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शास्त्री की जयंती आज: हम सुन रहे यादों की आवाज, अब तो बता दो मौत का राज

पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की स्मृतियां आज भी रामनगर की गलियों में आबाद हैं। विनम्रता की मूरत और दृढ़ता के स्तंभ, यानी जो कुछ ठान लिया उसे पा ही लिया।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Tue, 02 Oct 2018 08:18 AM (IST)Updated: Tue, 02 Oct 2018 09:32 AM (IST)
शास्त्री की जयंती आज: हम सुन रहे यादों की आवाज, अब तो बता दो मौत का राज
शास्त्री की जयंती आज: हम सुन रहे यादों की आवाज, अब तो बता दो मौत का राज

वाराणसी [प्रमोद यादव]। समय की शिला पर अपनी जीवटता से एक भरी पूरी चित्रावली उकेरने वाले पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की स्मृतियां आज भी रामनगर की गलियों में आबाद हैं। विनम्रता की मूरत और दृढ़ता के स्तंभ, यानी जो कुछ ठान लिया उसे पा ही लिया।

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इसके लिए दुश्वारियों भरे समय से लोहा लिया, दो हाथ किया और उसे औकात बताते हुए एक गौरवशाली इतिहास रच दिया। उनकी स्मृतियों के संग्रहालय रूप में संजोया गया पुराना रामनगर स्थित उनके आवास की दरो-दीवार ये दास्तान बताती है। इसमें शास्त्री जी व उनकी पत्नी ललिता शास्त्री के दैनंदिन उपयोग में लाए गए सभी सामान तो हैं ही बाल्यकाल से अंतिम समय तक और फर्श से अर्श तक पहुंचने की पूरी कहानी तस्वीरों की जुबानी चस्पा हैं।

भवन की एक-एक ईंट नन्हें (शास्त्री जी) के व्यक्तित्व की विशालता का अहसास कराती है। बस, कसक सिर्फ इस बात की रह जाती है कि आखिर 11 जनवरी 1966 की रात ताशकंद में क्या हुआ जिसने काशी से उसका लाल ही नहीं वरन् समूचे भारतवासियों से एक संवेदनाओं से ओतप्रोत नेता छीन लिया। उस समय बात तो हृदयाघात की सामने आई लेकिन उसके पीछे की कहानी आज तक किसी ने नहीं बताई।

अभी जब इसी 27 सितंबर को लालबहादुर शास्त्री की स्मृतियों को सहेजे संग्रहालय भवन को लोकार्पित करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रामनगर आए तो अपनी नगरी के लाल के प्रति इस सम्मान से चेहरों पर सहज सुलभ चमक तो निखर आई लेकिन इससे भी कहीं अधिक उनकी रहस्यमय मौत की टीस दिलों में उभर आई, जो बाहर से भले न दिखाई दी हो लेकिन इसके भाव तो यही थे कि हम सुन रहे यादों की आवाज, आप सिर्फ बता दो हमारे अपने 'नन्हें' की मौत का राज।

उस समय इन भावों को आवाज दी शास्त्री के पुत्र अनिल शास्त्री ने और सरकार से अपने पिता की रहस्यमय मौत की नए सिरे से जांच कराने और ताशकंद से मौत से जुड़े सभी सुबूत ले आने की मांग की थी।

दरअसल, शास्त्री जी के परिवारीजन का मानना है कि 'बाबू जी' का निधन हृदयाघात से नहीं हुआ बल्कि उन्हें जहर देकर मार दिया गया। अनिल शास्त्री ने अपने संदेह के समर्थन में तर्क भी दिया कि आखिर भारतीय पीएम को भारत-पाकिस्तान समझौता स्थल उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद से 15 किमी दूर क्यों ठहराया गया। उनके कमरे में टेलीफोन और न ही कोई घंटी थी जिसे दबाकर वे किसी को बुला सकें। सदा उनके साथ रहने वाली लाल डायरी का पता नहीं चला तो उस थरमस को भी कब्जे में नहीं लिया गया जिसमें उन्होंने आखिरी रात दूध और पानी पिया था। जनभावनाओं को समझते हुए सीएम योगी ने भी स्वीकार किया था कि सभी जानना चाहते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री शास्त्री जी की मृत्यु कैसे हुई थी। उस पूरे वाकये ने एक बार फिर शास्त्री जी की मौत के रहस्य को लेकर अधीर कर दिया है।

दुल्हन के लिए लाए थे खद्दर की धोती

पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का नाम आते ही उनकी सादगी, सरलता व सौम्यता सभी के जेहन में कौंध जाती है। वह कितने सरल थे, इसकी एक बानगी उस समय देखने को मिली थी जब वे दुल्हा बनकर 16 मई 1928 को मीरजापुर के गैबी घाट पहुंचे थे। उसे यादकर आज भी घर की बुजुर्ग महिला रिश्ते में उनकी ममेरी भाभी विद्यावती, साले की बहू पुष्पा मोहन व उनके बेटे विपुल चंद्रा यादों में खो जाते हैं।

विद्यावती कहती हैं कि शास्त्रीजी अपने साथ खद्दर की एक धोती लाए थे जिसे उन्होंने घर के अंदर इस संदेश के साथ भेजवाया कि इसी धोती में वे पत्नी को विदा कर ले जाएंगे। उस समय ससुराल पक्ष के लोग हैरत में पड़ गए लेकिन वे शास्त्री जी की सहजता को सहर्ष स्वीकार कर लिया और उसी धोती में दुल्हन बनीं ललिताजी की विदाई की गई। गैबी घाट में ललिताजी का घर है जहां तक पहुंचने वाले रास्ते को ललिता मार्ग इसी वर्ष घोषित किया गया। प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार जब लाल बहादुर शास्त्री अपने ननिहाल पहुंचे तो उन्होंने अपनी मामी से आग्रह करके कोदो की खीर व बाजरे की कचौड़ी बनवाई और बड़े चाव से खाने के बाद ही वे ननिहाल से वापस गए। 


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