यथार्थ को कविता का रूप देने वाले जनकवि धूमिल के खेवली गांव में नौ नवंबर को जुटेंगे साहित्यकार
यथार्थ को कविता का रूप देने वाले जनकवि सुदामा पांडेय धूूमिल की जयंती पर नौ नवंबर को उनके गांव खेवली में साहित्य सेवियों का जमावड़ा होगा।
वाराणसी, जेएनएन। यथार्थ को कविता का रूप देने वाले जनकवि सुदामा पांडेय धूूमिल की जयंती पर नौ नवंबर को उनके गांव खेवली में साहित्य सेवियों का जमावड़ा होगा। इस दौरान धूमिल से जुड़ी स्मृतियों को ताजा करने के साथ जनकवि के साहित्य सृजन पर भी चर्चा की जाएगी। साथ ही इसी गांव के पर्यावरण व जल संरक्षण प्रेमी मनीष पटेल की साइकिल यात्रा का समापन होगा।
सुदामा पांडेय धूमिल का जन्म नौ नवंबर 1936 को खेवली ग्राम (पांडेयपुर) में पंडित शिवनायक पांडेय के घर सामान्य कृषक परिवार में हुआ था। धूमिल 38 वर्ष की अल्पायु में ही 10 फरवरी 1975 में दिवंगत हो गए। उनका संपूर्ण जीवन संघर्ष का पर्याय रहा। कारखाने में लोहा ढोने से लेकर पासिंग अफसर तक, फिर सरकारी नौकरी की दिनचर्या, फर्जी मुकदमों का संत्रास, साहित्यिक दलालों से जूझना, धनाढ्य वर्ग की शोषक वृत्ति उन्हें सदा कचोटती रही। इसके बाद धूमिल ने महसूस किया कि पिरामिडों के शिखरों का संपूर्ण शिलालेख गुलाम मजदूरों के अपने आंसुओं और खून से लिखा गया है। विकट झंझावतों के गर्जन-तर्जन सुनने के बावजूद मजबूत लौह स्तंभ की तरह धूमिल अविचल खड़े रहे।
उनमें इतना आत्मबल था जो किसी भी स्थिति का सामना करने के लिए अदम्य साहस और हिम्मत बंधाता रहा। आंतरिक तनाव की स्थिति में बात-बात में मूंछ पर ताव देकर आस्तीन चढ़ा लेना उनकी खास आदत बन गई थी। ग्रामीण मुहावरों व शब्दों को लेकर उन्होंने अपनी कविता को खड़ा किया, नि:संदेह इससे उनके विद्रोही स्वभाव के व्यक्तित्व का पता चलता है।
पुराना घर खंडहर होकर गिर चुका
धूमिल के गांव खेवली में उनका पुराना घर खंडहर होकर गिर चुका है। यहां उनकी पत्नी मूरत लोगों से सीधा संवाद करती हैं। उनके दो पुत्र रत्नशंकर पांडेय व आनंदशंकर पांडेय भी हैैं। सुदामा पांडेय धूमिल अपने पांच भाइयों में सबसे बड़े थे। खेवली के ग्रामीण गांव की सड़क के निर्माण, खंडहर वाले भू-भाग पर सभागार, धूमिल साहित्य केंद्र व शोध संस्थान की स्थापना की आस लगाए बैठे हैं।