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कार्तिक मास बहुत ही खास : उत्सवों के समृद्ध माह का पौराणिक महत्‍व और पुण्‍य के लिए पूजन का विधान

सनातन धर्म में कार्तिक मास स्नान-दान के लिए खास है तो संपूर्ण भारतीय समाज के लिए उत्सवों का सबसे समृद्ध महीना भी।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Fri, 18 Oct 2019 10:42 AM (IST)Updated: Fri, 18 Oct 2019 11:23 AM (IST)
कार्तिक मास बहुत ही खास : उत्सवों के समृद्ध माह का पौराणिक महत्‍व और पुण्‍य के लिए पूजन का विधान
कार्तिक मास बहुत ही खास : उत्सवों के समृद्ध माह का पौराणिक महत्‍व और पुण्‍य के लिए पूजन का विधान

वाराणसी [प्रमोद यादव]। सनातन धर्म में कार्तिक मास स्नान-दान के लिए खास है तो संपूर्ण भारतीय समाज के लिए उत्सवों का सबसे समृद्ध महीना भी। आश्विन मास के अंतिम दिन शरद पूर्णिमा से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक पुण्य कामना की डुबकी और शाम तक चलने वाले अनुष्ठान विधान। पर्व-उत्सवों की माला इस माह में सात दिन नौ त्योहार की उक्ति को सार्थक करती है तो तप्त-दग्ध तन में नई ऊर्जा का संचार करती है, नित नए रंग भरती है। 

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सनातन धर्म में हिंदी के बारह महीनों में मास पर्यंत स्नान-दान के लिए कार्तिक, माघ व वैशाख खास माने गए हैैं। धर्म शास्त्रों ने तीनों मासों में कार्तिक स्नान- दान, यम-नियम का अत्यधिक महत्व बताया है। गंगा का शहर और नगरी जब हर की हो तो हरि को समर्पित मास का रंग चटक क्यों न हो जाए। यह गंगा तट से लेकर गांव-गलियों तक नजर भी आता है। आश्विन मास के अंतिम दिन से कार्तिकी स्नान के विधान किसी का भी ध्यान खींच सकते हैैं। ओस से भीगी भीनी-भीनी भोर श्रद्धा-आस्था से जोड़े डोर बनारसी मन श्रीहरि नाम जप और हर हर महादेव के उद्घोष को एकाकार करते घाटों की ओर बढ़ता नजर आता है। बनारस में गंगा तट पर वैसे तो दशाश्वमेध घाट पर स्नान सर्वाधिक पुण्यदायी माना जाता है लेकिन कार्तिक में पंचनदतीर्थ (पंचगंगा) स्नान का महत्व बढ़ जाता है। मान्यता है कि यहां पांच नदियों यथा गंगा, यमुना, विशाखा, धूतपापा, व किरणा का संगम होता है। ऐसे में यहां स्नान से हर तरह के पापों का शमन होता है। पुराणों में कहा गया है कि स्वयं तीर्थराज प्रयाग भी कार्तिक मास में पंचगंगा पर स्नान करते हैैं। स्नान के बाद वहीं घाट पर स्थापित बिंदु माधव कादर्शन-पूजन और दंड-प्रणाम करते हैैं। 

 

कार्तिक मास के बारे में शास्त्रों में कहा गया है कि

'कार्तिकम् सकलम् मासम् नित्यस्नाई जितेंद्रिय:। जपन् अविश्ह्य गोक्छान्स सर्व पापई प्रमुश्च्यते।।'

 अर्थात् कार्तिक मास में जितेंद्रिय रह कर नित्य स्नान कर एक बार भोजन करने से सभी तरह के पापों का नाश होता है। सूर्य को अघ्र्य देकर स्नान-दान से सभी तरह के पापों का नाश हो अमोघ पुण्य की प्राप्ति होती है। मास पर्यंत नित्य श्रीहरि की आराधना और संध्याकाल मंदिरों, गली- चौराहों, तुलसी का चौरा व पीपल वृक्ष के नीचे दीपदान से श्रीहरि प्रसन्न होकर सभी तरह के पापों का नाश कर विशेष पुण्य फल के साथ ही अंतत: वैकुंठ में स्थान देते हैैं। मदन पारिजात इसकी डोर को खानपान और नियम-संयम तक भी ले जाता है। इसमें कहा गया है कि कार्तिक मास में जितेंद्रिय रहते हुए नित्य स्नान कर हविष्य (गेहूं-जौ, मूंग तथा दूध-दही व घी आदि) का एक बार भोजन करें तो सभी तरह के पापों से मुक्ति के साथ ही जीवन की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

 

शीतानुकूलन का जतन 

हिंदी के मास अनुसार व्रत पर्व विधान  का निर्धारण उनका ऋतुओं से संबंध बताता है। अन्य सभी सनातनी पर्वों की तरह कार्तिक स्नान पर्व भी मौसम के मिजाज से सीधे जुड़ा हुआ है। अभी कुछ दिनों पहले ही ग्रीष्म ऋतु ने विराम लिया है। कानों में आहट है शीत काल के आगमन की। गर्मी के ताप में तपा शरीर इस संधिकाल के परिवर्तनों को झेल पाने को तैयार नहीं। ऐसे में शरीर को स्वाभाविक तौर पर जरूरत है अनुकूलन के एक ऐसे सत्र की जिसके जरिए शरीर को दस्तक दे रही सर्दियों के थपेड़े से जूझने के काबिल बनाया जा सके। ऐसे में आयुर्वेदाचार्य कार्तिकी स्नान को सौ रोगों की एक दवा बताते हैैं। तबीयत से कार्तिक नहाने और आने वाली सर्दियों में सीना ठोंक कर शीत लहर से पंजा लड़ाने की सलाह भी दावे के साथ दे जाते हैैं। वास्तव में आयुर्वेद दिव्य मास कार्तिक के स्नान पर्व को शरीर के शीतानुकूलन के एक पुनश्चर्या अनुष्ठान के रूप में लेता है। दिव्य मास कार्तिक के महात्म्य से जुड़ी पौराणिक कथाओं की बात अपनी जगह, सिहरती भोर के धुंधलके में नदी-सरोवरों के शीतोष्ण जल में डुबकी लगाने की परंपरा दरअसल अनुकूलन का वही अवसर है। वैद्य डा. एसएस पांडेय कहते हैं कि  'पर्व के साथ जुड़े सारे मिथक भी इसके वैज्ञानिक पक्ष की महत्ता को रेखांकित करने के ही उपकरण हैं। पुण्य संचयन की जहां बात है आरोग्य से बढ़ कर और कोई पुण्य भला हो भी क्या सकता है। आयुर्वेद के सिद्धांत वात, कफ, पित्त की अवस्थाओं की ही बात करते हैं। माह भर के अनुष्ठान को कफ जनित रोगों के विरुद्ध प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने वाले एक वार्षिक पुनश्चर्या कार्यक्रम के रूप में ले सकते हैं।' 

सिर्फ स्नान ही नहीं कार्तिक मास की  पूजन शृंखला में प्रमुखता से शामिल आंवला और तुलसी पूजन की परंपरा भी इसके वैज्ञानिक पक्ष को ही पुष्ट करती है। दोनों ही कफ जनित रोगों के शमन में रामबाण जैसा असर रखते हैं। इस मौसम विशेष में आमलक और तुलसी का सेवन भी सर्वविधि लाभकारी माना गया है। आयुर्वेदाचार्य डा. अजय कुमार के अनुसार 'सनातन संस्कृति से जुड़े सभी पर्व मनुष्य की प्रकृति से निकटता के हिमायती हैं। कार्तिक के आयोजन भी इसी संदेश के संवाहक हैं। पर्व-प्रथा से इन्हें जोडऩे का प्रयास वास्तव में इन्हे प्रभावी बनाने का यत्न मात्र है।'

 

उत्सवों का समृद्ध माह 

दिव्य कार्तिक मास पर्वों की लंबी श्रृंखला लेकर आता है। कार्तिक की चतुर्थी तिथि पर करवाचौथ मनाने और चेतगंज की नक्कटैया के रंगों में डूबने-उतराने के बाद अब धनतेरस, हनुमान जयंती, दीपावली, गोवर्धन पूजा, तुलसीघाट की विश्व प्रसिद्ध नागनथैया, डाला छठ, गोपाष्टमी, अक्षय नवमी, हरिप्रबोधिनी एकादशी और देवदीपावली की तैयारियों में बनारसी मन रंगने लगा है। इस लिहाज से कार्तिक का हर दिन कोई न कोई पर्व होता है। पंचगंगा स्थित श्रीमठ की ओर से दिव्य कार्तिक मास महोत्सव का आरंभ हो चुका है। देवताओं व पितरों के पथप्रदर्शन के लिए पंचगंगा समेत अन्य घाटों पर आकाशदीप दैदीप्यमान हो चुके हैैं। 

कार्तिक में पडऩे वाले त्योहारों पर सिलसिलेवार नजर डालें तो कृष्ण पक्ष में चतुर्थी तिथि को अमर सुहाग की कामना का त्योहार करवाचौथ मनाया जाता है। द्वादशी को गोवत्स द्वादशी पर बछड़ों की पूजा का विधान है। त्रयोदशी को शुभ- समृद्धि की कामना के साथ धनतेरस मनाया जाता है जिसमें व्यापारिक प्रतिष्ठानों व घरों में मां लक्ष्मी के साथ गणेश की पूजा की जाती है। इसी दिन आयुर्वेद के जनक धनवंतरी की जयंती भी मनाई जाती है और स्वर्णमयी अन्नपूर्णेश्वरी का पट अन्न-धन का खजाना लुटाने को चार दिनों के लिए खुल जाता है। चतुर्दशी को हनुमान जयंती के साथ ही नरक चतुर्दशी मनाई जाती है। अमावस्या की रात अंधेरे पर उजाले की विजय का पर्व दीपावली धूम-धाम से मनाया जाता है। 

 

शुक्ल पक्ष

कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को बहनें भाइयों की निष्कंटक लंबी उम्र की कामना के साथ गोवर्धन की पूजा करती हैैं। इसी दिन बाबा भोले की नगरी के देवालयों में अन्नकूट का सिलसिला शुरू हो जाता है। द्वितीया को भाइयों को समर्पित पर्व भैयादूज के साथ भगवान चित्रगुप्त पूजे जाते हैैं। षष्ठी को मनोकामनापूर्ति का पर्व डाला छठ में घरों से लेकर सरोवर-नदियों तक प्रकृति आराधना का रंग निखर जाता है। कमर भर पानी में खड़ी महिलाएं-पुरूष अस्त होते सूर्य को अर्घ्‍य देते हैैं। पंचमी को शुरू हुए पर्व के विधान सप्तमी को उदित सूर्य को भी अघ्र्य देने के साथ विराम पाते हैैं। अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी में गायों की पूजा तो नवमी तिथि में अक्षय नवमी पर आंवले के वृक्ष का पूजन और उसकी छांव में पंगतें जम जाती हैैं। शुक्ल पक्ष के 11वें दिन हरिप्रबोधिनी एकादशी पर चार मास की योग निद्रा से जागे श्री हरि का तुलसी से विवाह कराया जाता है। चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी का मान के नाम से जाना जाता है। कार्तिक पूर्णिमा को कार्तिक स्नान का समापन और मास की इस अंतिम तिथि को ही नगर के सबसे बड़े पर्व का रूप ले चुका देवदीपावली उत्सव मनाया जाता है। इसके साथ ही नवरात्र से शुरू हुआ उत्सवों का सिलसिला थमता है और इस दिन ही सिख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव की जयंती भी मनाई जाती है।


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