ज्येष्ठ अमावस्या दो दिन, आज वट सावित्री व्रत, कल सूर्य पुत्र शनिदेव का प्राकट्योत्सव
सौभाग्यवती स्त्रियों का 31 मई से आरंभ व्रत पर्व दो जून को यानी वट सावित्री अमावस्या पर विधि विधान से पूजन अनुष्ठान के साथ संपन्न होगा।
वाराणसी, जेएनएन। सनातन धर्म में ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक के तीन दिन सौभाग्य रक्षार्थ अनुष्ठान को समर्पित हैं। सौभाग्यवती स्त्रियों का 31 मई से आरंभ व्रत पर्व दो जून को यानी वट सावित्री अमावस्या पर विधि विधान से पूजन अनुष्ठान के साथ संपन्न होगा। इस बार ज्येष्ठ अमावस्या तिथि दो दिन होने से दो जून को वट सावित्री अमावस्या और तीन जून को सोमवती अमावस्या मनाई जाएगी। ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार अमावस्या दो जून की शाम 4.06 बजे लग रही है जो तीन जून को दोपहर बाद 3.31 बजे तक रहेगी।
वट वृक्ष का पूजन और करें परिक्रमा
वट सावित्री अमावस्या (दो जून) का पूजन अनुष्ठान वट वृक्ष के समक्ष करने का विधान है। वट वृक्ष के समक्ष बैठ कर बांस के पात्र में सप्तधान्य भर उसे वस्त्रों से ढक देना चाहिए तो दूसरे पात्र में स्वर्ण की सती सावित्री की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। विधिवत पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन कर वट वृक्ष में सूत लपेट कर विषम संख्या में परिक्रमा करनी चाहिए। सावित्री को अघ्र्य देकर सुख-सौभाग्य, पुत्र-पौत्रादि के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। इस व्रत को करने का सभी को अधिकार है।
अमावस्या में सोमवार का संयोग
तीन जून को सोमवार व अमावस्या के संयोग से सोमवती अमावस्या का संयोग बन रहा है। इस दिन स्नान-दान-श्राद्ध की भी अमावस्या होगी। तिथि विशेष पर सुहागिन स्त्रियों को पीपल वृक्ष के नीचे श्रीहरि की प्रतिमा स्थापित कर विधान पूर्वक षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। सौभाग्य की अभिवृद्धि की कामना से पीपल वृक्ष की यथा शक्ति या 108 बार परिक्रमा करनी चाहिए।
शनि जनित कष्टों का निवारण
ज्येष्ठ अमावस्या को सूर्य पुत्र शनिदेव का प्राकट्य दिवस माना जाता है। अत: तीन जून को शनिदेव की जयंती मनाई जाएगी। माना जाता है कि तिथि विशेष पर शनिदेव की आराधना, पूजन-वंदन करने से शनि जनित कष्टों में कमी आती है।
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