बलिया में खानाबदोश की जिंदगी जी रहे कटान से बेघर परिवार, गंगा की कटान से कईयों के उजड़ गए घर
कटान पीडि़तों के नाम पर सरकार की ओर से भले ही करोड़ों रुपये हर साल खर्च होते हैं लेकिन कटान से बेधर हुए लोगों की जिंदगी भी दुखों के पहाड़ तले ही दबी हुई है। जिला प्रशासन उनको बसाने के लिए जमीन उपलब्ध नहीं करा पा रहा है।
बलिया (लवकुश सिंह)। कटान पीडि़तों के नाम पर सरकार की ओर से भले ही करोड़ों रुपये हर साल खर्च होते हैं लेकिन कटान से बेधर हुए लोगों की जिंदगी भी दुखों के पहाड़ तले ही दबी हुई है। सरकार के फरमान के बाद भी जिला प्रशासन उनको बसाने के लिए जमीन उपलब्ध नहीं करा पा रहा है।
कड़ाके की ठंड में ऐसे सैकड़ों परिवार सड़क के किनारे या रेलवे स्टेशनों के आसपास खानाबदोशों की जिंदगी जीने जीने को विवश हैं। इनके दर्द को न तो जिले के बड़े अधिकारी महसूस कर पा रहे हैं और न ही जनप्रतिनिधि। एक-दो विपक्ष के नेता जब कभी इस मुद्दे पर अपनी आवाज बुलंद करते हैं तो सरकारी प्रक्रिया तेज होती है, उसके बाद फिर नरम पड़ जाती है। सड़कों के किनारे रह रहे लोग अपने उद्वार की राह देख रहे हैं, कोई तो आगे आए...इनको भी सुख की राह दिखाए।
2016 से बेघर हुए 312 परिवार
वर्ष 2016 से लेकर 2019 तक ग्राम सभा केहरपुर के कुल 149, ग्राम सभा गोपालपुर के कुल 103, बहुआरा गांव के 60 कटान पीडि़त अब तक सरकार से जमीन की आस लगाए हुए हैं। लेखपालों ने इनकी सूची बनाकर तहसील प्रशासन को सौंप दी हैं लेकिन जिला प्रशासन इनको बसाने के प्रति थोड़ा भी गंभीर नहीं है।
जिनको पट्टा दिए उन्हें भी नहीं दिला पाए कब्जा
कटान पीडि़तों के अलावा ऐसे भूमिहीन लोग भी हैं जिनको जमीन देकर बसाने की प्रक्रिया 2016 में शुरू हुई थी। उसमें बैरिया और सदर तहसील के लगभग 392 लोगों को जमीन का पट्टा दिया लेकिन उन्हें आज तक कब्जा दिलाने में प्रशासन विफल है। ऐसे में नारायणगढ़ के पट्टाधारी 160 परिवार, चांददियर के 152 और इब्राहिमाबाद उपरवार के पट्टाधारी 80 परिवार के लोग खानाबदोशों की ङ्क्षजदगी जी रहे हैं।
सड़क के किनारे इस तरह काट रहे दिन
एनएच-31 पर सड़क के किनारे कटान से बेघर हुए लोगों के किस्से बलिया की ओर से जाने पर रामगढ़ से ही शुरू हो जाते हैं। सड़क के किनारे कड़ाके की ठंड में झोपड़ी के अंदर बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं रात भर अलाव के सहारे ही ठंड से निजात पाते हैं। घर के बच्चों पर 24 घंटे निगाह रखनी पड़ती है। सड़क पर हर समय तेज रफ्तार में बड़े-छोटे वाहनों की आवागमन जारी रहता है। कोई भी बच्चा भूल से भी सड़क पर गया तो अनहोनी हो सकती है। इसके अलावा विषैले जीवों से भी हर समय ङ्क्षजदगी दांव पर लगी रहती है। दूबे छपरा के सत्येंद्र कुमार कहते हैं जिला प्रशासन के लोग कटान पीडि़तों के दुखों को देखना ही नहीं चाहते।
कटान पीडि़तों की अनदेखी कर रहे जिम्मेदार : विनोद सिंह
कटान पीडि़तों को बसाने की मांग को लेकर हमेशा आंदोलित रहने वाले इंटक नेता विनोद सिंह ने कहा कि कटान पीडि़तों के मामले में अधिकारी और जनप्रतिनिधि दोनों ही गंभीर नहीं हैं। उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन जिनको 2016-17 में बसने के लिए पट्टा दिया था, उस पर भी वह आज तक कब्जा नहीं दिला सका। उस पटट्टे की जमीन पर आज भी दबंग कब्जा जमाए हुए हैं। नए लोगों बसाने के प्रति भी जिला प्रशासन गंभीर नहीं है।
कटान पीडि़तों व भूमिहीनों की स्थिति
2011 से 2015 तक बेघर हुए 377 परिवार, सभी को जमीन का पट्टा देकर बसाया गया।
-2016 से 2019 तक बेघर हुए 312 परिवार की बनी सूची, अभी नहीं नहीं मिली बसने की जमीन।
-2016 व 2017 में कटान पीडि़त व भूमिहीन 392 को पट्टा देने के बाद भी नहीं दिला पाए कब्जा।
बोले अधिकारी
शासन की मंशा के अनुरूप कटान पीडि़तों को बसाने की योजना चल रही है। जल्द ही कटान पीडि़तों को शासन स्तर से जमीन उपलब्ध कराकर बसाने का प्रयास किया जाएगा। सूची के अनुसार सभी के नाम के साथ सत्यापन का कार्य चल रहा है। - शिव सागर दुबे, तहसीलदार, बैरिया