काशी के ठाठ ये गंगा के घाट : रानीघाट की अलग ही पहचान
काशी में पूरे चौरासी घाटों के इतिहास और महत्व की 'काशी के ठाठ ये गंगा के घाट' श्रृ
काशी में पूरे चौरासी घाटों के इतिहास और महत्व की 'काशी के ठाठ ये गंगा के घाट' श्रृंखला के तहत दैनिक जागरण की वेब सीरीज में हर दिन एक घाट की जानकारी पाठकों को दी जा रही है। इसी क्रम में आज की तीसरी कड़ी में शामिल है 'रानीघाट' और उसकी पहचान की दास्तान- गंगा के किनारे ही सभ्यता और संस्कृतियों ने न सिर्फ जन्म लिया बल्कि फली और फूलीं भी। देश के प्रमुख गंगा किनारे बसे शहरों में काशी या बनारस या वाराणसी को तीनों लोकों ने न्यारी नगरी होने का रुतबा हासिल है। भगवान शिव का घर बाबा विश्वनाथ दरबार से लगी कल-कल बहती गंगा काशी को युगों से समृद्ध करती रही हैं। सीढ़ी, सांड़ और संन्यासी की परंपरा में काशी का गंगा तट अनुपम और अविस्मरणीय सा प्रतीत होता है।
बात वर्ष 1988 की है जब राज्य सरकार के सहयोग से सिंचाई विभाग ने एक और गंगा घाट का पक्का निर्माण कराया। पूर्व में यह घाट कच्चा था और राजघाट का ही एक हिस्सा हुआ करता था। इससे भी पूर्व सन् 1937 में इटौजा, लखनऊ की रानी मुनिया साहिबा के द्वारा घाट के ऊपर जानकी कुंज नाम का एक विशाल भवन बनवाया गया। जिसके पश्चात यह घाट रानी घाट के नाम से प्रचलित हो गया। वर्तमान में घाट पक्का है लेकिन विशेष धार्मिक महत्व न होने के कारण यहां स्नान कार्य सभी अन्य घाटों की अपेक्षाकृत कम ही होता है। लिहाजा घाट पर कपड़ा साफ करने वालों का अधिक जमावड़ा होता है। हालांकि घाट पर गंगा से सबंधित दिवस विशेष व अन्य आयोजनों का क्रम चलता रहता है।