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कबीरा फेस्टिवल के तीसरे संस्करण में कबीर के हर भाव को समझेंगे और समझाएंगे

इस उत्सव में आने वाले दर्शकों को संगीत, साहित्य और वार्ता की प्रस्तुतियों का आनंद लेने का और कबीर की जन्मभूमि वाराणसी का समन्वेषण करने का मौका मिलेगा।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Fri, 16 Nov 2018 12:51 PM (IST)Updated: Fri, 16 Nov 2018 12:51 PM (IST)
कबीरा फेस्टिवल के तीसरे संस्करण में कबीर के हर भाव को समझेंगे और समझाएंगे
कबीरा फेस्टिवल के तीसरे संस्करण में कबीर के हर भाव को समझेंगे और समझाएंगे

वाराणसी [सौरभ चक्रवर्ती] । महिंद्रा कबीरा फेस्टिवल का तीसरा संस्करण 16-18 नवंबर के बीच आयोजित किया जा रहा है। यह फेस्टिवल एक बार फिर 15 वीं शताब्दी के रहस्यवादी कवि संत कबीर की मार्मिक कविताओं और सादगी पूर्ण भाव का जश्न मनाएगा। इस उत्सव में आने वाले दर्शकों को संगीत, साहित्य और वार्ता की प्रस्तुतियों का आनंद लेने का और कबीर की जन्मभूमि वाराणसी का समन्वेषण  करने का मौका मिलेगा।

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कबीर दास हिंदी साहित्य के भक्तिकालीन युग में ज्ञानाश्रयी-निर्गुण शाखा की काव्यधारा के प्रवर्तक थे। इनकी रचनाओं ने हिंदी प्रदेश के भक्ति आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया। कबीर दास से समझने व समझाने के लिए महिंद्रा कबीर फेस्टिवल हर भाव में कबीर का आयोजन किया जा रहा है। गुलेरिया घाट पर तीन दिन तक कबीर पर चिंतन-मनन के साथ ही गीत-संगीत से अनुयायी व कलाकारों जुड़ेंगे। इस आयोजन में देश के विभिन्न प्रांतों के अलावा इंग्लैंड, दुबई, फिनलैंड, सिंगापुर व टर्की के लोग शामिल होंगे। कबीर उत्सव का यह तीसरा आयोजन है। पहली बार अस्सी व दूसरी बार दरभंगा घाट पर सफल आयोजन हो चुका है। इस बार 16 से 18 गुलेरिया घाट (भोसले घाट के पास) आयोजन हो रहा है। 

महिंद्रा ग्रुप और टीमवर्क आर्ट्स द्वारा आयोजित महिंद्रा कबीरा फेस्टिवल वाराणसी के प्राचीन घाटों पर पृष्ठभूमि में बहती गंगा के किनारे संगीत प्रेमियों के लिए एक अविस्मर्णीय अनुभव लेकर आएगा। पहले दिन शुक्रवार को उद्घाटन सत्र में गीत-संगीत के साथ कबीर पर चर्चा होगी। 

सूरज की उगती किरणों के साथ गुलेरिया घाट पर और शाम को सितारों की छाओं में शिवाला घाट पर गंगा तट पर सजे मंच से गायक घाट पर बैठे दर्शकों को गीतों से उल्लासित करेंगे। प्रस्तुतियों में बनारस घराना, सूफी संगीत, गजल, दादरा, ठुमरी और खयाल गायकी, पखावज और तबला के अग्रणी कालाकार सम्मलित होंगे।

 रोम-रोम में कबीर के एहसास को जागते हुए डेलिगेट को संगीत के अलावा कबीर से प्रेरित कला और साहित्य सत्रों को सुनने का मौका होगा। निवासीय पथ प्रदर्शकों के साथ ऐतिहासिक शहर वाराणसी का भ्रमण करने का और  स्थानीय व्यंजनों  का आनंद लेने का मौका मिलेगा।

महिंद्रा कबीरा फेस्टिवल में इस साल कई प्रमुख कलाकार कबीर पर अपनी प्रस्तुति शनिवार व रविवार को सुबह सात बजे देंगे। संगीत में हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायिका विद्या राव, हिंदुस्तानी शास्त्रीय बांसुरी वादक हरी प्रसाद पौडयाल, ठुमरी गायिका बर्नाली चट्टोपाध्याय (और उनके समवेत योगी) और सितार वादक पं. रवींद्र गोस्वामी, दोपहर के साहित्य सत्रों में लेखक और पौराणिक विशेषज्ञ देवदत्त पटनायक और प्रसिद्ध भक्ति विद्वान पुरुषोत्तम अग्रवाल कबीर पर अपने विचारों का वर्णन करेंगे। दोनों दिन शाम को संगीत में सूफी गॉस्पेल प्रोजेक्ट की प्रसिद्ध गायिका सोनम कालरा, भारतीय लोक गायिका मालिनी अवस्थी, भारतीय शास्त्रीय गायिका कौशिकी चक्रवर्ती, संगीतकार और रचयिता श्रुति विश्वनाथ, प्रसिद्ध सारंगी वादक और गायक लाखा खान और सूफी लोक गायक मूरालाला मारवाडा प्रस्तुति देंगे।

काशी में परगट भये, रामानंद चेताये : जन्म स्थान के बारे में विद्वानों में मतभेद है परंतु अधिकतर विद्वान इनका जन्म काशी में ही मानते हैं, जिसकी पुष्टि स्वयं कबीर का यह कथन भी करता है। कबीर के गुरु के संबंध में प्रचलित कथन है कि कबीर को उपयुक्त गुरु की तलाश थी। वह वैष्णव संत आचार्य रामानंद को अपना अपना गुरु बनाना चाहते थे लेकिन उन्होंने कबीर को शिष्य बनाने से मना कर दिया लेकिन कबीर ने अपने मन में ठान लिया कि स्वामी रामानंद को ही हर कीमत पर अपना गुरु बनाऊंगा ,इसके लिए कबीर के मन में एक विचार आया कि स्वामी रामानंद जी सुबह चार बजे गंगा स्नान करने जाते हैं उसके पहले ही उनके जाने के मार्ग में सीढिय़ों लेट जाऊंगा और उन्होंने ऐसा ही किया। एक दिन, एक पहर रात रहते ही कबीर पंचगंगा घाट की सीढिय़ों पर गिर पड़े। रामानन्द जी गंगा स्नान करने के लिये सीढिय़ां उतर रहे थे कि तभी उनका पैर कबीर के शरीर पर पड़ गया। उनके मुख से तत्काल राम-राम शब्द निकल पड़ा। उसी राम को कबीर ने दीक्षा-मंत्र मान लिया और रामानन्द जी को अपना गुरु स्वीकार कर लिया। कबीर के ही शब्दों में-काशी में परगट भये, रामानंद चेताये

जीविकोपार्जन के लिए कबीर जुलाहे का काम करते थे। कबीर की दृढ़ मान्यता थी कि कर्मों के अनुसार ही गति मिलती है स्थान विशेष के कारण नहीं। अपनी इस मान्यता को सिद्ध करने के लिए अंत समय में वह मगहर चले गए क्योंकि लोगों में मान्यता थी कि काशी में मरने पर स्वर्ग और मगहर में मरने पर नरक मिलता है। मगहर में उन्होंने अंतिम सांस ली। आज भी वहां स्थित मजार व समाधी स्थित है।


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