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बलिया में ददरी मेला के नंदी ग्राम में इस बार गर्दभ की बिक्री ज्‍यादा, बैल और घोड़ा की मांग कम

बलिया जिले के ददरी मेला के नंदी ग्राम में इस बार गैर प्रांत के पशुओं के कम आने से खरीद-बिक्री पर असर पड़ा है। कार्तिक पूर्णिमा से शुरू हुए गर्दभ मेले से 4.51 लाख रुपये का आय हुआ है।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Published: Sat, 20 Nov 2021 01:30 PM (IST)Updated: Sat, 20 Nov 2021 01:30 PM (IST)
बलिया में ददरी मेला के नंदी ग्राम में इस बार गर्दभ की बिक्री ज्‍यादा, बैल और घोड़ा की मांग कम
गर्दभ मेले से 4.51 लाख रुपये का आय हुआ है।

जागरण संवाददाता, बलिया। ददरी मेला के नंदी ग्राम में इस बार गैर प्रांत के पशुओं के कम आने से खरीद-बिक्री पर असर पड़ा है। दीपावली की सुबह से शुरू हुए मेले में शनिवार को 12.60 लाख रुपये के नगर पालिका परिषद से कम आय हुई है। कार्तिक पूर्णिमा से शुरू हुए गर्दभ मेले से 4.51 लाख रुपये का आय हुआ है। मेला तीन दिनों तक ही चलता है, वहीं बैल मेला की बुकिंग 4.83 और रजिस्ट्रेशन 2.53 लाख रुपये का हुआ है। घोड़ा मेला से 2.98 लाख की बुकिंग और 1.56 लाख रुपये का रजिस्ट्रेशन हुआ है। लकड़ी मेले की अभी तक तीन लाख रुपये की बुकिंग हुई है। नंदी ग्राम में व्यापारियों के कम उतरने से खरीद कम हुई है। व्यापारी इसके पीछे कारण शासन की सख्ती मान रहे हैं। इसके चलते गैर प्रांत के व्यापारी काफी कम संख्या में मेले में उतरे। कारोबार काफी हद तक प्रभावित है। 2019 में इस मेेले में अब तक 22 लाख रुपये तक की आय हुई थी। ईओ दिनेश कुमार विश्वकर्मा ने बताया कि मेले में व्यापारियों संग पशुओं की आवक कम हुई । इसके चलते आय प्रभावित हुआ है।

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बलिया के वैभव में चार चांद लगाता है ददरी मेला

ऐतिहासिक ददरी मेला बलिया के वैभव में चार चांद लगाता है। मेला हर साल दशहरे के बाद लगता है, जो कई तरह के धार्मिक इतिहास को समेटे हुए है। यह गंगा की जलधारा को अविरल बनाए रखने के ऋषि-मुनियों के प्रयास का जीवंत प्रमाण है। हजारों साल पुरानी परंपरा आज भी बरकरार है। यह मेला एक माह तक गुलजार रहता है। यहां दूर-दराज से लोग आते हैं। स्थानीय संग बाहर के व्यापारियों को इससे बड़ी उम्मीद रहती है।

पौराणिक महत्व : गंगा के प्रवाह को बनाए रखने के लिए महर्षि भृगु ने सरयू की जलधारा का अयोध्या से अपने शिष्य दर्दर मुनि के द्वारा बलिया में संगम कराया। मान्यता है कि भृगु क्षेत्र में गंगा-तमसा के संगम पर स्नान करने पर वही पुण्य प्राप्त होता है जो पुष्कर और नैमिषारण्य तीर्थ में वास करने, साठ हजार वर्षों तक काशी में तपस्या करने अथवा राष्ट्र धर्म के लिए रणभूमि में वीरगति प्राप्त करने से मिलता है। महर्षि भृगु आश्रम में होती है भारी भीड़ :यह भी कहा जाता है कि जीवनदायिनी गंगा के संरक्षण और याज्ञिक परंपरा से शुरू हुए ददरी मेले को महर्षि भृगु ने ही प्रारंभ किया था। धार्मिक ग्रंथों में वर्णित महर्षि भृगु का आश्रम भी नगर में आस्था का केंद्र है। हर दिन यहां सैकड़ों लोग दर्शन-पूजन के लिए पहुंचते हैं। मेले के दौरान यहां भारी भीड़ होती है। जिले में और भी कई स्थान हैं जहां जाने के पर हर किसी का मन रोमांचित हो उठता है। बाबा बालेश्वरनाथ मंदिर में टेकते हैं मत्था :नगर में स्थित बाबा बालेश्वरनाथ मंदिर की भी अलग ऐतिहासिकता है। मेले के दौरान लोग यहां भी पहुंचते हैं। शहीद पार्क चौक जहां जिले के अमर शहीदों को लोग याद करने पहुंचते हैं।


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