नियम की समाप्ति हो जाएगी। प्रयाग में कल्पवासी इस दिन कल्पवास की समाप्ति करेंगे। इसी दिन काशी में संत रविदास जयंती तथा सीर गोवर्धन ग्राम यात्रा तथा दर्शन आदि का विधान है। माघ में त्रिवेणी व काशी में स्नान अधिक पुण्यप्रद माने गए हैं।
स्नान विधान : श्रीकाशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार पूर्णिमा तिथि विशेष पर तीर्थ स्थानादि या स्वदेश में रह कर पवित्र नदी गंगा या काशी में दशाश्वमेध तथा प्रयाग आदि में अरूणोदय काल में स्नान करना चाहिए।
पूजन मंत्र : स्नान के आरंभ में ईश्वर की 'आपस्त्वमसि देवेश ज्योतिषाम अतिरेव च। पापम् नाशय मे देव वांग्मन: कर्मभि: कृतम।। से, जल की 'दुख दारिद्रय नाशय श्रीविष्णुतोषणाय च। प्रात: स्नानम् करोमध्य माघि पाप विनाशनम।।' से प्रार्थना कर स्नान के पश्चात 'सवित्रे प्रसवित्रे च परम धाम: जलेव मम। त्वतेजता परिभ्रस्तम पापम् यातु सहस्त्रधा।।' से सूर्य को अर्घ्य दे कर हरि पूजन-वंदन करना चाहिए।
दान का विशेष मान : उसके बाद गरीबों-असहायों तथा पुरोहितों को तिल, पात्र, ऊनी वस्त्र, कंबल, कपास, गुड़, घी, उपान:, फल, अन्न तथा स्वर्णादि का दान करना चाहिए। व्रत करके ब्राह्मïणों को भोजन कराना चाहिए। इससे जन्म-जन्मांतर के पापों का क्षय तथा कई जन्मों तक अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती रहती है।