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Kaifi Azmi Death Anniversary सदैव तब्दीली के लिए जीये, सच्चाई में रखा यकीन

Kaifi Azmi Death Anniversary कैफी आजमी नामचीन शायर गीतकार कवि ही नहीं बल्कि बेबस व मजलूमों की आवाज थे। साथ ही एक अच्छे पिता भी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sun, 10 May 2020 05:10 AM (IST)Updated: Sun, 10 May 2020 02:25 PM (IST)
Kaifi Azmi Death Anniversary सदैव तब्दीली के लिए जीये, सच्चाई में रखा यकीन
Kaifi Azmi Death Anniversary सदैव तब्दीली के लिए जीये, सच्चाई में रखा यकीन

आजमगढ़ [अनिल मिश्र]। Kaifi Azmi Death Anniversary  (जयंती 14 जनवरी, 1919,पुण्य तिथि दस मई 2002)

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'रहने को सदा दहर में आता नहीं कोई,

 तुम जैसे गए ऐसे भी जाता नहीं कोई'

कैफी आजमी जब दुनिया से रुखसत हुए तो यह पंक्तियां उन्हें जानने वालों की जुबां पर थीं। नामचीन शायर, गीतकार, कवि ही नहीं बल्कि बेबस व मजलूमों की आवाज थे। साथ ही एक अच्छे पिता भी। बेटी व सिने कलाकार शबाना आजमी उन्हें याद करते हुए कहती हैं कि वह हर दर्द में एक संबल की तरह मौजूद रहते हैं। वह सदैव तब्दीली के लिए जीये। कहते थे कि 'आप जो भी काम कर रहे हो, कोई जरूरी नहीं कि आप के जीते जी नजर आए। यकीन रखिए, सच्चाई से की गई कोशिश एक न एक दिन परिवर्तन लाकर रहेगी। भले ही उस वक्त आप नहीं हों।

हर हिंदुस्तानी के दिलों में धड़कने वाले मशहूर शायर एक ऐसे फलसफे के राही थे, जिसमें वतन की मिट्टी की खुशबू के साथ मजलूमों का दर्द झलकता था। अब्बू को याद करते हुए शबाना के अल्फाज रुकते नहीं हैं। मोबाइल फोन पर हुई बातचीत में शबाना वर्तमान परिवेश पर कैफी की कविता 'मकान' की उस पंक्ति को दोहराते हुए कहती हैं कि

'आज की रात बहुत गर्म हवा चलती है, आज की रात न फुटपाथ पर नींद आएगी,

सब उठो, मैं भी उठूं, तुम भी उठो, तुम भी उठो

कोई खिड़की इसी दीवार में खुल जाएगी।

शबाना कहती हैं, खिड़की खुलने का अर्थ व्यापक है। कैफी की जन्म शताब्दी इस वर्ष पूरे विश्व में 100 से अधिक आयोजनों के साथ मनाई गई। यह रिकार्ड है। यही इशारा भी करता है कि वह लोगों के दिलों में बसते हैं। अब्बू ने मुझे सिखाया कि कला को सामाजिक परिवर्तन के साधन के रूप में इस्तेमाल करना चाहिए।  कोविड-19 महामारी के दौरान मेजवां गांव से समाज कल्याण की दिशा में किया जा रहा कार्य ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि है।

11 साल की आयु में मुशायरे में पढ़ी पहली गजल

आजमगढ़ के फूलपर तहसील के  मेजवां गांव निवासी कैफी आजमी आठ वर्ष की उम्र में लिखना शुरू कर दिए  थे। 11 साल की उम्र में एक मुशायरे में पहली गजल 'इतना तो जिंदगी में किसी के खलल पड़े, हंसने से हो सुकून ना रोने से कल पड़े पढ़ी। खूब सराहा गया।


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