Hindi को मिल रहा अब सम्मानजनक स्थान, वेबिनार में बोले राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र
राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा कि भाषा व्यक्ति को व्यक्तित्व से जोड़ती है। भाषा व्यक्तित्व निर्माण का सबसे अनिवार्य अंग है।
वाराणसी, जेएनएन। राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने कहा कि भाषा व्यक्ति को व्यक्तित्व से जोड़ती है। भाषा व्यक्तित्व निर्माण का सबसे अनिवार्य अंग है। शिक्षा, शिक्षक और शिक्षार्थी के मध्य परस्पर संबंध के लिए भाषा की बड़ी अहमियत है। शिक्षा से आत्मविश्वास जागृत होता है और आत्मविश्वास से ही शिक्षा का विस्तार । कलराज मिश्र बुधवार को वसंत महिला महाविद्यालय राजघाट की ओर से नई शिक्षा नीति का भाषिक संदर्भ और हिंदी का वैश्विक परिदृश्य विषयक तीन दिवसीय वैश्विक वेबिनार को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि मातृभाषा का प्रत्येक शब्द अपने इतिहास से जुड़ा होता है इसलिए मातृभाषा शिक्षा के विकास में अत्यंत आवश्यक है। नई शिक्षा नीति के प्रावधानों को विस्तार पूर्वक समझाते हुए उन्होंने उसके महत्व को प्रतिपादित किया। कहा कि एक से पांचवीं तक शिक्षा में मातृभाषा अनिवार्य किया गया है, जिसका परिणाम एक पीढ़ी बाद देखने को मिलेगा। उन्होंने आगे बताया कि हिंदी के प्रति लोगों की रुचि अब बढ़ती जा रही है। जर्मनी, जापान, चीन और रूस जैसे देश जहां पर विविध प्रकार की भाषाएं और बोलियां हैं फिर भी इन देशों ने अपनी मातृभाषा को ही विकास व संपन्नता का जरिया बनाया। अब भारत भी इस ओर बढ़ चुका है और मातृभाषा को अब सम्मानजनक स्थान मिलना शुरू हो गया है। मुझे पूरा विश्वास है जिस प्रकार हिंदी का वर्चस्व बढ़ रहा है इससे लोगों को हिंदी जानने, सीखने व जीने के लिए आगे आना ही होगा। कलराज मिश्र ने अपने संबोधन की शुरूआत पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को श्रद्धांजलि देते हुए की। कहा मैं वाराणसी में ही पढ़ा लिखा हूं, यहीं से जनता-जनार्दन के लिए कार्य करने की प्रेरणा मिली और राजनीतिक जीवन का आह्वान यहीं से हुआ। बसंत महिला विद्यालय भी दो बार आ चुका हूं।
ङ्क्षहदी की उदासीनता पर प्रकट की ङ्क्षचता
बतौर विशिष्ट अतिथि यूनेस्को कार्यकारी बोर्ड के भारतीय प्रतिनिधि शिक्षाविद् प्रो. जेएस राजपूत ने कहा नई शिक्षा नीति का उद्देश्य है कि बच्चों को प्रारंभिक कक्षाओं में उनकी मातृभाषा में ही शिक्षा दी जानी चाहिए। इससे बच्चों के भीतर उनकी सांस्कृतिक विरासत, धार्मिक विरासत, राजनीतिक विरासत एवं सामाजिक विरासत आदि के प्रति भावबोध का ज्ञान होगा। उन्होंने कहा कि बच्चों में बहुभाषिकता को सीखने का गुण विद्यमान होता है। विशिष्ट अतिथि सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु के कुलपति प्रो. सुरेंद्र दुबे ने कहा कि हिंदी एक लोकतांत्रिक और स्वाधीनता की भाषा है, लेकिन 1806 के बाद इसका स्वरूप थोपी जाने वाली भाषा के रूप में हो गया। अत: लोग हिंदी भाषा का विरोध करने लगे। परंतु नई शिक्षा नीति के आने से हिंदी का विकास निश्चय ही होगा। भाषा संस्कृति की वाहक भी है। प्रत्येक विद्यार्थी के मानसिक विकास हेतु मातृभाषा का ज्ञान आवश्यक है नई शिक्षा नीति में इसे प्रस्तावित किया गया है। घर, आंगन और पाठशाला की भाषा एक होनी चाहिए। यदि इसमें अंतर होता है तो बच्चे के मानसिक विकास में बाधाएं उत्पन्न होती हैं। अध्यक्षता करते हुए ओसाका विश्वविद्यालय जापान के एमेरिटस प्रोफेसर पद्मश्री तोमियो ने कहा कि जापान को जापानी भाषा के बल पर अपने सांस्कृतिक और वैज्ञानिक विकास में बहुत मदद मिली। उन्होंने हिंदी सीखने को अपना सौभाग्य और गर्व का विषय बताया। कहा भारतीय प्रधानमंत्री जब वैश्विक मंच पर हिंदी में बोलते हैं तो जापान के छात्रों के साथ ही अन्य लोगों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। वास्तव में यह भारत की राजनीतिक जीत है। स्वागत कालेज के प्रबंधक आइएएस एसएन दुबे, संयोजन वरिष्ठ आलोचक व हिंदी विभागाध्यक्ष डा. शशिकला त्रिपाठी, धन्यवाद ज्ञापन प्राचार्य प्रो. अलका सिंह व संचालन डा. वंदना झा ने किया।