कारगिल शहीद रमेश की बहनों के घर इफ्तेखार की खिचड़ी, पिछले 12 वर्ष से रस्म अदायगी
शहीद रमेश यादव के बहनों के घर इफ्तेखार आजमी की खिचड़ी। यह खिचड़ी खास है जिसमें समाज के लिए एक बड़ा संदेश है।
आजमगढ़ [नवीन राय]। शहीद रमेश यादव के बहनों के घर इफ्तेखार आजमी की खिचड़ी। यह खिचड़ी खास है, जिसमें समाज के लिए एक बड़ा संदेश है। इफ्तेखार का जीते जी रमेश से कोई नाता नहीं था लेकिन शहीद होने के बाद उनके घर वालों को एक बेटा, एक भाई मिल गया है जो वक्त, जरूरत और पर्व पर साथ खड़ा मिलता है।
1999 में कारगिल युद्ध में रमेश यादव शहीद हो गए। सगड़ी के नत्थूपर गांव में सियापा छा गया। गांव में चूल्हे नहीं जले। उधर, इकलौते पुत्र खोने के गम में पिता सीताराम यादव के सारे सपने बिखर गए।
रमेश की दोनों बड़ी बहनें चंद्रकला व शशिकला के आंसू रूकने के नाम नहीं ले रहे थे। समय बीता पर बहनों के लिए हर मौके पर भाई की याद सताने लगी। जब इस बात की जानकारी किसी माध्यम से नवोदय विद्यालय में चतुर्थ श्रेणी पर तैनात कर्मचारी व अजमतगढ़ निवासी इफ्तेखार आजमी को मिली तो वह आगे आए। उन्होंने ठान ली कि शहीद की बहन का सगा भाई रमेश तो नहीं बन सकता पर भाई की जिम्मेदारी हर स्तर पर निभाने की कोशिश करूंगा। 12 वर्ष पूर्व का वादा आज भी बरकरार रखे हुए हैं। शहीद के पिता भी अब इस दुनिया में नहीं रहे पर इन दोनों बहनों को अपनी बहन मानकर वह प्रतिवर्ष खिचड़ी लेकर जाते हैं। हिंदू रीति-रिवाज मुताबिक वह कपड़ा के साथ ही लाई, चूड़ा आदि लेकर दोनों लड़कियों के ससुराल जाते हैं। चंद्रकला की शादी मऊ जिले के जमीन नसोपुर व शशिकला की शादी आजमगढ के भूर्रा गांव में हुई हैं। ससुराल में नहीं होने पर इफ्तेखार घर पर खिचड़ी लेकर आते हैं। बहनों ने भी कभी अपने भाई से इतर इफ्तेखार को नहीं समझा। मजहब के बंधन तोड़ इफ्तेखार की इस नेकी को आज समाज में नजीर के रूप में पेश ही नहीं किया जा रहा है बल्कि हर तबके में सम्मान मिल रहा है।