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वाराणसी में चार साल में 66 फीसद बढ़ा मिर्च की खेती का दायरा, खाड़ी देश के लोग खूब कर रहे पसंद

कई देशों की उड़ान भर रही बनारस की तीखी मिर्च किसानों के जीवन में मिठास घोल रही है। मिर्च की खेती कर रहे किसानों की आय तो बढ़ ही रही है जनपद को भी विशेष पहचान मिलने लगी है। चार वर्षों में मिर्च की खेती 66 फीसद तक बढ़ी है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Mon, 25 Oct 2021 08:40 AM (IST)Updated: Mon, 25 Oct 2021 08:40 AM (IST)
वाराणसी में चार साल में 66 फीसद बढ़ा मिर्च की खेती का दायरा, खाड़ी देश के लोग खूब कर रहे पसंद
कई देशों की उड़ान भर रही बनारस की तीखी मिर्च किसानों के जीवन में मिठास घोल रही है। मि

वाराणसी, मिलन गुप्ता। कई देशों की उड़ान भर रही बनारस की तीखी मिर्च किसानों के जीवन में मिठास घोल रही है। मिर्च की खेती कर रहे किसानों की आय तो बढ़ ही रही है, जनपद को भी विशेष पहचान मिलने लगी है। विगत चार वर्षों में बनारस में मिर्च की खेती 66 फीसद तक बढ़ी है। वर्ष 2020-21 में आराजीलाइन, सेवापुरी, बड़ागांव, चिरईगांव व राजातालाब विकास खंड में करीब 300 हेक्टेयर में इसकी खेती हुई और 900 टन से ज्यादा उत्पादन हुआ है। 25 टन हरी मिर्च का निर्यात भी किया गया। प्रति किलो 120 रुपये का भाव मिलने से किसान भी गदगद हैैं, क्योंकि स्थानीय भाव 40 रुपये प्रति किलो से ज्यादा नहीं मिलता। यही कारण है कि वर्ष 2021-22 में खेती का दायरा 350-400 हेक्टेयर और उत्पादन 1100 टन तक बढ़ जाने की उम्मीद है।

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बनारसी मिर्च में अधिक कैप्सीसिन

बनारस में पैदा की जा रही मिर्च में कैप्सीसिन की मात्रा अधिक होने से यह ज्यादा तीखी होती है। वहीं, बड़े उत्पादक राज्यों आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक की मिर्च में ओलियोरिसन तत्व अधिक पाया जाता है। इससे मिर्च का रंग तो चटख लाल होता है, लेकिन कम तीखी होती है। काशी की मिर्च का छिलका मोटा और लंबाई कम (छह से सात सेमी) होती है। इस कारण पैकिंग के दौरान यह टूटती नहीं। साथ ही खाड़ी देश के लोगों को तीखा ज्यादा पसंद है तो उन्हें यहां की मिर्च खूब भा रही है।

गुर्चा रोग का प्रभाव न के बराबर

भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान (आइसीएआर) के कृषि विज्ञानी इंदीवर प्रसाद बताते हैं कि यहां गुर्चा रोग का प्रभाव भी न के बराबर है। वायरस जनित इस रोग में पत्तियां सिकुड़ जाती हैं और पैदावार बुरी तरह प्रभावित होती है। निर्यात के मानदंडों को पूरा करने को कीटानाशक का प्रयोग भी कम होता है।

हाईब्रिड न होना है खासियत 

प्रसाद ने बताया कि मिर्च की मुक्त परागित किस्म (काशी अनमोल, काशी गौरव, काशी सिंदूरी, काशी आभा) तथा संकर किस्म (काशी रत्ना, काशी तेज, काशी सुर्ख) आइसीएआर ने विकसित की हैैं। काशी आभा (बुलेट मिर्च) तो सिर्फ निर्यात के उद्देश्य से विकसित की गई है। कई रोगों से लडऩे की क्षमता होने के साथ यह निर्यात, प्रसंस्करण व भंडारण के लिहाज से काफी बेहतर है। हाईब्रिड न होना भी इसे विशेष बनाता है।

75 नए फूड प्रोसेसिंग यूनिट

जिला उद्यान अधिकारी संदीप कुमार गुप्त ने बताया कि मिर्च के निर्यात को बढ़ावा देने के साथ वाराणसी में 75 नई फूड प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित की जाएंगी। 220 फूड प्रोसेसिंग यूनिटों का कायाकल्प करने की योजना भी है। काशी की मिर्च को जीआइ टैग मिल चुका है। अब चिली फ्लैक्स, चिली सास और चिली पाउडर बनने से शहर को अलग पहचान मिलेगी।

कोरोना काल में भी रहा जलवा 

कृषि विज्ञानी बताते हैं कि गत वर्ष कोविड काल में हर चीज का निर्यात बुरी तरह प्रभावित हुआ, लेकिन मिर्च का जलवा कायम रहा। इस दौरान बासमती चावल के बाद दूसरा सबसे ज्यादा निर्यात किए जाने वाला उत्पाद मिर्च ही रहा।

आंकड़ों पर एक नजर

वर्ष खेती का क्षेत्रफल (हेक्टेयर में) मिर्च का उत्पादन (टन में) निर्यात (टन में)

2017-18 180 540 0

2018-19 220 650 5

2019-20 270 780 15

2020-21 300 900 25


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