Move to Jagran APP

वाराणसी में पामेरियन प्रजाति की जूली दिन भर ऑटो पर बिना किराया घूमती है, वजह आपको भी चौंका देगी

पामेरियन नस्‍ल की यह जूली नाम की कु‍तिया को बनारस के लोगों ने सड़कों पर कई बार देखा होगा। जूली दरअसल प्रेरणा है उन लोगों के लिए जो अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा को जिज्ञासा की ही भांति लेना पसंद करते हैं।

By Abhishek sharmaEdited By: Published: Sat, 09 Jan 2021 10:48 AM (IST)Updated: Sat, 09 Jan 2021 11:03 AM (IST)
वाराणसी में पामेरियन प्रजाति की जूली दिन भर ऑटो पर बिना किराया घूमती है, वजह आपको भी चौंका देगी
जूली नाम की कु‍तिया को बनारस के लोगों ने सड़कों पर कई बार देखा होगा।

वाराणसी [उत्तम राय चौधरी]। पामेरियन नस्‍ल की यह जूली नाम की कु‍तिया को बनारस के लोगों ने सड़कों पर कई बार देखा होगा। जूली दरअसल प्रेरणा है उन लोगों के लिए जो अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा को जिज्ञासा की ही भांति लेना पसंद करते हैं। भारत के सर्वाधिक पर्यटनशील साहित्यकार राहुल सांस्कृत्यायन ने घुमक्कड़ी प्रकृति को संसार का सबसे बड़ा सुख बताया है।

loksabha election banner

उनकी इस बात को शायद चेतगंज निवासी आटो चालक अनिल कुमार पासी की पामेरियन नस्‍ल की फीमेल श्वान जूली ने गांठ बांध लिया है। जूली का मन अपने घर में तनिक भी नहीं लगता है, बोर होने लगती है तो उसे देश दुनिया न सही बनारस के घाट और गलियों को दिखाने के लिए अनिल ने कमर कस ली।

बताते हैं कि उसे आटो की छत पर खड़े होकर शहर में घूमना पसंद है। इसे उसकी अदा कह लें या आदत जो काशीवासियों ही नहीं, आटो में बैठने वाली सवारियों के लिए भी आकर्षक लगती है। लोग उसकी तस्वीर लेते हैं, उसे बिस्कुट खिलाते है और कोई-कोई तो उसे भैरव बाबा मानकर माला भी पहना देता है। बहरहाल जूली का संतुलन भी गजब का है, वह चलती आटो के असंतुलित आधार वाली छत पर भी लगातार संतुलन बनाए हुए घंटों खड़ी रहती है।  

अनिल बताते हैं कि जूली जबसे घर आई थी तबसे वह चंचल थी और घर में वह कैद होते ही बेचैन नजर आने लगती थी। उसे घुमाने ले जाने पर मानो उसे जन्‍नत मिल जाती थी। उसकी खुशियां देखते ही बनती थी। उसे तभी आटो में बैठाकर घुमाने और बाबा विश्‍वनाथ की नगरी में घाट, गली और गांव दिखाने का ख्‍याल आया। जूली को अंदर बैठाने पर यात्रियों का मूड भी उखड़ जाता था। लोग उसके व्‍यवहार के प्रति भी असमंजश की वजह से कभी कभार नहीं बैठते थे। वहीं बाहर देखते रहने की जूली की चाह भी पूरी नहीं हो पाती थी। ऐसे में उसे शुरू में छत पर बिठाकर धीरे आटो चलाया ताे वह पर्याप्‍त बैलेंस बना लेती थी और बनारस के झटकों वाले सड़क पर भी जूली का बैलेंस नहीं बिगड़ा। अब तो लोग जूली को छत पर खड़ा देखकर ऑटो में आकर बैठते हैंं और आटो जूली की वजह से पहचान पा चुका है। 

अमूमन यात्रियों के बीच जूली का आकर्षण इतना है कि लोग उसके साथ सेल्‍फी लेना नहीं भूलते। कभी कभार लोग असमंजस में पड़ जाते हैं कि तेज गति होने पर जूली का बैलेंस ऑटो की छत पर कैसे बनता होगा। लेकिन, आज तक शायद ही कभी जूली वहां से गिरी होगी। वहीं पशु विशेषज्ञ बताते हैं कि इंसानों की ही भांति पशुओं का भी घूमने का मन करता है, उनको घरों में कैद रखने से वह अवसाद का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में जूली की ऑटो की छत पर खुशियां देखकर यात्री भी प्रेरित होते हैं। कई सेल्‍फी लेने वाले यात्री बताते हैं कि जूली की बनारस देखने की चाह ही उसे अनोखा बनाती है वरना अपने मालिक के साथ कोई दिन रात साथ कहां निभा सकता है।

अनिल बनाते हैं कि उनके कारोबार में जूली कोई समस्‍या पैदा नहीं करती, समय समय पर आटो में रखा भोजन उसको कराते हैं। वहीं कई बार यात्री ही जूली को बिस्‍कुट खिलाकर खुश होते हैं तो जूली भी उनके स्‍नेह से भाव विभोर नजर आती है। अनिल के अनुसार गर्मियों में दिक्‍कत होती है जब सूरज का ताप अधिक हो जाता है। ऐसे में जूली के लिए पानी की भी व्‍यवस्‍था रखनी पड़ती है। यात्रियों के साथ ही अनिल के अन्‍य आटो चालक दोस्‍तों को भी अब जूली अच्‍छे से पहचान लेती है और उनके साथ समय बिताना भी उसे खासा पसंद है।        


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.