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राष्ट्रीय संग्रहालय सहेजेगा जयशंकर प्रसाद की स्मृतियां

वाराणसी : महाकवि जयशंकर प्रसाद के महाकाव्य कामायनी समेत रचनाओं की पांडुलिपियां और उनकी स्मृ

By JagranEdited By: Published: Fri, 11 Aug 2017 02:18 AM (IST)Updated: Fri, 11 Aug 2017 02:18 AM (IST)
राष्ट्रीय संग्रहालय सहेजेगा जयशंकर प्रसाद की स्मृतियां
राष्ट्रीय संग्रहालय सहेजेगा जयशंकर प्रसाद की स्मृतियां

वाराणसी : महाकवि जयशंकर प्रसाद के महाकाव्य कामायनी समेत रचनाओं की पांडुलिपियां और उनकी स्मृतियों से जुड़े अन्य सामान नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में रखे जाएंगे। कई मुद्दों पर विभेद के बाद भी इस एक मसले पर उनके वंशज सहमत हैं। इस संबंध में बैठक की तैयारी की जा रही है ताकि मनभेद दूर करने के साथ ही इस दिशा में भी कदम बढ़ाए जा सकें। इसे प्रसाद जी से जुड़ी धरोहरों को संजोने की दिशा में बेहतर पहल भी मानी जा रही है।

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महाकवि जयशंकर प्रसाद की रचनाओं की पांडुलिपियों व अन्य स्मृति चिह्नों को लेकर छह पौत्रों के परिवार में लंबे समय से खींचतान है। एक पखवारे पहले वीडीए की ओर से साहित्य पथ की पहल की गई तो कुनबे की रार सामने आई और प्रसाद जी के छोटे पौत्र महाशंकर प्रसाद ने अपने बड़े भाई आनंद शंकर समेत उनके पुत्रों पर पांडुलिपियां व अन्य सामान अन्यत्र ले जाने का आरोप लगाया। इसे पिता रत्न शंकर द्वारा गठित न्यास की डीड का उल्लंघन भी करार दिया था। मामला जब पुलिस में पहुंचा तो जांच में सारा सामान सराय गोवर्धन स्थित आवास में ही आनंद शंकर व उनके पुत्र विजय शंकर के पास सुरक्षित पाया गया। इस संबंध में उन्होंने दादा रत्न शंकर (जयशंकर प्रसाद के पुत्र ) की ओर से खुद को अधिकृत किए जाने का कागज भी दिखाया। विवाद की स्थिति में संपूर्ण धरोहर प्रदर्शनार्थ नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय को देने का प्रस्ताव भी रख दिया। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि प्रसाद जी से जुड़े स्मृति चिह्न राष्ट्र की संपत्ति है। उन पर उनका स्वामित्व नहीं लेकिन सुरक्षित-संरक्षित रखने का दायित्व जरूर है। वहीं महाशंकर प्रसाद ने कोर्ट में वाद जरूर दाखिल कर रखा है लेकिन इससे इत्तेफाक भी जताया है। इसके अलावा एक अन्य भाई अरूण शंकर की ओर से दिखाए जा रहे कागज में भी धरोहरों को भारत कला भवन, नागरी प्रचारिणी सभा या राष्ट्रीय संग्रहालय में रखने का विकल्प है। मालूम हो कि प्रसाद जी से जुड़े कई सामान नेशनल म्यूजियम में संरक्षित हैं।


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