ददरी मेला में ऑल इंडिया मुशायरा में नामी गिरामी शायरों ने कलाम और शायरी सुना जमकर लूटी वाहवाही
ददरी मेला के भारतेंदु कला मंच पर बुधवार की रात अखिल आल इंडिया मुशायरे का आयोजन किया गया।
बलिया, जेएनएन। ददरी मेला के भारतेंदु कला मंच पर बुधवार की रात अखिल आल इंडिया मुशायरे का आयोजन किया गया। इसमें नामी-गिरामी शायरों ने अपने कलाम व शायरी से श्रोताओं की जमकर वाहवाही लूटी। शायर मीशम गोपालपुरी ने पढ़ा -- यूं रुख से पर्दा हटाने से कुछ नहीं होगा, इशारा करके बुलाने से कुछ नहीं होगा। हमारा इश्क मिजाजी नहीं हकीबी है, तेरे फसाना बनाने से कुछ नहीं होगा। इस शायरी ने मुशायरे की शाम को आशिकाना बना दिया।
इसके पूर्व मुख्य अतिथि जनपद न्यायाधीश गजेंद्र कुमार एवं विशिष्ट अतिथि चन्द्रभानु सिंह ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर मुशायरे का शुभारंभ किया। नपा अध्यक्ष अजय कुमार व अधिशासी अधिकारी दिनेश कुमार विश्वकर्मा ने स्मृति चिह्न भेंट कर अतिथियों को सम्मानित किया। निकहत अमरोही ने राह सुनसान है दिल परेशान है ऐसी तनहाई में किसके घर जाऊगीं.. और ये है हिन्दुस्तान हमारा प्यारा हिन्दुस्तान.. आदि गजलों से शाम का समां बांध दिया। सिराज सुल्तानपुरी ने तुम्हारी बात का कैसे यकीन कर लू मैं तरह-तरह का अभी व्यान बाकी है.. और हमारे दर्द को तो कोई दर्द समझा है चलो सेराज कोई मेहरबान बाकी है.. शायरी सुनाकर श्रोताओं को तालियां बजाने पर विवश कर दिया।
तारिक अनवर ने देख लेना इश्क में एक ऐसा दिन भी आएगा, दिल को हम समझाएंगे और दिल हमे समझाएंगा की शायरी सुनाकर आश्की के अलग अंदाज को प्रदर्शित किया। काविश उसमान ने खूब सूरत हो मेरी जान हो अच्छी हो तुम, ये मत भूलो कि एक फौजी की बीबी हो तुम का कलाम पेश किया। नदीम फारूख ने मकान बेचकर बेटी की शादी मत करना निकाह करके उसी को दे देना की शायरी सुनाकर बेटियों का मां-बाप के प्रति प्रेम को प्रदर्शित किया।
सज्जाद झंझट ने अब आ भी जा नखरे ना दिखा मुझे, दिल है मेरा मोबाइल तुम सीम हो मेरी जान की शायरी सुनाई। गुले शब्बा ने मुझे तनहाई में अश्को से भिगोते क्यो हो बाद मरने के मेरे कब्र पर रोते क्यो हो का कलाम पेश किया। मीशम गोपालपुरी ने आप मुझको सताते बहुत हैं कम हंसाते रूलाते बहुत हैं। आओ उनको संभलना सिखाएं पीके जो लडख़ड़ाते बहुत है। और इतना बेजान हूं ऐहसास के मारो की तरह, फूल चूभते हैं मेरे जिस्म में खारो की तरह गजल सुनाया, जो श्रोताओं को इतना भाया कि दर्शकों की भारी भीड़ एक बार पुन: इस कलाम को सुनने की फरमाइश करने लगी।
समीर अली ने मुसीबत में शरीफो की शराफत कम नहीं होती, करो सोने के सौ टुकडे तो कीमत कम नहीं होती शायरी पेश की। अज्म शाकिरी ने सुबह तक चाहतो के दीये आन्धियों के जलायेगा कौन, दास्तान खत्म होने को है अब मोहब्बत निभाएगा कौन की शायरी के माध्यम से घर के बुजुर्गों की परिवार में जरूरत को जीवंत सुनाया। ताहिर फराज ने दिन वो भी क्या थे जब हम मिलकर देश में रहते थे, अपनी मिट्टी की खुशबू के परिवेश में रहते थे की शायरी से देशप्रेम की भावना को प्रदर्शित किया। रात में बढ़ती सर्दी के साथ शायरों की शायरी और गजलों ने श्रोताओं को देर रात तक पंडाल में जमे रहने पर मजबूर कर दिया। थाना प्रभारी विवेक पांडेय और उनकी टीम सक्रिय रही।