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प्रवासी दिवस : भारतीय संस्कृति व भाषा के वैश्विक प्रचारक 'प्रो. रत्नाकर नराले'

अभारतीय लोगों में भारतीय संस्कृति और भारतीय भाषाओं के प्रचार में भारतीय मूल के कनाडा निवासी प्रो. रत्नाकर नराले का नाम आज सबसे प्रमुखता से लिया जाता है।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Thu, 10 Jan 2019 01:32 PM (IST)Updated: Thu, 10 Jan 2019 01:32 PM (IST)
प्रवासी दिवस : भारतीय संस्कृति व भाषा के वैश्विक प्रचारक 'प्रो. रत्नाकर नराले'
प्रवासी दिवस : भारतीय संस्कृति व भाषा के वैश्विक प्रचारक 'प्रो. रत्नाकर नराले'

वाराणसी [मुहम्मद रईस] । भारत से बाहर भारतीय मूल के लोगों एवं अभारतीय लोगों में भारतीय संस्कृति और भारतीय भाषाओं के प्रचार में भारतीय मूल के कनाडा निवासी प्रो. रत्नाकर नराले का नाम आज सबसे प्रमुखता से लिया जाता है। करीब 50 वर्षों से कनाडा में रहते हुए प्रो. रत्नाकर नराले ने हजारों भारतीय मूल को अंग्रेजी-भाषी एवं अभारतीय लोगों को भारतीय संस्कृति से परिचित कराने एवं उनमें भारतीय भाषाओं का बीजारोपण किया। 

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11 सितंबर 1942 को नागपुर, महाराष्ट्र में जन्में रत्नाकर नराले ने पुणे विश्वविद्यालय से बीएससी, एमएससी व आइआइटी खडग़पुर से पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। उधर, कालीदास संस्कृत विश्वविद्यालय, नागपुर से भी उन्हें पीएचडी की डिग्री प्रदान की गई। प्रो. नराले 50 वर्ष से कनाडा में निवास कर रहे हैं और उन्हें वहां की नागरिकता प्राप्त है। हिंदी, संस्कृत, मराठी, बंगाली, पंजाबी, तमिल, उर्दू, अंग्रेजी और फ्रेंच भाषाओं के जानकार प्रो. नराले ने कनाडा में रहते हुए मराठी, बंगाली, पंजाबी, तमिल और उर्दू भाषाओं के प्रचार में साधारण रूप से एवं हिंदी तथा संस्कृत के प्रचार में विशेष रूप से अपना योगदान दिया। उन्होंने टोरंटो स्कूल बोर्ड के साथ ही टोरंटो के तीनों विश्वविद्यालयों-यार्क विश्वविद्यालय, टोरंटो विश्वविद्यालय और रायर्सन विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ाई। शायद ही किसी भारतीय मूल के व्यक्ति को इन तीनों विश्वविद्यालय में पढऩे का गौरव प्राप्त हो। विश्वविद्यालय के अतिरिक्त प्रो. नराले का संबंध कई अन्य संस्थाओं से भी रहा है। के हिंदू इंस्टिट्यूट-टोरंटो के प्रधानानार्य (1995 से), संस्कृत हिंदी रिसर्च इंस्टिट्यूट-टोरंटो के अध्यक्ष तथा पुस्तक भारती के निदेशक (1990 से) हैं। 

लेखक-प्रकाशक ही नहीं संगीतकार भी हैं प्रो. नराले : प्रवासी प्रो. रत्नाकर नराले लेखक, प्रकाशक और संगीतकार तीनों एक साथ हैं। पेशे से इंजीनियर प्रो. नराले ने बालकृष्ण दोहावली, नंदकिशोर दोहावली, गीता दोहावली, रामायण दोहावली, संगीत श्रीकृष्णायन, संगीत श्रीरामायण आदि महाकाव्य सहित गीता का शब्दकोश और अनुक्रमणी, गीता दर्शन, हिंदी शिक्षा, नई संगीत रोशनी, संगीत श्रीकृष्णरामायण के गिने-चुने पुष्प, संगीत श्री-सत्यनारायण व्रत कथा, हिंदी टीचर फार इंग्लिश स्पीकिंग पीपल, हिंदी टीचर फार हिंदू चिल्ड्रेन, जैसी हिंदी पुस्तकों का लेखन किया। रत्नाकर-रचित गीतोपनिषद् महाकाव्य, पातंजल-योगदर्शन-दीपिका, संस्कृत टीचर ऑल इन वन, संस्कृत ग्रामर एंड रिफरेंस बुक, संस्कृत प्रीमियर, गीता ऐज शी इज इन कृष्णाज ओन वडर््स वोल्यूम 1, 2, 3, गुरुमुखी टीचर, तमिल टीचर, उर्दू टीचर, फ्लिप्ड इंग्लिश डिक्शनरी जैसी अन्य पुस्तकें प्रकाशित हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि ये सभी पुस्तकें अमेजन डॉट कॉम पर उपलब्ध हैं। दोहा छंद और विविध रागों के गीतों में लिखे हुए बालकृष्ण दोहावली, नंदकिशोर दोहावली, गीता दोहावली और रामायण दोहावली चारों महाकाव्य हिंदी जगत के लिए महत्वपूर्ण वांङ्मय देन हैं। 

अनूठा महाकाव्य है भारतीय संस्कृति-संस्कृत-हिंदी : इतिहास रचने वाला भारतीय संस्कृति-संस्कृत-हिंदी संगीत जगत का अनूठा महाकाव्य है। 2000 पृष्ठ का यह वृहद ग्रंथ हिंदी वांङ्मय की पराकाष्ठा है। राग व छंदशास्त्र की यह मंगल कविता-सविता शत-प्रतिशत संगीत से भरी है। भारतीय संस्कृति का व गीत-संगीत-काव्य विषय का ऐसा शायद ही कोई पहलू होगा जो इस ग्रंथ में सुंदरता से प्रस्तुत न किया गया हो। इसे भारत के कई पद्म विभूषित महारथियों का आशीर्वाद प्राप्त है। श्रीव्यास महामुनि के बाद, श्रीगीता का पूर्णतया अनुष्टुप श्लोक छंद में रत्नाकर रचित गीतोपनिषद् एक अकेला मनोरम गीताज्ञान श्लोक सागर है। गीता एज इट इज इन कृष्णाज ओन वर्डस् पुरस्कार प्राप्त प्रकाशन गीता के छात्र, अध्यापक, प्रेमी सभी के लिए यह अनंत ज्ञान कोषागार है। 

हस्तलेखन से कंप्यूटर युग तक : संस्कृत और हिंदी के प्रचार के लिए उस जमाने में कंप्यूटर आदि अस्तित्व में न होने के कारण प्रो. नराले हस्तलिखित या टंकलिखित शैक्षणिक सामग्री की साइक्लेस्टाइल या ब्लूप्रिंट माध्यम से पुस्तकें बना कर ङ्क्षहदी, संस्कृत व गीता की कक्षाएं चलाने लगे। फिर जेराक्स मशीनें आईं और उनकी कार्यक्षमता उन्नत हुई। धीरे-धीरे डेटा-प्रोसेसिंग उपलब्ध हुई तो उन्होंने अपने हिंदी-संस्कृत फांट्स बना कर हिंदी सिखाने की सीडी और देवनागरी के अनुपम चार्ट के साथ ङ्क्षहदी-संस्कृत का प्रचार शुरू किया। रत्नाकर नराले द्वारा बनाए हुए 'रत्नाकर' नामक देवनागरी, हिंदी, संस्कृत, मराठी (तमिल, उर्दू और गुरुमुखी) टीटीएफ फांट्स इतने सुंदर और आसान थे कि कनाडा के अखबार, मीडिया संस्थाएं, लेखक और पुस्तक-भारती के प्रकाशक इन्हीं उत्कृष्ट फांट्स का प्रयोग करने लगे। इसके अतिरिक्त 'नराले', 'सरस्वती', 'गणेश', 'आदेश' सदृश अन्य फांट्स भी उन्होंने बनाए। प्रथम मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार प्राप्त करने वाले हरिशंकर आदेश के सभी महाकाव्य 'आदेश' फांट में ही टाइप हुए थे। 1989 में वर्ल्ड-वाइड-वेब इंटरनेट आया। रत्नाकर नराले की बिना मूल्य ऑन-लाइन हिंदी शिक्षा की विशेष सुविधा शुरू हुई। विश्व के सभी हिंदी प्रेमियों के लिए निश्शुल्क हिंदी पाठ उपलब्ध किए गए। 

सस्ती दर पर भारतीयों के लिए शुरू किया प्रकाशन : प्रो. नराले का एक बहुत ही उत्तम कार्य कनाडा से ही पुस्तकों का प्रकाशन आरंभ करना था। उन्होंने 1990 में ही 'पुस्तक भारती' प्रकाशन की स्थापना की और सभी प्रकार की पुस्तकों के प्रकाशन की व्यवस्था बहुत ही सस्ती दर पर कनाडा से ही कर दी। इससे पूर्व भारतीयों को अपनी पुस्तके प्रकाशित कराने के लिए भारत आना पड़ता था। उनके प्रकाशन की सबसे अच्छी बात यह है कि उनके द्वारा प्रकाशित पुस्तकों का प्रचार विश्वस्तर का होता है। साथ ही सभी पुस्तकें हमेशा के लिए अमेजन डाट काम पर सुरक्षित हो जाती हैं। 

विश्व हिंदी सम्मान से किए गए विभूषित : प्रो. नराल  को कई प्रतिष्ठित पुरस्कार व सम्मान प्राप्त हुए हैं। उन्हें वेदव्यास प्रतिस्थान-पुणे की ओर से 2013 में 'गीता वाचस्पति' पुरस्कार, कनाडा के 150वीं जयंती महोत्सव पर 'हिंदू रत्न' पुरस्कार, अखिल विश्व हिंदी समिति-टोरंटो की ओर से वर्ष 2018 में 'कला वारिधि सम्मान', हिंदी राइटर्स गिल्ड-टोरंटो की ओर से 2018 में 'सरस्वती सम्मान', वर्ष 2018 में ही भारतीय विदेश मंत्रालय की ओर से मॉरीशस में 'विश्व हिंदी सम्मान' प्राप्त हुए।  


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