संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय की वेधशाला में दो दशक बाद खुलेगा ताला, ग्रह-नक्षत्रों की होगी गणना
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर स्थित वेधशाला का ताला दो दशक बाद खुलेगा।
वाराणसी [अजय कृष्ण श्रीवास्तव]। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय परिसर स्थित वेधशाला का ताला दो दशक बाद खुलेगा। नियमित ग्रह-नक्षत्रों की गणना होगी, वहीं शिक्षक समय-समय पर छात्रों के साथ इसकी विशेषता को भी साझा करेंगे। इस दिशा में पहल शुरू हो चुकी है। विशिष्ट धरोहर को अपडेट करने के लिए नए सिरे से मार्किंग पूरी कर ली गई है। अध्यापन के लिए विशेषज्ञ के तौर पर शिक्षक की तैनाती भी हो चुकी है। अगस्त माह में व्यापक कार्यशाला बुलाने की तैयारी लगभग पूरी कर ली गई है। इसमें देश के कोने कोने से ज्योतिषविदों की जुटान होगी। ग्रह नक्षत्र की गणना संग मंथन होगा, लोककल्याण की राह प्रशस्त होगी। विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से खाका तैयार कर लिया गया है।
1992 में रखी गई वेधशाला की नींव महाराजा सवाई जयसिंह ने जयपुर में वेधशाला का निर्माण कराया था। इसके बाद वाराणसी में मान मंदिर व दिल्ली में 'जंतर-मंतर' के नाम से वेधशाला बनवाया गया था। वही प्राच्य विद्या के प्राचीनतम केंद्र विश्वविद्यालय में वेधशाला न होने के कारण छात्र प्रायोगिक ज्ञान से वंचित थे। इसे देखते हुए तत्कालीन कुलपति प्रो. विद्या निवास मिश्र ने वर्ष 1992 में परिसर में पं. सुधाकर द्विवेदी वेधशाला का निर्माण करवाया। वेधशाला के निर्माण में जयपुर के प्रख्यात ज्योतिर्विद् पं. कल्याणदत्त शर्मा का विशेष सहयोग रहा। वहीं इस वेधशाला का उद्घाटन 23 अगस्त 1992 में सूबे के तत्कालीन राज्यपाल वी. सत्यनारायण रेड्डी ने किया। दो-तीन वर्ष तक वेधशाला का उपयोग किया गया। इसके बाद परिसर में ताला चढ़ा दिया गया। विशिष्टजनों के आगमन के दौरान ही वेधशाला का ताला खुलता है। विशेषज्ञों के अभाव में वेधशाला एक संग्रहालय के रूप ले लिया था।
- अध्यापकों की कमी से विश्वविद्यालय जूझ रहा था। ज्योतिष सहित विभिन्न विभागों में 15 अध्यापक हाल में नियुक्त किए गए हैं। वेधशाला में ग्रह-नक्षत्रों की गणना को सबसे बड़ा रोड़ा अध्यापकों की कमी दूर कर ली गई है। अगस्त तक एक व्यापक कार्यशाला बुलाने का निर्णय लिया है। इसके बाद नियमित अध्ययन अध्यापन होगा। -प्रो. राजाराम शुक्ल, कुलपति