Move to Jagran APP

जौनपुर में देवनाथ की गोशाला में है लक्ष्मी और पार्वती का वास, 20 वर्ष पूर्व गायों की सेवा का लिया था संकल्प

करीब 18 वर्षों से देवनाथ शुक्ल गोसेवा कर रहे हैैं। 2003 में नासिक के कुंभ मेले में एक संत के कहने पर गायों की सेवा का संकल्प लिया था। वहां से लौटे तो 1500 रुपये में एक गाय खरीदी। नाम रखा लक्ष्मी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Thu, 28 Oct 2021 03:46 PM (IST)Updated: Thu, 28 Oct 2021 03:46 PM (IST)
जौनपुर में देवनाथ की गोशाला में है लक्ष्मी और पार्वती का वास, 20 वर्ष पूर्व गायों की सेवा का लिया था संकल्प
जौनपुर के बदलापुर कस्बे के उदपुर गेल्हवा में देवनाथ शुक्ला की गौशाला में बंधी गायें

जागरण संवाददाता, जौनपुर। करीब 18 वर्षों से देवनाथ शुक्ल गोसेवा कर रहे हैैं। 2003 में नासिक के कुंभ मेले में एक संत के कहने पर गायों की सेवा का संकल्प लिया था। वहां से लौटे तो 1500 रुपये में एक गाय खरीदी। नाम रखा लक्ष्मी। आज उसी लक्ष्मी से 45 गोवंशों की संख्या हो गई हैं। इनमें 34 गाय और 11 बछड़े हैैं। इसमें गायों का लक्ष्मी, सरस्वती व पार्वती तो बछड़ों का मुरारी, बनवारी व नंदलाल नाम रखे हैं। इनकी गोसेवा देखकर बरबस ही लोगों मुंह से निकल पड़ता है कि इनका जीवन धन्य है। बदलापुर कस्बे से उत्तर शाहगंज मार्ग स्थित ऊदपुर गेल्हवां (दाउदपुर बरुआन) निवासी 58 वर्षीय देवनाथ शुक्ल नासिक के महाकुंभ में गए थे। वहां एक संत ने इन्हें गोसेवा के महत्व को बताते हुए गायों की सेवा करने को कहते हुए संकल्प दिलाया। वहां से आने के बाद संकल्प के मुताबिक गोवंशों की सेवा में लगे हैं। सुबह-शाम सभी को चारा-पानी देने के बाद दिन में 11 बजे चरने के लिए छोड़ देते हैं। शाम को वापस आने पर चारा देने के बाद दूध निकालते हैं। जिसको जरूरतमंदों को देने के साथ ही अपने घर में ही उपयोग करते हैं।

prime article banner

जन सहयोग से करते हैं चारे की व्यवस्था

देवनाथ बताते हैं कि इनके दाना व चारे की व्यवस्था क्षेत्र के कुछ मानिंद लोगों से सहयोग लेकर करते हैं। कुछ गोबर की खाद बेचने से भी मिल जाता है। कहा कि गोसेवा करने से मानसिक संतुष्टि के साथ ही विश्व के कल्याण का एक उपक्रम भी है। मैं अपने जीवन से पूरी तरह संतुष्ट भी हूं।

यह है गायों का नाम

गोशाला में सभी गायों व बछड़ों का नामकरण किया गया है। जिन्हें उन्हीं के नामों से बुलाते हैं। जिसमें लक्ष्मी, कामधेनु, लाली, भाग्यश्री, गायत्री, नंदनी, सत्यभामा, ललिता, सुंदरी, रमा, सरस्वती, गंगा, भगवती, तुलसी, माया, जमोत्री, गंगोत्री, जमुना, बसुंधरा, पार्वती के साथ बछड़ो को मुरारी, जनार्दन, नंदलाल, शनी, श्याम, बुद्धिराम, गिरधारी, नंदी हैं।

पत्नी भी गोसेवा में बंटाती हैं हाथ

देवनाथ बताते हैं कि गोसेवा में पत्नी जयशीला भी पीछे नहीं रहती हैं। जब मैं गायों को चराने चला जाता हूं तो वह छोटे-छोटे बच्चों की देखभाल के साथ साफ-सफाई आदि करती हैं। इसके अलावा चचेरे भाई रामेश्वर नाथ भी साथ देते हैं।

तीन माह से पैर कटे गाय की कर रहे सेवा

देवनाथ के गोसेवा का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चराने ले जाते समय ट्रक के धक्के से एक गाय का पिछला एक पैर क्षतिग्रस्त हो गया। बाद में उसे काटना पड़ा। फिर भी व हिम्मत नहीं हारे। गाय को अलग रखकर दवा कराए। कटे पैर को मक्खियों से बचाने के लिए हमेशा बांधे रखते है।

नहीं मिली सरकारी इमदाद

अभी तक देवनाथ के इस पुनीत कार्य में हाथ बंटाने के लिए कोई सरकारी मदद नहीं मिली। न ही कोई जनप्रतिनिधि ही आगे आया। जबकि गोसेवा प्रदेश सरकार की प्राथमिकताओं में है। इसके बावजूद इतनी बड़ी उपेक्षा यह क्षेत्रवासियों के गले नहीं उतर रहा है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.