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प्रदूषण के वार से काशी का 'हृदय' हुआ बीमार, भीषण प्रदूषण की चपेट में गोदौलिया क्षेत्र

काशी का हृदय कहा जाने वाला गोदौलिया क्षेत्र प्रदूषण की चपेट में है।

By Edited By: Published: Mon, 13 May 2019 02:00 AM (IST)Updated: Mon, 13 May 2019 08:41 AM (IST)
प्रदूषण के वार से काशी का 'हृदय' हुआ बीमार, भीषण प्रदूषण की चपेट में गोदौलिया क्षेत्र
प्रदूषण के वार से काशी का 'हृदय' हुआ बीमार, भीषण प्रदूषण की चपेट में गोदौलिया क्षेत्र

वाराणसी, जेएनएन। काशी का 'हृदय' कहा जाने वाला गोदौलिया क्षेत्र प्रदूषण की चपेट में है। इसके अलावा कैंट व नदेसर भी सर्वाधिक प्रदूषित इलाके में शुमार है। बनारस में वायु प्रदूषण का ग्राफ बढ़ाने में कचरा व बायोमास जलाने और वाहनों के धुएं की बड़ी भूमिका है। शोध में पता चला है कि शहर के व्यस्ततम व घनी आबादी वाले क्षेत्र कैंट, नदेसर व गोदौलिया पर प्रदूषण की मार कुछ ज्यादा ही है। ऐसे में आखिर हम अपने बच्चों को कौन सा जीवन दे रहे हैं, इस पर भी हमें विचार करना चाहिए। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी अपनी हालिया रिपोर्ट में वायु गुणवत्ता के संदर्भ में दुनिया के शीर्ष पांच सबसे प्रदूषित शहरों में बनारस को रखा है।

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ऐसे में सवाल उठता है कि इस तरह के उच्च वायु प्रदूषक सांद्रता बनारस से क्यों दर्ज किए जाते हैं, जो देश की राजधानी दिल्ली और कानपुर जैसे औद्योगिक शहरों के बराबर है। हालांकि शोध में पाया गया कि शहर में हरित आवरण बढ़ने विशेष रूप से पेड़-पौधों के साथ उचित यातायात और सड़क प्रबंधन से वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है। हाल ही में बीएचयू स्थित वनस्पति विज्ञान विभाग की प्रो. मधुलिका अग्रवाल और उनके शोध छात्र अरिदीप मुखर्जी ने वाराणसी शहर में वायु गुणवत्ता की समस्या का आकलन करने का प्रयास किया है। शोधकर्ताओं ने अध्ययन में पाया कि दूर के स्रोतों विशेष रूप से भारत के उत्तर पश्चिमी व पूर्वी क्षेत्र के स्थानीय वायु प्रदूषण 5 से 35 फीसद योगदान करते हैं। मध्य व पश्चिम यूपी के आसपास के शहरी, औद्योगिक क्षेत्र, एनसीआर, पश्चिमी भारत में थार रेगिस्तान, झारखंड और बिहार के खनन और औद्योगिक इलाके प्रदूषण भार में योगदान देने वाले संभावित स्रोत क्षेत्रों के रूप में पहचाने गए हैं।

शहरी क्षेत्र में प्रदूषण के कारण : प्रो. अग्रवाल ने बताया कि शोध समूह ने कचरे और बायोमास जलाने, शहर की संकरी सड़कों पर धीमी गति के यातायात गतिविधि को वायु प्रदूषकों के स्थानीय स्रोतों के लिए जिम्मेदार पाया। साथ ही भूमिगत पाइप लाइन बिछाने के लिए सड़कों की मरम्मत और खोदाई के साथ नियमित निर्माण गतिविधि को पार्टिकुलेट मैटर उत्सर्जन बढ़ाने के लिए जिम्मेदार पाया गया है।

ये रहे सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्र : शोध टीम ने शहर के विभिन्न हिस्सों में वायु प्रदूषण साद्रता में भारी अंतर दर्ज किया है। इसमें कैंट, नदेसर, सिगरा, गोदौलिया, भेलूपुर, दुर्गाकुंड, लंका, जैतपुरा, मंडुआडीह, महमूरगंज, पाडेयपुर, शिवपुर, राजघाट सबसे अधिक प्रदूषित क्षेत्र पाए गए। ये क्षेत्र राष्ट्रीय परिवेश वायु गुणवत्ता मानक से कई गुना अधिक प्रदूषित थे।

पार्टिकुलेट व नाइट्रोजन डाईआक्साइड की सांद्रता बढ़ी : शोधकर्ताओं ने एक समय श्रृंखला विश्लेषण भी किया। इसमें पता चला कि पिछले कुछ वर्ष में बारीक पार्टिकुलेट (पीएम 2.5) और नाइट्रोजन डाईआक्साइड (एनओ2) की सांद्रता बढ़ी है। हालांकि सल्फर डाईआक्साइड (एसओ2) जैसे गैसीय प्रदूषकों में गिरावट दर्ज किया गया। कोयले और जेनरेटर के उपयोग में कमी से शहर में सल्फर डाईआक्साइड उत्सर्जन में कमी आई है।

शोधपत्र प्रकाशित : इस शोधपत्र का प्रकाशन विभिन्न पत्रिकाओं जैसे- वायुमंडलीय अनुसंधान (2018), पर्यावरण रसायन विज्ञान पत्र (2018) और 'वायु गुणवत्ता, वायुमंडल और स्वास्थ्य' (2018) में हुआ है।

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