काशी के ठाठ ये गंगा के घाट : मुक्ति और मोक्ष का द्वार है मणिकर्णिका घाट
वाराणसी में मणिकर्णिका घाट काी मान्यता मोक्ष को लेकर काफी अधिक है।
वाराणसी : गंगा तो वैसे ही मुक्ति और मोक्ष दायिनी हैं मगर इसके कई घाटों की मान्यता कुछ ऐसी है जहां अंतिम समय में पहुंचना मोक्ष की प्राप्ति का सगुन होना है। काशी में गंगा के चौरासी प्रमुख घाटों में मणिकर्णिका घाट की कुछ ऐसी ही मान्यता है। दैनिक जागरण अपने पाठकों के लिए आज मणिकर्णिका घाट की मान्यता और महात्म्य की जानकारी लेकर आया है।
वैसे तो पुराणों में मान्यता है कि काशी अनश्वर है और यह शिव के त्रिशूल पर टिकी हुई है। मगर यह तथ्य साक्षी बनता है मणिकर्णिका घाट पर जिसे स्थानीय जानकार मानते हैं कि वर्ष 1730 में स्थाई तौर पर पक्के घाट के रूप में महाराष्ट्र के मराठा पेशवा बाजीराव के निर्देश पर उनके करीबी रहे सदाशिव नाईक ने निर्माण कराया। तबसे लेकर आज तक घाट का पक्का अस्तित्व बना हुआ है मगर आजादी के बाद भारत सरकार की ओर से सिंचाई विभाग और स्थानीय प्रशासन ने समय समय पर घाट का जीर्णोद्धार कराया और नागरिक सुविधाएं उपलब्ध कराई। घाट पर ही मणिकर्णिका कुण्ड होने की वजह से ही कालांतर में इस घाट का नाम मणिकर्णिका घाट ही पड़ गया। काशीखण्ड की मान्यता के मुताबिक चक्त्रपुष्करण कुण्ड इस घाट का प्राचीन नाम था। जिसे विष्णु भगवान ने शिव शंकर को प्रसन्न करने के लिए तपस्या करते समय अपने चक्र से निर्मित किया था। अन्य मान्यता के अनुसार भगवार शिव अपनी पत्नी पार्वती संग चक्रपुष्करणी कुंड देखने आए और वहीं पार्वती के कान की मणि कुण्ड में गिर जाने से कालांतर में इसे मणिकर्णिका घाट के तौर पर पहचान मिली। मत्यस्यपुराण में घाट की प्रमुख मान्यता है साथ ही प्राण त्यागने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। अन्य तम के मुताबिक भगवान शिव यहां मृतक के कान में तारक मंत्र स्वयं फूंकते हैं ताकि वह जन्म मरण के फेर से मुक्त हो मोक्ष प्राप्त कर ले। घाट के जानकार बताते हैं कि इसके सम्मुख मणिकर्णिका, इन्द्रेश्वर, अविमुक्तेश्वर, चक्त्रपुष्करणी, उमा, तारक, स्कन्ध एवं विष्णु आदि तीर्थो की मान्यता है। ख्यात पंचक्रोशी यात्रा यहीं से स्नान के साथ आरम्भ करने के बाद यहीं पर समाप्त करना पुण्य फलदायी मानी जाती है। घाट पर तारकेश्वर, रानी भवानी, मणिकर्णिकेश्वर, रत्नेश्वर, महिषमर्दिनी, मनोकामेश्वर, गणेश मणिकर्णिका विनायक आदि चर्चित मंदिर में श्रद्धालुओं का अक्सर जमावड़ा रहता है। एक प्रमुख मत को स्थानीय लोग बताते हैं कि स्थानीय शवदाह घाट पर मां के शव को जलाने को लेकर विवाद होने की वजह से धार्मिक आस्थावान कश्मीरी मल ने श्मशान के लिए भूमि खरीद कर मुक्ति के लिए शवदाह की प्रक्रिया शुरू कराई। इसके बाद उन्होंने यहां पर मोक्ष घाट की स्थापना की और इसे कालांतर में मणिकर्णिका घाट के नाम से जाना जाने लगा। हालांकि शवदाह के अतिरिक्त भी गंगा और इसके अतिरिक्त अन्य प्रमुख आयोजन किया जाता है।