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चीन के राष्‍ट्रपति और पीएम मोदी यहां करने जा रहे हैं मुलाकात, जानिए क्‍या है इस जगह की खासियत

सारनाथ एक बार फ‍िर विश्‍व स्‍तर पर चर्चा में है दरअसल इसी वर्ष पीएम नरेंद्र मोदी चीन के राष्‍ट्रपति शी चिनपिंग के साथ यहां पर मुलाकात करने जा रहे हैं।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Fri, 20 Sep 2019 02:58 PM (IST)Updated: Fri, 20 Sep 2019 06:05 PM (IST)
चीन के राष्‍ट्रपति और पीएम मोदी यहां करने जा रहे हैं मुलाकात, जानिए क्‍या है इस जगह की खासियत
चीन के राष्‍ट्रपति और पीएम मोदी यहां करने जा रहे हैं मुलाकात, जानिए क्‍या है इस जगह की खासियत

वाराणसी [प्रमोद यादव]। सारनाथ एक बार फ‍िर विश्‍व स्‍तर पर चर्चा में है। दरअसल इसी वर्ष पीएम नरेंद्र मोदी चीन के राष्‍ट्रपति शी चिनपिंग के साथ यहां पर मुलाकात करने जा रहे हैं। बौद्ध धर्म के पंचशील सिद्धांतों पर आधारित भारत चीन के रिश्‍तों में भगवान बुद्ध की प्रथम उपदेश स्‍थली सारनाथ एक अहम पड़ाव साबित हो सकता है। विश्व विख्यात धर्म चक्र प्रवर्तन स्थली सारनाथ एक पूरा अतीत समेटे है। यह बौद्ध धर्मानुयायियों की आस्था का प्रधान केंद्र तो है ही, जैन व हिंदू धर्मावलंबियों के लिए भी इसका विशेष महत्व है। सारनाथ के सिंहपुर में 11वें तीर्थंकर श्रेयांशनाथ का जन्म होने से जैनों का यह अतिपवित्र तीर्थ है। मृगों के नाथ अथवा महादेव के नाम पर इसका सारनाथ नाम पड़ा जो शिव का एक उपनाम है। ऐसे में धार्मिक मान्यताओं-विचारों की त्रिवेणी सारनाथ सदा से एका, सद्भाव, शांति का संदेश प्रसारित व प्रवाहित करती रही है। 

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ऋषि पत्तन, मृगदाव या मृगदाय के नाम से कभी जानी जाने वाली विश्वविख्यात धर्म चक्र प्रवर्तन स्थली सारनाथ वाराणसी के पुरावैभव का श्रेष्ठ अध्याय है। बोधगया में संबोधि प्राप्ति के बाद महात्मा बुद्ध ने सारनाथ में ही प्रथम ज्ञानोपदेश दिया। बौद्ध धर्म की सबसे पवित्र इस स्थली में तृतीय शताब्दी ई. पूर्व से प्रारंभ कर 12वीं शती ई. तक धार्मिक-सांस्कृतिक गतिविधियां अनवरत होती रहीं जिसे यहां से प्राप्त पुरावशेष प्रमाणित करते हैं। इससे संबंधित पुरा सामग्री संग्रहालयों में संग्रहित- प्रदर्शित है। जो स्पष्ट करती है कि सारनाथ ने केवल बौद्ध धर्मानुयायियों की आस्था का प्रधान केंद्र है बल्कि जैन व हिंदू धर्मानुयायियों के लिए भी इस स्थान का विशेष महत्व है। नजीर के तौर पर सारनाथ के सिंहपुर में जैन धर्म के 11वें तीर्थंकर श्रेयांशनाथ का जन्म होने के कारण यह जैनों का अतिपवित्र तीर्थ है। इस स्थल का नाम मृगों के नाथ अथवा महादेव के नाम पर पड़ा है जो शिव का एक उपनाम है। इस तरह सारनाथ धार्मिक मान्यताओं और विचारों की त्रिवेणी है।

भगवान बुद्ध के बाद भारत के कई शासकों ने यहां अनेक मठ, मंदिरों, स्तूपों आदि का लगभग 12वीं सदी तक निर्बाध रूप से निर्माण कराया। इनमें मगध सम्राट अशोक निर्मित स्तंभ, धर्मराजिका, धमेख स्तूप तथा कालांतर में अन्य राजवंशों के सहयोग से बनाए गए  अनेक विहार, मंदिर व लघु स्तूप यहां की पुरा धरोहर हैं। भारत का राष्ट्रीय चिह्न यहीं से प्राप्त है जो सारनाथ संग्रहालय में प्रदर्शित है। कालांतर में सारनाथ मूर्तिकला का विख्यात केंद्र बना और यहां के शिल्प शास्त्र की स्वतंत्र शैली विकसित हुई। भगवान बुद्ध की धर्म चक्र प्रवर्तन मुद्रा में निर्मित विख्यात प्रतिमा इस शैली की सर्वश्रेष्ठ कृति मानी जाती है। धर्मराजिका स्तूप, धमेख, चौखंडी स्तूप, मूलगंध कुटी विहार अनेक संघाराम मूर्तियां, प्रस्तर शिल्प, अभिलेख आदि के अध्ययन से सारनाथ का पुरावैभव की प्रतिति होती है। 

रहस्य की तलाश 

पुराविदों को 18वीं शताब्दी से सारनाथ के खंडहर आकर्षित करने लगे। पहली प्रामाणिक जानकारी बनारस के तत्कालीन कमिश्नर डंकन के 1798 ई. के विवरण से प्राप्त होती है। इसमें डंकन ने सारनाथ के पुरा स्थल से भवन निर्माण के लिए अवैध तरीके से ईंट-पत्थरों के दोहन के बारे में लिखा। वर्ष 1835 में एलेक्जेंडर कनिंघम ने पुरातात्विक उत्खनन का श्रीगणेश किया फिर तो सिलसिला ही शुरू हो गया। मेजर किïट्टो ने 1851-52, सी हार्न ने 1865, एफओ ओरटेल ने 1904-05, सर जान मार्शल ने 1907, हर ग्रीव्स ने 1914-15 व दयाराम साहनी ने 1927-32 में इसे आगे बढ़ाया। विभिन्न चरणों के उत्खनन में कई संघाराम, स्तूप, मंदिर व मनौती स्तूप के भग्नावशेष सामने आए। मौर्यकाल से लेकर गहड़वाल काल तक के अनेक पुरावशेषों भी प्राप्त हुए। कला शैली के आधार पर इनके कालक्रम का निर्धारण किया गया। 

संग्रहालय में सहेज रखी है थाती 

समय-समय पर उत्खनन से प्राप्त पुरावशेषों के संग्रह-सुरक्षा के लिए सारनाथ पुरातात्विक स्थल पर ही चारो ओर से खुली छत युक्त संरचना का निर्माण कराया गया। इसे उत्खनन में मिले प्राचीन खंभों के सदृश नए स्तंभों से सजाया गया। उसमें मूर्तियों को अवलोकनार्थ प्रदर्शित किया गया। निरंतर पुरातात्विक उत्खनन और पुरावशेषों की संख्या बढऩे पर 1904 भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण महानिदेशालय ने 1910 में संग्रहालय बनवाया गया। इसके  भवन को उत्खनन में प्राप्त अर्द्ध संघाराम (बौद्ध भिक्षुओं का निवास स्थान) के आधार पर आकार दिया गया। सारनाथ पुरातात्विक स्थल की कई चरणों में उत्खनन से प्राप्त 6832 पुरावशेषों में से 284 इसमें अवलोकनार्थ रखे गए हैं। अन्य को भी सुरक्षित रखा गया है जिन्हें समय- समय पर निकाल कर वीथिका में स्थान दिया जाता है। मूर्तियों व अन्य पुरावशेषों की सुरक्षा के लिहाज से विशेषज्ञ रसायन शास्त्रियों द्वारा रसायनिक परीक्षण, सफाई व लेप चढ़ाया जाता है। 

संग्रहित गौरव चिह्न

सिंह शीर्ष : संग्रहालय के मुख्य हाल में भारत का राष्ट्रीय चिह्न सिंह शीर्ष है। सम्राट अशोक द्वारा निर्मित मौर्य कालीन चमकदार पॉलिशयुक्त कलाकृति में चार सिंह पीठ से पीठ सटाकर चार दिशाओं में मुंह किए गोलाकार चौकी पर उकड़ू बैठे हैं। इनके चारों ओर वृषभ, अश्व, गज व सिंह की गतिमान आकृतियां हैं। इनके बीच 24 तीलियों वाला चक्र है, जिसे राष्ट्रीय ध्वज में स्थान दिया गया है। 

चक्र : मुख्य हाल में 32 तीलियों वाला प्रस्तर निर्मित चक्र प्रदर्शित है जो संभवत: अशोक स्तंभ के सिंह शीर्ष केऊपर निर्मित था। यह पुरावशेष बहुत ही खंडित अवस्था में है। इसकी कुछ ही तीलियां शेष हैं। 

बोधिसत्व : मथुरा शैली में निर्मित कुषाणकालीन लाल बलुआ पत्थर की बोधिसत्व प्रतिमा मुख्य हाल में प्रदर्शित है। मथुरा शैली भारतीय शिल्पकारों की पहली कला शैली है जो विदेशी प्रभाव मुक्त है। 

विशाल छत्र : मथुरा के लाल बलुआ पत्थर से निर्मित विशाल छत्र मुख्य हाल में प्रदर्शित है। संभवत: बोधिसत्व के पीछे खड़े प्रस्तर खंड के ऊपर आच्छादित रहा होगा। छत्र को बारीक चित्रकारी कर अलंकृत किया गया है।

बुद्ध की धर्मचक्र प्रवर्तन मुद्रा: गैलरी संख्या एक में रखी गुप्तकालीन अद्वितीय मूर्ति भारतीय मूर्तिकला की विशिष्ट धरोहर है। सारनाथ कला शैली में निर्मित इस मूर्ति को कला इतिहासकारों ने श्रेष्ठतम माना है। मूर्ति के आसन के मध्य चित्रित चक्र बुद्ध द्वारा सारनाथ में दिए गए पहले उपदेश का प्रतीक है। पांच पुरुषों का चित्रण पांच बौद्ध भिक्षुओं का सूचक है जिन्हें महात्मा बुद्ध ने प्रथम उपदेश दिया। माना जाता है महिला रूप में इस मूर्ति शिल्पी का चित्रण है। बुद्ध की मूर्ति को तराशने में मूर्तिकार ने उन्हें महापुरुषों के समस्त लक्षणों से युक्त किया है, यथा-केश, लंबे कान, गले की धारियां, अद्र्ध उन्मीलित नेत्र, प्रभा मंडल व पारदर्शी चीवर का अंकन। 

बुद्ध जीवन दृश्यावली : पांचवीं-छठीं शताब्दी के इस पुरावशेष में भगवान बुद्ध के जीवन की आठ महत्वपूर्ण घटनाएं प्रदर्शित की गई हैं। इसमें बुद्ध का जन्म, वैशाली में वानरराज द्वारा मधु का दान, संकीशा में त्रयस्त्रिंश स्वर्ग आरोहण, धर्म चक्र प्रवर्तन, बोध गया में ज्ञान प्राप्ति, राजगृह का नीलगिरी दमन, श्रावस्ती का चमत्कार व कुशीनगर में महापरिनिर्वाण एक ही शिलाखंड पर उकेरा गया है। 

जैन मूर्तियां : जैन धर्म के 11वें तीर्थंकर श्रेयांशनाथ की जन्म स्थली है सारनाथ। संग्रहालय में 13वें तीर्थंकर विमलनाथ की कायोत्सर्ग मुद्रा में शूकर के साथ मूर्ति वीथिका संख्या चार में है। इसी वीथिका में 23वें तीर्थंकर की पांच फणों वाले नाग के साथ मूर्ति प्रदर्शित है।

हिंदू देवालयों के चौखट : उत्खनन में मिली हिंदू धर्म के देवी-देवताओं की मूर्तियां भी संग्रहालय में रखी हैं। वीथिका संख्या पांच में पत्थर निर्मित खंडित दो पुरावशेषों में हिंदू मंदिर के चौखटों पर नवग्रहों का अंकन है। ये 10-11वीं सदी के हैं। इनमें एक चौखट में नवग्रह के बीच लक्ष्मी तथा दोनों पाश्र्व में गणेश-सरस्वती का चित्रण है। दूसरे पुरावशेषों में नवग्रहों के साथ मध्य में विष्णु, पाश्र्व में ब्रह्मा व महेश दर्शाए गए हैं। 

अंधकासुर वध मूर्ति : भगवान शिव द्वारा अंधकासुर दानव वध मूर्ति पांचवीं वीथिका में प्रदर्शित है। इसमें भगवान शिव धनुष- बाण, त्रिशूल, हड्डी व कपाल के शस्त्रों से अंधकासुर दानव का वध करते दिखते हैं। अंधकासुर के रक्त की बूंद भूमि पर गिरने से नए दानव के उत्पन्न होने से रोकने को भगवान शिव दूसरे हाथ में कपाल लेकर रक्त एकत्र कर रहे हैं। भूमि पर गिरे रक्त से उत्पन्न दानवों को पैरों से कुचल भी रहे हैं। 12वीं सदी निर्मित प्रस्तर मूर्ति पूरी तरह परिष्कृत नहीं की जा सकी, क्योंकि मूर्ति में कुछ अंश पर छेनी द्वारा तरासे जाने के चिह्न हैं।  

 

सालाना 3.50 लाख से अधिक सैलानी  

बनारस आने वाले सैलानियों में लगभग 25 फीसद सारनाथ जरूर आते हैं। यह संख्या सालाना 3.50 लाख से ऊपर जाती है। हालांकि ये आंकड़े संग्रहालय प्रवेश टिकट के आधार पर होते हैं जिसमें 15 वर्ष से कम उम्र वालों की संख्या नहीं शामिल है। ऐसे में संख्या और अधिक हो जाती है। 

सारनाथ में सैलानियों की संख्‍या

वर्ष

 सैलानी
2013-14  3,02,682
2014-15 3,32,182
2015-16  4, 06,887
2016-17 3,99,309
2017-18 3,55,842 
2019, 18 सितंबर तक  2.75 लाख

 

तमाम देशों से बरसती श्रद्धा 

सारनाथ में दुनियाभर से बौद्ध धर्मावलंबी आते हैं लेकिन इनमें श्रीलंका व थाईलैंड से आने वालों की संख्या अधिक होती है। वियतनाम, म्यांमार, कोरिया, जापान के साथ ही चीन, कोरिया, ताइवान, मंगोलिया, वर्मा, कंबोडिया, लाओस आदि देशों से हर वर्ष दर्शन-भ्रमण के लिए सैलानी आते हैं। 

दसियों देशों के मंदिर 

सारनाथ में मंदिरों की विशाल शृंखला है। इनमें चाइनीज बौद्ध मंदिर, जापानी बौद्ध मंदिर, तिब्बती बौद्ध मंदिर, बर्मा बौद्ध मंदिर, थाई बौद्ध मंदिर, कंबोडियाई बौद्ध मंदिर, वियतनामी बौद्ध मंदिर, कोरिया बौद्ध मंदिर, तिब्बतियों का वज्र विद्या संस्थान, श्रीलंका का मूलगंध कुटी बौद्ध विहार प्रमुख हैं। इनमें सुबह-शाम अपनी अपनी परंपरानुसार बौद्ध धर्मानुयायी पूजा करते हैं। हालांकि विभिन्न देशों से आए धर्मानुयायी धमेख स्तूप की सुबह-शाम परिक्रमा और सभी बौद्ध मठों में दर्शन-पूजन करते हैं।  

कार्तिक पूर्णिमा खास 

कार्तिक पूर्णिमा पर महाबोधि सोसायटी आफ इंडिया बुद्ध अस्थि अवशेष तीन दिनों तक दर्शनार्थ-पूजनार्थ सार्वजनिक करती है। सारनाथ में तिब्बतियों का नया वर्ष लोसर पर्व, अनागारिक धर्मपाल की जयंती और नवंबर के दूसरे सप्ताह में जापानी ओएसिटी पर्व धूमधाम से मनाते हैं। 

बुद्ध से शांति

''बुद्ध का धर्म मुख्य रूप से चित्त आधारित होने से वर्तमान में इसकी प्रासंगिकता और बढ़ जाती है। कारण यह कि चित्त के असंतुलन से ही नाना प्रकार के मानसिक रोग, शारीरिक रोग और मनोविकार बढ़ते जाते हैं। चित्त शमन की वास्तविक विद्या ही सद्धर्म है जो धर्म का सार है।'' - डा. रमेशचंद्र नेगी, प्रधान कार्यकारी संपादक, केंद्रीय उच्च तिब्बती शिक्षण संस्थान, सारनाथ। 

''मन को सुधारने की मूल विद्या ही सद्धर्म कहलाती है जो विश्व कल्याण के लिए अनिवार्य है। इसी सद्धर्म के अंतर्गत बुद्ध कहते हैं कि किसी प्रकार का पाप मत करो और अपने चित्त का संपूर्ण रूप से परिशोधन करो। बुद्ध के उपदेशों का पालन करने से ही देश में शांति स्थापित होगी।'' - भिक्षु धर्मशील, थाई बौद्ध मंदिर, सारनाथ।  


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