काशी के कन्हैया : काशी में निखर उठा मथुरा और वृंदावन, हर हर महादेव संग जय कन्हैयालाल की
काशीवासी समस्त देवों का बाबा की नगरी में दर्शन पाते हैं रामनवमी पर शिव नगरी को अवध तो श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर इसे मथुरा-वृंदावन बनाते हैं।
वाराणसी, जेएनएन। तीन लोक से न्यारी काशी के भोले बाबा अधिपति तो 33 कोटि देवताओं का वास तो चार धाम, सप्तपुरी तक समाहित होने का विश्वास है। काशी कबहूं न छाडि़ए... में आस्था रखने वाले काशीवासी समस्त देवों का बाबा की नगरी में दर्शन पाते हैं। रामनवमी पर शिव नगरी को अवध तो श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर इसे मथुरा-वृंदावन बनाते हैं। काशी में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण मंदिरों की शृंखला और जन्मोत्सव की रंगत पर प्रमोद यादव की रिपोर्ट...
देवाधिदेव महादेव की नगरी काशी मोक्ष मुक्ति के लिए स्मरण की जाती हो लेकिन इसकी संकरी गलियों में टहलान मारते लीलापति की छवि भी आंखों के सामने उभर कर आती है। विरागी बाबा शिव और अंग-अंग राग रंग समेटे नटवर नागर की यह गलबहियां इस पुरनिये शहर की तासीर का असल दर्शन कराती है जिसमें सनातन संप्रदाय के शैव-वैष्णव धाराओं का पवित्र संगम नजर आता है। इस भाव का ही बसर -असर कह सकते हैं कि रामचरितमानस की चौपाइयां रचने काशी आए तुलसीदास भगवान श्रीकृष्ण की लीला सजाने लगते हैं। ब्रज विलास की चौपाइयों पर आधारित नागनथैया लीला आज भी तुलसीघाट पर प्रभु श्रीकृष्ण के जीवन दर्शन से रूबरू कराती है। लगभग 450 साल से हर वर्ष कुछ देर के लिए ही सही गंगा की धारा में यमुना का दर्शन कराती है। काशी में श्याम प्रभु के मंदिरों की विशाल श्रृंखला के पीछे पुरातन आख्यान-व्याख्यान हो सकते हैं लेकिन भादो कृष्ण अष्टमी पर तो शिव जी की समूची नगरी ही मथुरा-वृंदावन हो जाती है।
घर-घर झांकी, मंदिर-मंदिर शृंगार से सड़कें-गलियां श्रीकृष्णमय हो जाती हैं। हरे कृष्ण हरे राम से गूंजती चहुंदिशाएं नटवर नागर का जन्मोत्सव श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाती हैं। भाव गंगा ऐसी जैसे अपने ही घर लाल, बाल-गोपाल ने जन्म लिया और ढोल-मंजीरा की थाप पर सोहर -बधावा गाते और माखन-मिश्री का भोग लगाते निहाल हो जाती हैं। देवालयों में तो एक-दो ही नहीं उत्सवी शृंखला छट्ठी- बरही तक खींची चली जाती है। वास्तव में 16 कलाओं से युक्त भगवान श्रीकृष्ण ही श्रीहरि के दशावतारों में अकेले हैं जिनके जीवन के हर पड़ाव में अलग-अलग रंग दिखाई देते हैं। बचपन लीलाओं से भरा पड़ा तो युवावस्था रासलीलाओं की कहानी कहती है। एक राजा और मित्र के रूप में वे भगवद्भक्त और असहायों के विघ्नहर्ता बनते हैं तो महाभारत युद्ध में कुशल नीतिज्ञ और गीतोपदेश के जरिए कर्तव्यनिष्ठा का पाठ पढ़ाते हैं। काशी में इस ओर से उस छोर तक स्थित उनके देवालयों में श्रद्धालु जन 'सच्चिदानंद रूपाय विश्वोत्पत्यादिहेतवे,तापत्रयविनाशाय श्री कृष्णाय वयं नम:' का उच्चारण करते प्रभु की हर रूप के दर्शन सहज ही पाते हैं।
गोपाल मंदिर चौखंभा : चौखंभा की संकरी गली में स्थित गोपाल मंदिर की भव्यता हर किसी को ठिठक जाने पर विवश कर देती है। गोपाल लाल व मुकुंद राय के दो रूपों में विराजमान प्रभु की मोहिनी मूरत तो स्वामिनी (राधा रानी) का भी दिव्य स्थान है। प्राचीनता का आकलन इससे कर सकते हैं कि काशी वास में गोस्वामी तुलसीदास ने यहां भी प्रवास किया और विनय पत्रिका लिखी तो नंददास ने भ्रमर गीत लिखे। जन्माष्टमी पर बालरूप झांकी की छटा अनुपम होती है जो 24 अगस्त को सजाई जाएगी।
जगन्नाथ मंदिर : असि गंग के तीर मंदिर में जगन्नाथ जी भइया बलभद्र व बहन सुभद्रा संग विराजते हैंं। वर्ष 1790 में पुरी जगन्नाथ मंदिर के मुख्य पुजारी पं. नित्यानंद राजा से हुए मनोमालिन्य के बाद जब काशी आए तो जगन्नाथजी की प्रेरणा से पुरी की ही छवि वाला काष्ठ विग्रह स्थापित किया। कटक रियासत के दीवान व पं. विश्वंभरनाथ और पं. बेनीराम ने भव्य मंदिर निर्माण कराया। यहां हर साल जेठ पूर्णिमा से 15 दिनी आधार अनुष्ठानों के बाद हर वर्ष रथयात्रा उत्सव के विधान पूरे किए जाते हैं।
द्वारिकाधीश मंदिर : शंकुलधारा पोखरा के किनारे द्वारिकाधीश मंदिर स्थित है। प्राचीनता का आकलन इससे कर सकते हैं कि इसका उल्लेख काशी केदार खंड व ब्रह्मïवैवर्त पुराण में भी है। मान्यता है कि भगवान भोलेनाथ के मानसिक आवाहन पर द्वारिकाधीश काशी आए और काशीवासियों के कष्टों का हरण किया। इस उपलक्ष्य में ही हर वर्ष सूर्य के कर्क राशि पर आने के साथ 17 जुलाई को कष्टहरी पर्व मनाया जाता है। मंदिर में द्वारिकाधीश, रामजानकी समेत चारो धाम विराजमान हैं। यह अंतरगृही यात्रा का विश्राम स्थल भी है। रामानंदाचार्य परंपरा के इस मंदिर में रोहिणी अनुसार जन्मोत्सव मनाया जाता है।
देवरहवा बाबा आश्रम : अस्सी पर ही देवरहवा बाबा आश्रम में भी लगभग 300 साल पुराना द्वारिकाधीश मंदिर स्थित है। कहा जाता है काशी प्रवास पर आए दक्षिण भारत के संत स्वामी कृष्णाचारी महाराज को द्वारिकाधीश की प्रतिमा वेणी माधव के पास एक कुएं में होने का स्वप्न दिखा। उन्होंने विग्रह कुएं से निकाल अस्सी पर स्थापित किया। मंदिर से देवरहवा बाबा का जुड़ाव होने से देवरहवा बाबा आश्रम नाम से जाना जाता है।
उडुपी मंदिर : अस्सी से नगवा मार्ग पर चार मंजिला उडुपी श्रीकृष्ण माधव मंदिर स्थित है। प्रथम तल पर बड़े हाल में प्रभु का श्याम रंग विग्रह स्थापित है। इसमें दक्षिण भारतीय संस्कृति की झलक सहज ही मिल जाती है। दक्षिण भारत से आने वाले तीर्थयात्री सौभाग्य कामना इस मंदिर में अवश्य दर्शन पूजन के लिए आते हैं।
सनातन गौड़ीय मठ : सनातन गौड़ीय मठ की देश-विदेश में 35 शाखाएं हैं। इनमें सोनारपुर स्थित मठ की स्थापना 1937 में की गई। राधा-कृष्ण की दिव्य झांकी मनमोहक है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर एक सप्ताह पहले से ही प्रभु की झूलनोत्सव यात्रा शुरू हो जाती है। रोहिणी में प्रभु का जन्मोत्सव के साथ तिथि अनुसार नंदोत्सव व राधाष्टमी तक मनाया जाता है। अक्षय तृतीया से 21 दिनों तक चंदन शृंगार तो अन्नकूट व होली पर चैतन्य महाप्रभु जयंती मनाई जाती है।
इस्कॉन मंदिर : अंतरराष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ (इस्कान) तो काशी में दो दशक पहले आया लेकिन दुर्गाकुंड स्थित उसके परिसर में स्थित श्रीकृष्ण मंदिर सौ साल से अधिक पुराना है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर तीन दिनी भव्य आयोजन किया जाता है जो 23 अगस्त से शुरू हो रहा है। इसमें नृत्य- गीत, प्रवचन अनुष्ठान किए जाते हैं। तीसरे दिन प्रभुपाद अभिर्भाव तिथि पर यशोगान, पुष्पांजलि-महाभिषेक, भोगार्पण-आरती, कथा व महाप्रसाद वितरण किया जाता है।
त्रिदेव मंदिर : दुर्गाकुंड-संकट मोचन मंदिर मार्ग पर त्रिदेव मंदिर स्थित है। राणी सती श्याम ट्रस्ट की ओर से वर्ष 2009 में इसकी स्थापना की गई। इसमें राणी सती दादी व सालासर हनुमान के साथ ही खाटू श्याम विराजमान हैं। वर्षपर्यंत यहां उत्सव अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं।
श्याम मंदिर : लक्सा स्थित श्याम मंदिर में श्याम प्रभु विराजमान हैं। मंदिर की स्थापना 1995 में की गई। श्याम मंडल की ओर से वर्ष पर्यंत अनुष्ठान के साथ ही कृष्ण जन्मोत्सव पर शृंगार-भजन का आयोजन किया जाता है।
मनमोहक झांकियां : श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर सोनारपुरा स्थित गोकुल भवन में प्रभु के जन्मोत्सव की भव्य झांकी सजाई जाती है। दुर्गाकुंड स्थित तुलसी मानस मंदिर में भी प्रभु की लीलाओं को कठपुतलियों के जरिए सहेजा गया है जिनका सावन पर्यंत दर्शन होता है।