कलाकारों को शहर में नहीं मिली जगह, तो काशी के घाट को बना दिया थिएटर
महामारी के कारण शहर में नाटक व अभिनय को जगह नहीं मिली तो काशी के घाटों को ही थिएटर बना लिया। काशी के 15-20 युवा कलाकार गंगा किनारे नाटक का मंचन कर स्वयं को ज्यादा ही निखरता हुआ पा रहे हैं।
वाराणसी, जेएनएन। महामारी के कारण शहर में नाटक व अभिनय को जगह नहीं मिली, तो घाटों को ही थिएटर बना लिया। काशी के 15-20 युवा कलाकार गंगा किनारे नाटक का मंचन कर स्वयं को ज्यादा ही निखरता हुआ पा रहे हैं। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली और बनारस के ख्यात रंगकर्मियों के मार्गदर्शन में घाट क्लासेज चलाया जा रहा है। अभिनय में करियर बनाने वाले वे नव युवक जिन्हें लाकडाउन में कोई मौका नहीं मिला, वे अब घाट की तरफ आकर्षित हो रहे हैं।
जैन घाट और प्रभु घाट पर ही स्वतंत्र वरिष्ठ रंगकर्मी अर्पित सिधोरे और एनएसडी पासआउट बनारस की पहली अभिनेत्री स्मृति मिश्रा बकायदा नव कलाकारों को तराशने का कार्य कर रही हैं। अर्पित सिधोरे ने बताया कि अभिनय सिखाने के लिए कोई निश्चित स्थान जब नहीं मिला, तो विचार आया क्यों न घाट पर ही इस कार्य को अंजाम दिया जाए। उन्होंने कहा कि घाट और गंगा यह मेल वास्तविक अभिनय करने को प्रेरित कर रहा है और असली किरदार को देखकर सीखने का जो अवसर यहां मिला कहीं और नहीं।
इस बीच स्मृति मिश्रा ने बताया कि भोपाल, पटना व अन्य शहरों के मुकाबले बनारस में थिएटर काफी महंगे हैं जिससे यहां पर प्रोफेशनल और व्यवहारिक रूप से ड्रामा व एक्टिंग की इमारत तैयार नहीं हो पाई है, जबकि बनारस ऐसे धुरंधर व प्रतिभाशाली कलाकारों से भरा पड़ा है। अब जरूरत है उन्हें घरों से निकालकर एक बेहतर प्लेटफार्म देने की। घाट पर आए युवा कलाकारों में ज्यादातर बीएचयू, काशी विद्यापीठ, ट्रिपल आइटी के छात्र हैं, वहीं कुछ घाट के नाविक भी उसमें शामिल होकर अभिनय के गुर सीख रहे हैं। इस ओपन घाट क्लासेज में कोई भी युवा बिना किसी आवेदन और शुल्क के आ सकता है।