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इराक युद्ध अमेरिका की सोची समझी साजिश, ब्रिटिश इंटेलीजेंस एजेंसी की पूर्व अधिकारी ने किया दावा

कैथरीन ने बताया कि वर्ष 2003 में इराक को लेकर भी कुछ ऐसी ही स्थिति बनी थी जिसमें अमेरिकी हाथ होने का मैंने खुलासा किया था।

By Abhishek SharmaEdited By: Published: Sun, 16 Feb 2020 07:28 PM (IST)Updated: Mon, 17 Feb 2020 09:38 AM (IST)
इराक युद्ध अमेरिका की सोची समझी साजिश, ब्रिटिश इंटेलीजेंस एजेंसी की पूर्व अधिकारी ने किया दावा
इराक युद्ध अमेरिका की सोची समझी साजिश, ब्रिटिश इंटेलीजेंस एजेंसी की पूर्व अधिकारी ने किया दावा

वाराणसी [मुहम्मद रईस]। ईरान और अमेरिका के बीच तनाव ने दुनिया को एक बार फिर विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ा कर दिया है। मगर इसमें ईरान के नागरिक ही अपना भविष्य निर्धारित करेंगे, ट्रंप नहीं। हम सभी वैश्विक रूप से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसलिए दुनिया के ताकतवर राष्ट्रों को मामले के शांतिपूर्वक हल की दिशा में पहल करनी होगी। यह बातें ब्रिटिश इंटेलीजेंस एजेंसी जीसीएचक्यू (गवर्नमेंट कम्यूनिकेशन हेडक्वार्टर्स) की पूर्व अधिकारी एवं व्हिसिलब्लोअर कैथरीन गन ने दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में कही। कैथरीन आइआइटी बीएचयू में आयोजित टेक्‍नेक्‍स 2020 में शामिल होने के लिए इन दिनों वाराणसी में हैं।

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वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी आगामी 24 फरवरी को भारत दौरे पर आ रहे हैं। कैथरीन ने बताया कि वर्ष 2003 में इराक को लेकर भी कुछ ऐसी ही स्थिति बनी थी, जिसमें अमेरिकी हाथ होने का मैंने खुलासा किया था। 31 जनवरी 2003 को जीसीएचक्यू में काम करने के दौरान अमेरिकी सिक्योरिटी एजेंसी की ओर से मुझे एक मेल गलती से प्राप्त हुआ। इसमें संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के छह 'स्विंग राष्ट्रों' (अंगोला, बुल्गारिया, कैमरून, चिली, गिनी व पाकिस्तान) के बारे में गुप्त सूचनाएं उपलब्ध कराने का अनुरोध था। यह छह राष्ट्र निर्धारित कर सकते थे कि संयुक्त राष्ट्र इराक में हमले की मंजूरी दे या नहीं। सूचनाओं के माध्यम से इन देशों को संयुक्त राष्ट्र में अपने पक्ष में वोट के लिए ब्लैकमेल किया जा सकता था। अमेरिकी साजिश की इस मेल ने मुझे विचलित कर दिया। इसका प्रिंटआउट लेकर मैं घर चली गई और बाद में उसे अपने एक मित्र को दे दिया। मैं सब कुछ भूल चुकी थी कि तभी आगामी दो मार्च को यह खबर स्‍थानीय अखबार के पहले पन्ने पर छप गई। इसके बाद दुनिया को यह बताने की कोशिश हुई कि हम युद्ध करने जा रहे हैं, लेकिन यह नहीं बताया गया कि इराक पर हमला आखिरकार क्यों किया जाए। 

मेल लीक होने के बाद पांच मार्च को मैंने अपने लाइन मैनेजर के सामने ई-मेल लीक करने की बात स्वीकारी। मुझे इसके बाद गिरफ्तार कर एक दिन के लिए जेल भी भेजा गया। इसके बाद नवंबर 2003 में मुझे अधिकारिक जानकारी लीक करने का सरकारी की ओर से दोषी ठहराया गया। इस पर मेरी लीगल टीम ने उस दौरान ब्रिटिश अटार्नी जनरल और तत्कालीन पीएम टोनी ब्लेयर के बीच बातचीत का ब्योरा मांगा। यह जानकारी मांगने के बाद आश्चर्यजनक रूप से मुझ पर लगाए गए आरोप वापस ले लिए गए और मुझे जल्‍द ही छोड़ दिया गया। अब एक बार फ‍िर खाड़ी के देशाें में अमेरिका हमलावर हो रहा है ऐसे में दोबारा किसी साजिश की आशंका से इन्‍कार नहीं किया जा सकता। 


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