घरों की पुरानी धूल कर सकती है आपको बीमारी, इनमें पनपते हैं माइट एलर्जी के जीवित कण
बीते करीब तीन दशक में वाराणसी परिक्षेत्र के निवासियों के फेफड़े कमजोर हुए हैं। इसके लिए जितना जिम्मेदार बाहरी प्रदूषण है उतना ही घर के भीतर का परिवेश भी है।
वाराणसी, जेएनएन। बीते करीब तीन दशक में वाराणसी परिक्षेत्र के निवासियों के फेफड़े कमजोर हुए हैं। इसके लिए जितना जिम्मेदार बाहरी प्रदूषण है उतना ही घर के भीतर का परिवेश भी है।
बीएचयू हॉस्पिटल स्थित टीबी एवं चेस्ट विभाग के प्रो. एसके अग्रवाल के अनुसार टीबी, अस्थमा, सीओपीडी को छोड़ भी दें तो भी हमारे फेफड़े 80 के दशक के मुकाबले कमजोर हुए हैं। इनडोर प्रदूषण के कारण पनपने वाला माइट एलर्जी इसकी प्रमुख वजह है। यह जीवित कण होते हैं। लंबे समय से बिछी कालीन के नीचे, पर्दे के पीछे, किताबों, कूलर की घास में या फिर पंखे के ब्लेड पर जमी धूल में ये पनपते हैं। इनका भोजन मनुष्य के त्वचा की मृत कोशिकाएं होती हैं। दरअसल जब हम साफ-सफाई करते हैं तो यह कण सांस के माध्यम से हमारी श्वांस नली में पहुंच जाते हैं। छींक आना, सर्दी-जुकाम होने के साथ ही फेफड़े से सीटी जैसी आवाज आना व सांस लेने में दिक्कत महसूस होना इसके प्रमुख लक्षण हैं। अमूमन मरीज सर्दी-जुकाम की सामान्य दवा से ही काम चला लेते हैं और इस गंभीर बीमारी की तरफ शुरूआती दिनों में ध्यान ही नहीं देते। धीरे-धीरे यह कण श्वांस की नली को संकरी करते चले जाते हैं और बाद में उसे विकृत कर देते हैं। मरीज भी डाक्टर के पास तब पहुंचता है जब सामान्य दवा कारगर साबित नहीं होती। ऐसे मरीजों को जीवन भर नेबुलाइजर देना पड़ सकता है।
नियमित सफाई है बचाव
- धूप इन जीवित कणों को पूरी तरह खत्म कर देता है इसलिए कमरों में धूप आने दें।
- खिड़की पर हल्के पर्दे लगाएं और नियमित रूप से उसे बदलते रहें।
- कार्पेट के नीचे, कूलर-पंखों या किताबों पर धूल न जमने दें।
- घर में निरंतर सफाई पर ध्यान दें, ताकि ये जीवित कण पनप ही न सकें।