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काशी विश्वनाथ कॉरिडोर: प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के कार्यक्रम में धर्म-अध्यात्म के साथ बनारसी व्यंजन भी लगाएंगे चार चांद

Kashi Vishwanath Corridor प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी सोमवार को काशी विश्वनाथ कारिडोर का शुभारंभ भी करेंगे। इस कार्यक्रम का देशभर में 51 हजार जगहों पर सीधा प्रसारण किया जाएगा। इस कार्यक्रम में आए लोगों को गंगा काशी व‍िश्‍वनाथ धर्म अध्‍यात्‍म के अलावा बनारसी व्‍यंजन भी लुभाएंगे।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Sun, 12 Dec 2021 06:29 PM (IST)Updated: Mon, 13 Dec 2021 08:31 AM (IST)
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर: प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी के कार्यक्रम में धर्म-अध्यात्म के साथ बनारसी व्यंजन भी लगाएंगे चार चांद
Kashi Vishwanath Corridor: वाराणसी के व्‍यंजन दुन‍ियाभर के लोगों को लुभा रहे हैं। - प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

वाराणसी, जेएनएन। वाराणसी के ल‍िए यह पहला मौका होगा जब प्रधानमंत्री के साथ 14 प्रदेशों मे मुख्‍यमंत्री एक साथ मौजूद रहेंगे। अवसर होगा श्री काशी विश्वनाथ कारिडोर के शुभारंभ का। इस अवसर पर देश भर के वीआइपी के अलावा साधु संत और देश-व‍िदेश की मीड‍िया भी मौजूद रहेगी। इस कार्यक्रम का देशभर में 51 हजार जगहों पर सीधा प्रसारण किया जाएगा। इस कार्यक्रम में आए लोगों को गंगा, काशी व‍िश्‍वनाथ, धर्म अध्‍यात्‍म के अलावा बनारसी व्‍यंजन भी लुभाएंगे।

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फूड कोर्ट में द‍िख रही अलग दुन‍िया

श्रीकाशी विश्वनाथ धाम में धर्म और अध्यात्म के संगम में एक गुप्त धारा बनारसी व्यंजन का भी होगा। यहां गंगा दर्शन वीथिका के पास ही फूड कोर्ट तैयार किया गया है। यहां देश दुनिया से आने वाले श्रद्धालु व पर्यटक गंगा का नजारा ले ने के साथ-साथ बनारसी खानपान का भी रसास्वादन पाएंगे। हर क्षेत्र की तरह बनारस के खानपान में भी दिव्यता समाहित है। पूरी दुनिया में अलग-अलग क्षेत्रों की अलग-अलग विशेषताएं होती हैं। मौसम, पर्यावरण और संस्कृति के अलावा यहां का खान-पान भी अलग होता है।

बनारसी व्यंजन से महक रही काशीनगरी

स्वाद के दीवाने हर जगह मिलेंगे मगर बनारस हर मायने में दिव्यता को समाहित किए हुए है। धर्म अध्यात्म से लेकर कला-साहित्य में इसका कोई जोड़ नहीं। तो वहीं खान-पान में भी बनारस आला है। पूड़ी-कचौड़ी, जलेबी का अपना रुतबा है तो दक्षिण भारत के मसाला डोसा, इडली बड़ा, पूर्वोत्तर के मोमो, गुजराती, मारवाड़ी थाली, पंजाबी पराठे संग हरियाणा के छोले-कुलचे बरबस जुबान को चटपटा कर जाते हैं .. केले के पत्तों पर सबसे पहले नमक तथा सलोने शाक परोसे गए। आम, नींबू, अदरक, सूरन, हड़, बेर आदि के अचार और फूंट, लौकी, केले के फूल, करेले व गाजर आदि के शाक परोसने के बाद उड़द के बड़े, मेथी बड़ी, तिल बड़ी, आम बड़ी कोहड़े के पापड़, दही-बड़े, किश्मिशी बड़े परोसे गए। अनरसा, दही पूड़ी, कचौरी, पूड़ी, फेनी, चीवड़े, मालपुए, चीनी भरी लिचुई, लड्डू, तिलवा, मूंग और आटे के लड्डू पेड़े, गेहूं से बनी सात तरह की खीर मीठे चावल आदि सब भोच्य पदार्थों के बीच महीन चावल का भात और उस पर शुद्ध घी से तर अरहर की दाल दी गई। चटपटे काथ ( विभिन्न तरह की चटनी ) और मिर्च आदि परोसे जाने के बाद कहा गया कि जो वस्तुएं अच्छी लगे वह खाइए बाकी छोड़ दीजिए । भोजनोपरांत कस्तूरी व कपूर मिश्रित चंदन काढ़कर एक - एक मुट्टी लवंग दी गई । ... भोजन में विलंब और अच्छा भोजन न बना पाने के लिए क्षमा प्रार्थना दी गई।

सैकड़ों वर्ष पूर्व भी समृद्ध थी काशी की खान-पान की परंपरा

भट्टोजि दीक्षित के शिष्य वरद राजन द्वारा सन 1600 से 1650 के बीच लिखी गई गिरवांण वाङ्गमंजरी नाम की एक पुस्तिका में उल्लेखित यह वृत्तांत बताता है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व भी काशी की खान-पान परंपरा कितनी समृद्ध हुआ करती थी। उल्लेखनीय यह कि इस सर्ग में जिस भोज का वर्णन किया गया है वह किसी रईस सेठ की ओर से नहीं, अपितु एक साधारण विप्र की ओर से आयोजित भोज था। सच कहें तो रसास्वादन के मामले में बनारसियों की रसना को ईष्ट सिद्धि प्राप्त है। टेंट (जेब) थोड़ी ढीली हो, मन:स्थिति गीली-गीली हो तो फक्कड़ मस्त बनारसी चना-चबेना, गंगजल जो पुरवे करतार। काशी कबहूं न छोडि़ए विश्वनाथ दरबार.. के दर्शन से प्रेरित मुट्ठी भर चना फांक कर भी सुदीर्घ डकारें लेता है।

मौसमी व त्योहारी व्यंजन जमे हैं जैसे आंख का अंजन

बनारसी खान पान की समृद्ध सूची में कुछ ऐसे भी व्यंजन शामिल हैं जो आंख की अंजन की तरह रस्मों के रूप में जमे हुए हैं। इनमें मलइयो, पलंग तोड़, सूत फेनी, खोवे वाला परवल व घेवर जैसी मौसमी मिठाइयों के नाम लिए जा सकते हैं। मेवे वाला दूध और मलाईदार ठंडई तो अब बारह मासी है। त्योहारों के साथ भी कुछ ऐसा ही है। मसलन होली पर आप भले ही आइटमों की कतार लगा दें। बनारसी मनई गुझिया और उड़द का दही बड़ा तो जरूर खोजेगा। दीपावली पर सूरन के लड्डूओं के साथ कडू तेल में बनी सूरन की सब्जी का मेले रामनवमी पर चने की दाल भरी पूड़ी व बखीर की सोंधी सुगंध से पूरा चौका गमक जाता है। दशहरे के दिन अगर खोवा भरी मीठी कचौडिय़ां न तली जाएं तो त्योहार का मजा कहां आता है।

देश भर के व्‍यंजनों को भी म‍िला सम्‍मान

बनारसी खान-पान का अपना अनुशासन भी है। अलग-अलग व्यंजनों का अलहदा कॉशन भी है। मसलन खांटी बनारसी सुबह के कलेवे में कचौड़ी तरकारी के साथ जलेबी का मजा लेता है। तिजहरिया की छोटी भूख को छोले समोसे व लवंगलता से दिलासा देता है। उड़द की इमरती भी सांझ की मोहताज है। खस्ता कचौड़ी व चने की घुघुनी सुबह शाम दोनों वक्त की सरताज है। सांझ के प्रथम चरण में रसिया बनारसी ठंडई छानकर गड्ड मजा लेता है। रात में मलाई व रबड़ी के कुल्हड़ के साथ घर के द्वार पर दस्तक देता है। इस समय सारणी से विपरीत यदि आप सुबह छोला समोसा और शाम को कचौड़ी जलेबी ढूढेंगे तो ढूढ़ते रह जाएंगे। हाल में चलन तोडऩे वाले कुछ चलताऊ दुकानों पर दोना थाम भी लिया तो आप मकालू की उपाधि से नवाजे जाएंगे। बही में तो सभी सही तलपट में बस कुछ के नाम यह भी एक स्थापित तथ्य कि लघु भारत कही जाने वाली इस नगरी ने बनारसी व्यंजनों की फेहरिश्त को आढ़ती बहियों की तरह परम स्वतंत्र रखा है। फिर वह चाहे गुजराती फाफड़ा हो, मराठी श्रीखंड हो, बंगाली संदेश हो, राजस्थानी कचौड़ी हो या फिर दक्षिण भारतीय उत्पम, बनारस की स्वाद गलियों ने हर आगत व्यंजन को स्वागत के साथ अपनाया है। यह जरूर है कि रोजनामचे से अलग व्यंजनों के तलपट (ट्रायल बैलेंस) के खाते में बस चैतन्य महाप्रभु के साथ बंगाल से काशी आए रसगुल्ले सिंघ की इमरती समोसे व पंजाबी छोले जैसे सर्वप्रिय आइटमों का ही नाम दर्ज हो पाया है।

प्रशस्त हुआ बनारसियों की रसना के रसास्वादन का दायरा

बदलते समय के साथ बनारसियों की रसना के आस्वादन का दायरा और प्रशस्त हुआ है। मगदल, मटर-चूड़ा, मलाई पूड़ी के साथ वह इडली-डोसा, ढोकला-फरसाण भी खाने लगा है। जलेबी-कचौड़ी, सूजी व गाजर के हलवे का रसिया चटोरा बनारसी मुंह का स्वाद बदलने के लिए कभी-कभी पिच्जा व नूडल्स के पार्सल भी मंगवाने लगा है। वह मन-मंडउल बनने पर चने की दाल के तीखेपन से भरे देशी गोझे का लघु संस्करण मोमो भी चुभलाता है। गुलाब जामुन व लवंगलता तो अपने ही ठहरे यदा-कदा पेस्ट्री पर अहसान जताने बेकरी तक भी चला जाता है, ... किंतु गारंटी ली जा सकती है कि अब भी जब कभी चुनने का मौका आएगा तो स्वाद का बनारसी विविध व्यंजनों की लंबी कतार में वहीं जा खड़ा होगा जहां कड़ाहा हर कचौडिय़ों की घानी उतार रहा हो। जिस जगह हींग की सुगंध से नासिकारंध्रों को हड़काती कोहड़े के तरकारी की बघार का जलवा गजब ढा रहा हो। इसकी सचाई को आप किसी सहभोज में भीड़ के पैमाने की कसौटी पर कस सकते हैं।

श्रमिकों के साथ पूड़ी-सब्जी, गाजर के हलवे का स्वाद चखेंगे पीएम मोदी

कार्यक्रम के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मंदिर प्रागंण के अन्नक्षेत्र (भोगशाला) में धाम का निर्माण करने वाले श्रमिकों के साथ बाबा के अन्नक्षेत्र का प्रसाद ग्रहण करेंगे। श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर प्रबंधन से मिली जानकारी के अनुसार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए साधारण भोजन पूड़ी, आलू-बैगन-साग-टमाटर, मटर-पनीर, गुलाब जामुन, गाजर का हलवा, पापड़, सलाद तैयार कराया जा रहा है। धाम के लोकार्पण के बाद आयोजन के साक्षी बने संत समाज भी बाबा के अन्नक्षेत्र का प्रसाद ग्रहण करेंगे।


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