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एकाकी प्रवास में समझा अप्रवासी मजदूरों की व्यथा-कथा, मीरजापुर में बोले केएन गोविंदाचार्य

राष्ट्रीय स्वाभिमान परिषद के तत्वावधान में एक सितंबर से निकली अध्ययन प्रवास यात्रा शुक्रवार को मीरजापुर के विंध्याचल में केएन गोविंदाचार्य के नेतृत्‍व में पहुंची।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Fri, 18 Sep 2020 08:31 PM (IST)Updated: Sat, 19 Sep 2020 01:04 AM (IST)
एकाकी प्रवास में समझा अप्रवासी मजदूरों की व्यथा-कथा, मीरजापुर में बोले केएन गोविंदाचार्य
एकाकी प्रवास में समझा अप्रवासी मजदूरों की व्यथा-कथा, मीरजापुर में बोले केएन गोविंदाचार्य

मीरजापुर, जेएनएन। 20 वर्ष पहले वैश्वीकरण के प्रभाव पर अध्ययन किया था। बीते नौ सितंबर को 20 साल पूरे हो गए। इन 20 सालों में अवलोकन, विमर्श व क्रियान्वयन का कार्य किया। एक बार फिर स्थितियों को समझने के लिए एकाकी प्रवास शुरू किया है। एक सितंबर से अध्ययन के लिए एकाकी प्रवास चल रहा है। इस दौरान देश के प्राकृतिक संसाधनों पर आधारित तबकों की वर्तमान स्थिति को समझा। इसके साथ ही कोरोना काल में अप्रवासी मजदूरों की व्यथा-कथा को समझने का अवसर मिला, तब जाना कि देश में इतनी बड़ी संख्या असंगठित क्षेत्र में अप्रवासी भी हैं। दो अक्टूबर को गंगा सागर तथा 26 को समापन ग्राउंड जीरो आजमगढ़ के विभूतिपुर में किया जाएगा। उक्त बातें हिंदुवादी हितचिंतक केएन गोविंदाचार्य ने शुक्रवार को अष्टभुजा डाक बंगले पर पत्रकारों से रूबरू होते हुए कही।

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राष्ट्रीय स्वाभिमान परिषद के तत्वावधान में एक सितंबर से निकली अध्ययन प्रवास यात्रा शुक्रवार को मीरजापुर के विंध्याचल में पहुंची। इस दौरान उन्होंने कहा कि वह आज से 20 साल पहले नौ सितंबर 2000 को अध्ययन अवकाश लिया था। तब वह संघ का प्रचारक एवं भारतीय जनता पार्टी का महासचिव थे। उस समय पर देश और दुनिया आर्थिक करारों के दौर से गुजर रही थी। वह चाहते थे कि भारत जैसा देश इस दौर में सजगता एवं सावधानी बरतें क्योंकि हमारे पास अकूत साधन एवं अपार बौद्धिक क्षमता है। कहीं हमारी भूल से यह सब चीजें गिरवी ना रख दी जाए एवं ईस्ट इंडिया कंपनी जैसी हजारों कंपनियां भारत को अपने शिकंजे में जकड़ सकती हैं, यह भय उन्हें था। इसी का एक मंथन चला तब एनडीए की सरकार थी। जब विचार शुरू हुआ तो इसके परिणाम स्वरूप जो स्थितियां बनी तो उन्होंने अध्ययन अवकाश का निर्णय लिया।

वैश्विक अर्थव्यवस्था खड़ा कर सकता है देश

केएन गोविंदाचार्य ने कहा कि देश में एक वैकल्पिक अर्थव्यवस्था खड़ी करने की संभावना है, जो यहां के लोगों तथा देश के साधनों से ही निकलती है तथा स्वावलंबन की रचना करती हो, इसी व्यवस्था को समझने में वह अपना तीन साल लगाए। इसके बाद कुछ छोटे-छोटे प्रयोग किए। वे विशाल आकार के होते चले गए। इन प्रयोगों से जुड़े लोग न तो दंभी हैं न ही प्रचार प्रिय। कहा कि आगामी नौ सितंबर से दो अक्टूबर गांधी जयंती तक कोरोना संबंधित सभी वर्जनाओं एवं विधि निषेधों का पालन करते हुए गंगा किनारे प्रवास करते हुए आत्म चिंतन करके अपने निष्कर्ष को साझा करूंगा। राजनीति में सत्ता या संगठन में उनकी रूचि वर्ष 2000 में ही समाप्त हो गई थी। देश की असली ताकत है यहां की प्रकृति, यहां का पर्यावरण, यहां के लोगों के मूल स्वभाव तथा देश के अपने संसाधन। यही देश की ताकत है। गैर राजनीतिक तरीके से भी समाजसत्ता के सामथ्र्य से अपना देश खड़ा हो सकता है।


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