सब्जी की खेती से किसानों ने गांव में ही खड़ा कर दिया 20 करोड़ रुपये का सब्जी कारोबार
रमना गांव के किसान वाकई में सभी के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। इसको लेकर सर्वे किया गया जिसमें पता चला है कि यहां के किसान सब्जियों से हर साल 20 करोड़ रुपये से अधिक मुनाफा कमा रहे हैं
मुकेश चंद्र श्रीवास्तव, वाराणसी। शहर से सटे गंगा किनारे रमना गांव के किसान रामधारी सिंह खेती के बल पर ही मालामाल हैं। वह न केवल अपने परिवार का खर्चा चला रहे हैं बल्कि सब्जी की खेती से वह सलाना लाखों रुपये की बचत भी कर लेते हैं। वह बताते हैं कि अगर सेम की खेती ही अच्छी निकल गई तो समझो शादी समारोह का खर्च भी निकल आया। इस गांव में छोटे-बड़े सभी किसान पूरी शान से अपना घर चला रहे हैं। जिसके पास पांच बिस्वा भी खेत है, वह भी सब्जी की खेती कर आराम से अपना घर चला लेता है। इस गांव में मात्र सब्जी की खेती से ही करीब 20 करोड़ की कमाई हो रही है।
पांच वर्षों में सरकार की विभिन्न योजनाओं से गांव की खेती ने और गति पकड़ी है। रमना को बनपुरवां भी कहा जाता है। यहां की सब्जी शहर के साथ ही कई इलाकों व मंडियों में भेजी जाती है। गांव के ओम प्रकाश सिंह बताते हैं कि शहर के करीब आधे हिस्से तक इस गांव की सब्जियां पहुंचती हैं। यही नहीं, कोलकाता तक यहां की सब्जी भेजी जाती है। इस गांव की आबादी करीब 20 हजार है। यहां हर परिवार की मुख्य कमाई का जरिया सब्जी की खेती है। छोटे किसानों का भी मुनाफा करीब दो लाख रुपये सलाना हो जाता है। गांव में खाद एवं अन्य दवाओं के विके्रता विजय कुमार सिंह का कहना है कि सेम की फली पर सबसे ज्यादा कीट व फंगस हमला करते हैं। यहां पर अमरूद व नीबू की भी बहुत अधिक पैदावार होती है। यहां के किसानों के अनुसार खेती में मेहनत और लागत तो लगती है, लेकिन आमदनी भी खूब है। सब्जी की खेती से ही घर के खर्च के साथ ही बच्चों की पढ़ाई और शादी-विवाह आसानी से निपट जाता है।
गांव में बना वर्मी कंपोस्ट प्लांट
गांव में नमामि गंगे प्रोजेक्ट की मदद से करीब डेढ़ सौ वर्मी कंपोस्ट प्लांट बनाए गए हैं। इससे किसान केंचुआ खाद या वर्मी कम्पोस्ट बना रहे हैं। केंचुओं के उपयोग से व्यापारिक स्तर पर खेत पर ही कम्पोस्ट बनाया जाना संभव है। इस विधि द्वारा कम्पोस्ट मात्र 45 से 75 दिनों में तैयार हो जाता है। किसान प्रतिदिन के कूड़ा-करकट को एक अच्छी खाद वर्मी कम्पोस्ट में बदल रहे हैं। इस खाद में नाइट्रोजन (1.2 से 1.4 प्रतिशत), फास्फोरस (0.4 से 0.6 प्रतिशत) व पोटाश (1.5 से 1.8 प्रतिशत) के अलावा सूक्ष्म पोषक तत्व भी उपलब्ध होते हैं।
रमना गांव के किसान वाकई में सभी के लिए प्रेरणा बने हुए हैं। इसको लेकर सर्वे किया गया, जिसमें पता चला है कि यहां के किसान सेम, बोड़ा, बैगन, भिंडी, लौकी, तोरी आदि सब्जियों से हर साल 20 करोड़ रुपये से अधिक मुनाफा कमा रहे हैं।
-प्रो. रमेश चंद्र, निदेशक कृषि विज्ञान
संस्थान, बीएचयू
हम लोगों की आजीविका का मुख्य साधन खेती है। मेहनत तो काफी होती है लेकिन कम समय मे अच्छा लाभ मिल जाता है। गांव की मिट्टी भी खेती के लिए उपजाऊ है।
-बबुआ राम पटेल, किसान
यहां सबसे ज्यादा करैला, तोरी, सेम, बोड़ा, खीरा और बैगन की खेती होती है। इसमें भले ही मेहनत अधिक होती है, लेकिन लाभ भी अच्छा हो जाता है।
-चंद्रभान पटेल, किसान
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